रेटिंग:डेढ़ स्टार

अवधिः 2 घंटे 15 मिनट

निर्माताः सुरेश ओबेराय, संदीप सिंह,  आनंद पंडित, आचार्य मनीश व जफर मेहदी

निर्देशकः उमंग कुमार

कहानी: संदीप सिंह

पटकथा लेखकः अनिरूद्ध चावला और विवेक ओबेराय

संवाद लेखकः हर्ष लिंबचिया, अनिरूद्ध चावला और विवेक ओबेराय

कलाकारः विवेक ओबेराय, राजेंद्र गुप्ता, बोमन ईरानी, प्रशांत नारायण, र्दान कुमार, अंजन श्रीवास्तव, मनोज जोशी, जरीना वहाब, यतिन कर्येकर व अन्य.

भारतीय सिनेमा का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी फिल्मकार ने किसी एजेंडे के तहत फिल्म का निर्माण किया, उसने अपने हाथों से उस फिल्म को मटियामेट कर दिया. पर अफसोस इससे कोई सबक लेने को तैयार नहीं है. अब देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का महिमा मंडन करने के लिए उनके जीवन पर निर्माता संदीप सिंह व सुरेश ओबेराय और निर्देशक उमंग कुमार फिल्म ‘‘पी एम नरेंद्र मोदी’ लेकर आए हैं, जिसमें इतिहास को ही तोड़ मरोड़कर पेश किया गया है.

कहानीः

यूं तो फिल्म के संवाद - ‘‘जीतने का मजा तब आता है, जब सभी आपके हारने की उम्मीद करते हैं’’ से फिल्म की कहानी समझ में आ जाती है. फिर भी फिल्म शुरू होती है. 2013 में उस बैठक से जिसमें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाने की चर्चा होती है. यह बैठक भाजपा के साथ साथ कांग्रेस के दफ्तर में भी हो रही है. उसके बाद कहानी फ्लैशबैक में चली जाती है. अब कहानी शुरू होती है. नरेंद्र मोदी के जन्मस्थल से, जहां रेलवे स्टेशन पर उनके पिता दामोदरदास (राजेंद्र गुप्ता) का टी स्टौल है और नरेंद्र मोदी स्टेशन पर ट्रेन के रूकने पर डिब्बों में घूम घूमकर ‘सबकी चाय मोदी चाय’  के स्लोगन के साथ चाय बेचते हैं. वह पिता के काम में हाथ बंटाने के साथ ही स्कूल भी जाते हैं और आते जाते तिरंगे झंडे को सलाम भी करते हैं.बाद में वह सन्यासी बन जाते हैं. फिर राजनीति में आ जाते हैं. 1992 में नरेंद्र मोदी (विवेक ओबेराय) एकता यात्रा निकालकर कष्मीर के लाल चैक पर तिरंगा झंडा फहराते हैं. वह औरतों को कई किलोमीटर पैदल चलकर पीने के पानी लाते देखकर दुःखी होते हैं और फिर कुछ साथियों को साथ लेकर खुद उनके लिए नहर खोदते हैं. अब तक उनके साथ अमित शाह जुड़ चुके होते हैं. राज्य में चुनाव होने पर वह पूरा जोर लगाकर करसन को राज्य का मुख्यमंत्री बनवा देते हैं. करसन को मोदी से खतरा नजर आता है, इसलिए वह पार्टी के नेताओें से कहकर मोदी को गुजरात से दिल्ली भिजवा देते हैं. 26 जनवरी 2001 को गुजरात के भुज में भूकंप आता है, तब अमित शाह के कहने पर नरेंद्र मोदी दिल्ली से गुजरात आकर भुज के भूकंप पीड़ितों के लिए मसीहा बन जाते हैं. इससे प्रभावित होकर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व करसन को हटाकर नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बना देता हैं. नरेंद्र मोदी के गुजरात के मुख्यमंत्री बनने के बाद एक बहुत बड़ा उद्योग पति(प्रषांत नारायण) उनसे मिलकर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए मदद मांगता है. इसका अपना एक टीवी चैनल भी है. पर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं- ‘मैं ‘ अपने राज्य में गलत का नही होने दूंगा. इस वक्त तुम्हारी 11 कंपनियां गैरकानूनी काम कर रही है. मैं इन्हें एक सप्ताह में बंद करा दूंगा. वह उद्योगपति उन्हें धमकी देकर चला जाता है. नरेंद्र मोदी इसकी परवाह नही करते.

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