असम में एनआरसी की फाइनल लिस्ट आने के बाद से असम के लगभग बीस लाख लोगों को अपनी जिंदगी तलवार के नीचे लटकी हुई नजर आ रही है. मगर असम से आने वाली कई कलाकार प्रतिभाओं का मानना है कि उन्हें आसामी होने के चलते भारत के दूसरे राज्यों में काफी कुछ झेलना पड़ता है. ऐसी ही एक अदाकारा हैं लारिसा चौक्ज. जो कि सनोज मिश्रा निर्देशित मर्डर मिस्ट्री फिल्म ‘‘लफंगे नवाब’’ में अभिनय किया है.
असम के तिनसुकिया जिले की निवासी लारिसा चौक्ज के पिता का बचपन में ही देहांत हो गया था. इसी के चलते लारिसा चौक्ज ने बहुत छोटी उम्र में नृत्य सीखकर अच्छे काम की तलाश में अपनी मां की नाराजगी के बावजूद असम से निकलकर दिल्ली रवाना हुई थी. पर उन्हें कड़वे अनुभवों से गुजरना पड़ा.
दिल्ली में असम की लड़की को लेकर गलत सोचः
अपने अनुभवों की चर्चा करते हुए लारिसा चौक्ज बताती हैं- ‘‘महज सोलह साल की उम्र में मैं घर से निकलकर सबसे पहले जून 2015 में दिल्ली पहुंची थी. मैंने सोचा था कि दिल्ली में मुझे कुछ काम मिल जाएगा. लेकिन दिल्ली में असम से आने वाली लड़कियों के प्रति सोच बहुत गलत है. जब उन्हें पता चलता है कि असम के एक गांव से आई हुई लड़की को काम चाहिए, तो वह बहुत ही गलत अंदाज में लेते हैं. फिर वह हमारे सामने कई तरह की फरमाइशें रखना शुरू करते हैं.
दिल्ली से मुबई, फिर गुजरात
वह आगे कहती हैं- ‘‘फिर मैं दिल्ली से मुंबई आयी. काफी संघर्ष किया. पर नृत्य या अभिनय करने का अवसर नही मिला. मैं संघर्ष करते हुए इतना थक चुकी थी कि एक दिन मैंने सोचा कि अभिनय करने की बजाय जो भी काम मिल जाए, वह करूंगी. क्योंकि जिंदगी में पैसा बहुत जरूरी है. मैंने सोचा कि सबसे पहले कुछ काम करके पैसा कमा लूं, जिससे संघर्ष करना आसान हो जाए. उसके बाद अभिनय के क्षेत्र में कदम रखूंगी. अब मेरे सामने समस्या थी कि मैं क्या काम करूं? मुझे नृत्य के अलावा कुछ आता नहीं था. मेरे दोस्त ने बताया कि गुजरात में फैशन शो होते हैं, जिसमें नृत्य का भी स्कोप है. तो मैं गुजरात गई.’’
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गुजरात के लोगों की निगाह गलतः
गुजरात के संदर्भ में वह कहती हैं- ‘‘मैं गुजरात के कई शहरों में रही.पर मुझे गुजरात के किसी भी शहर के लोगों की दिमागी सोच पसंद नहीं आई. शायद यही वजह है कि गुजरात में हर लड़की खुद को ऊपर से नीचे तक हमेशा ढंक कर रखती है. वहां के लोगों की निगाहें अच्छी नहीं है. पर सभी गलत नहीं है. कुछ लोगों की सोच बहुत गंदी है. उन्हें पता चला कि असम से आई है, तो समझ लिया कि यह लड़की तो सब कुछ कर लेगी. लेकिन मैं किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं थी. वहां कोई मदद नहीं कर रहा था. मैंने किसी से कुछ भी मुफ्त में कुछ नहीं मांगा था. मैं तो मेहनत करने के लिए तैयार थी. मैं काम मांग रही थी. वहां सभी एक दूसरे से कह रहे थे कि इस लड़की के साथ मेरी सेटिंग करवा दो. किसी तरह मैंने गुजरात में 4 माह गुजारे.’’
गुजरात से बंगलौरः
धारा प्रवाह बोलते हुए वह आगे कहती हैं- ‘‘उसके बाद मुझे बंगलोर की ‘सन इवेंट’ नामक एक इवेंट कंपनी के बारे में पता चला. मैंने उसके लिए औडीशन दिया और मेरा चयन हो गया. तब मैं बंगलोर रहने चली गई. इस कंपनी में हमारा डांस ग्रुप था. जिस इवेंट में डांस की जरूरत होती थी, वहां हमारा ग्रुप नृत्य किया करता था. मैंने वहां पर एक नहीं कई इवेंट में डांस किया. नृत्य करके मैंने अपनी आजीविका चलाई. जब आर्थिक स्थिति सुधर गयी, तो सोचा कि अब एक बार फिर अभिनय के क्षेत्र में किस्मत आजमानी है. इसलिए इवेंट कंपनी छोड़ कर कुछ दिन के लिए मां के पास असम अपने घर चली गई. मैंने सोच लिया था कि आप मुझे नए सिरे से अभिनय के क्षेत्र में संघर्ष करना है. जब मैं असम में थी, तभी मुझे फिल्म ‘‘लफंगे नवाब’’ के बारे में पता चला. मैंने औडीशन दे दिया. और मुझे इसमें अभिनय करने का अवसर मिल गया. मैं इस फिल्म के निर्माताओं व निर्देशक की शुक्रगुजार हूं कि मुझे किसी भी तरह का कंप्रोमाइज नहीं करना पड़ा.’’
खुद को असमी नही भारतीय मानती हैं:
जब हमने लारिसा से पूछा कि क्या आसामी होने की वजह से उन्हें काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है? तो लारिसा चैक्ज ने कहा- ‘‘नहीं.. ऐसा कहना ठीक नही होगा. मैं अपने आप को भारतीय मानती हूं. मेरा मानना है कि असम भी भारत में है. मुझे आसामी होने के चलते परेशानी नहीं हुई. पर देश के हर शहर में रहने वाले कुछ लोगों की सोच गलत होती है. अफसोस कि दिल्ली व गुजरात में मेरा साबका ऐसे ही गलत सोच वाले लोगों के साथ पड़ा. जबकि बंगलोर में तो मुझे अच्छा काम करने का मौका मिला.’’
क्यों सीखा नृत्य:
नृत्य सीखने की चर्चा करते हुए लारिसा चैक्ज ने कहा- ‘‘आपको पता होना चाहिए कि असम शुरू से ही कला के क्षेत्र में अग्रणी रहा है. असम से कई बड़े-बड़े संगीतकार निकले हैं. आसाम से आकर कई प्रतिभाएं बौलीवुड में अच्छा काम कर रही हैं. स्व.भूपेन हजारिका जी असम से थे. असम के संगीत को सबसे ज्यादा महत्त्व दिया जाता है. पर मेरे घर के हालात और मेरी दिमागी सोच ऐसी थी कि मैंने उस वक्त संगीत को ज्यादा तवज्जो नहीं दी. जबकि मेरी रूचि संगीत में है. हर तरह का संगीत सुनना मुझे पसंद है. मौका मिला तो शायद मैं कभी किसी फिल्म में भी गाना गा सकती हूं. पर मुझे नृत्य में अच्छा मौका मिल गया.’’
वह आगे कहती हैं- ‘‘मैंने आसाम में ही नृत्य सीखा. मेरे नृत्य के शिक्षक को मेरे नृत्य की प्रतिभा ने प्रभावित किया, तो उन्होंने नृत्य के स्टेज शो में मुझे नृत्य करने के लिए शामिल किया. उसके बाद मैंने असम में नृत्य के कई स्टेज शो किए. फिर मेरे शिक्षक ने मुझे अपना सहायक बना लिया. उसके बाद मैंने कुछ समय तक बच्चों को नृत्य सिखाया और सीखा. दूसरे बच्चों को नृत्य सिखाते सिखाते मेरी नृत्य प्रतिभा में भी निखार आता चला दिया. जिसके चलते मैंने बाद में नृत्य के कार्यक्रम देकर अपनी जीविका चलायी.’’