दिग्गज एक्टर श्रीराम लागू का पुणे में 92 साल की उम्र में निधन हो गया. उनका अंतिम संस्कार गुरुवार को किया जाएगा. श्रीराम लागू ने अपने फिल्मी करियर में सैकड़ों हिंदी और 40 से ज्यादा मराठी फिल्मों में काम किया है. श्रीराम लागू ने वो आहट: एक अजीब कहानी, पिंजरा, मेरे साथ चल, सामना, दौलत जैसी कई फिल्मों में काम किया है. आइए जानते हैं उनके करियर और निजी जिंदगी के बारे में...
चुनौतीपूर्ण भूमिका...
साल 1980 में प्रदर्शित बीआर चोपड़ा निर्देशित फिल्म इंसाफ का तराजू में सबसे चुनौतीपूर्ण भूमिका डाक्टर श्रीराम लागू के हिस्से में आई थी. इस फिल्म में वे ज़ीनत अमान और पद्मिनी कोल्हापुरे के बलात्कार के आरोपी राज बब्बर के वकील थे. इंसाफ का तराजू 80 के दशक की सर्वाधिक चर्चित और हिट फिल्मों में से एक थी क्योंकि बलात्कार पर इससे पहले कोई फिल्म ऐसी नहीं बनी थी जो समाज में हलचल मचाते उसे इस संवेदनशील मुद्दे पर नए सिरे और तरीके से सोचने मजबूर कर दे.
कारोबारी राज बब्बर 2 बहनों का बलात्कार करता है और उसे बचाने का जिम्मा लेते हैं क्रिमनल लायर मिस्टर चंद्रा यानि श्रीराम लागू. इस फिल्म के अदालती दृश्य काफी वास्तविक और प्रभावी बन पड़े थे. जिरह में बचाव पक्ष का वकील कैसे-कैसे घटिया और बेहूदे सवाल पीड़िता से पूछता है. यह श्रीराम लागू ने पर्दे पर जितने प्रभावी ढंग से उकेरा, वह शायद ही कोई दूसरा कलाकार कर पाता. कटघरे में खड़ी ज़ीनत अमान से यह पूछना कि बलात्कार के वक्त आरोपी के हाथ उस वक्त कहां थे, कंधों पर या जांघों पर और आपने अपने बचाव में क्या-क्या किया जैसे दर्जनों सवाल अदालतों का वीभत्स और कड़वा सच तब भी था और आज भी है. फिल्म में ज़ीनत अमान की दयनीयता पर श्रीराम लागू की क्रूरता भारी पड़ी थी. अलावा इसके इस फिल्म का यह डायलाग भी खूब चर्चित हुआ था कि अगर कोई चश्मदीद गवाह होता तो बलात्कार होता ही क्यों.