फिल्म अभिनेता इरफान खान के फैन गुजरे 5 मार्च, 2018 को उस समय सकते में आ गए, जब उन्हें किसी और ने नहीं, बल्कि खुद इरफान खान ने ही ट्वीट कर के बताया कि वह एक दुर्लभ बीमारी से ग्रस्त हैं. हालांकि यह दुर्लभ बीमारी क्या है, इस का उन्होंने अपने ट्वीट में खुलासा नहीं किया था, बल्कि उन्होंने किसी जासूसी उपन्यास के अधूरे वाक्य की तरह इसे अधूरा छोड़ दिया था.
इस के बाद अफवाहों और अनुमानों का तूफान उठना ही था, सो मीडिया से ले कर समूचे सोशल मीडिया का मंच उन की अनुमानित बीमारियों से भर गया. कुछ अनुमान तो दावे की हद से परे थे, विशेषकर ब्रेन कैंसर होने का अनुमान.
बहरहाल एक हफ्ते तक कहर ढाने वाली इन अफवाहों के तूफान को खुद इरफान खान ने ही आगे बढ़ कर संभाला, अपनी ‘दुर्लभ बीमारी’ के बारे में खुलासा कर के उन्होंने अपने चाहने वालों के लिए फिर एक ट्वीट किया और इस ट्वीट में बताया, ‘मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर नामक बीमारी है.’
साथ ही उन्होंने इस बात का भी खुलासा किया कि इस दुर्लभ बीमारी के इलाज के लिए वह आजकल देश से बाहर हैं. हालांकि, अपने इस खुलासे में भी उन्होंने कई रहस्यात्मक पौज छोड़ दिए.
मसलन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि बीमारी उन के शरीर के किस हिस्से में है और किस स्टेज में पहुंच चुकी है. इरफान खान ने अपने कमजोर दिल वाले फैंस को ध्यान में रख कर यह भी उजागर नहीं किया कि यह घातक है या फिर कोई सामान्य बीमारी है. बस, उन्होंने उलाहने की शक्ल में यह भर कहा कि न्यूरो संबंधी बीमारी हमेशा दिमाग में ही नहीं होती. यह जवाब उन लागों के लिए था जो अपने अनुमानों से यह साबित करने की कोशिश कर रहे थे कि इरफान खान को ब्रेन कैंसर है.
संजीदा स्वभाव के इरफान खान ने कुछ नहीं छिपाया
7 जनवरी, 1967 को राजस्थान के जिला जयपुर के अंतर्गत आने वाले टोंक कस्बे में जन्में इरफान अली खान अपने अभिनय की बदौलत बौलीवुड से ले कर हौलीवुड तक अपने चाहने वालों की एक अच्छीखासी फौज के दिलों में राज करते हैं. 51 साल के इस अभिनेता ने बहुत कम समय में जितनी शोहरत हासिल की है, उस से कहीं ज्यादा सम्मान भी हासिल किया है.
इसलिए वह अपने चाहने वालों के लिए अपने बारे में जानकारी देने की शिष्टता और गरिमा दोनों का महत्त्व समझते हैं. यही वजह थी कि उन्होंने अपने बारे में अफवाहों के बाजार को नहीं चढ़ने दिया.
वह खुद सामने आए और अपनी बात मार्गेरेट मिशेल के इस आकर्षक विचार से शुरू की कि जिंदगी पर इस बात का आरोप नहीं लगाया जा सकता कि जिंदगी ने हमें वह सब नहीं दिया, जिस की हमें उस से उम्मीद थी. अपने फैंस के लिए लिखे गए ट्वीट में उन्होंने यह भी कहा कि मैं ने सीखा है कि अचानक सामने आने वाली चीजें हमें जिंदगी में आगे बढ़ाती हैं.
जब मुझे न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का पता चला तो इसे स्वीकार कर पाना आसान नहीं था, लेकिन मेरे आसपास मौजूद लोगों के प्यार और मेरी इच्छाशक्ति ने मुझे उम्मीद दी है कि मैं इस से पार पा जाऊंगा, बस आप सब मेरे लिए दुआएं कीजिए.
उन्होंने अपने एक के बाद एक किए गए कई ट्वीट में यह भी कहा कि न्यूरो शब्द का इस्तेमाल हमेशा ब्रेन के लिए ही नहीं होता और रिसर्च के लिए गूगल से आसान रास्ता नहीं है. जिन लोगों ने मेरे लिखने का इंतजार किया, उम्मीद है उन्हें बताने के लिए मैं कई कहानियों के साथ लौटूंगा.
इस के पहले जब उन्होंने पहली बार खुद ही अपनी बीमारी का खुलासा किया था, तब भी उन्होंने इसे बहुत ही शालीन तरीके से अपने चाहने वालों के बीच रखा था. तब उन्होने लिखा था, ‘कभीकभी आप एक झटके से जागते हैं. पिछले 15 दिन मेरे जीवन की सस्पेंस स्टोरी जैसे रहे हैं. मैं एक दुर्लभ बीमारी से पीडि़त हूं. मैं ने जिंदगी में कभी समझौता नहीं किया. मैं हमेशा अपनी पसंद के लिए लड़ता रहा और आगे भी ऐसा ही करूंगा.’
अपने एक और ट्वीट में उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए यह भी लिखा, ‘मेरा परिवार और मेरे दोस्त मेरे साथ हैं. हम बेहतर रास्ता निकालने की कोशिश कर रहे हैं. जैसे ही सारे टेस्ट हो जाएंगे, मैं आने वाले 10 दिनों में अपने बारे में सब बातें बता दूंगा. तब तक मेरे लिए दुआ करें.’
एक कहावत है कि बड़े लोगों को बीमारियां भी बड़ी होती हैं. हालांकि ऐसी कहावतों पर यकीन नहीं होता, क्योंकि उन्हे हम जितने सरलीकृत ढंग से समझते हैं, वे इतनी सरल नहीं होतीं. यह बात भी पूरी तरह से सरल निष्कर्षों से परे है, हो सकता है इस कहावत का यह मतलब हो कि दुर्लभ बीमारियां होती तो सब को हैं, लेकिन इन का पता सिर्फ अमीर लोगों को ही चलता है.
वजह ये कि बड़े लोग बीमारी का पता करने के लिए जितना कुछ खर्च कर सकते हैं, उतना हर कोई नहीं कर सकता. अकारण ही इरफान खान की बीमारी का नाम सामने आते ही स्टीव जौब्स का नाम नहीं आया, बल्कि इस नाम के सामने आने का एक मनोविज्ञान है कि स्टीव की तरह इरफान खान भी खास हैं, इसलिए न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ने उन्हें अपने लिए चुना.
बहरहाल, अब इरफान के चाहने वाले ही नहीं बल्कि जिस तरह से यह बीमारी सामने आई है, उस के बारे में देश का आम से आम आदमी भी यह जानना चाहता है कि आखिर यह बीमारी है क्या? जो दुर्लभ लोगों को ही होती है.
आखिर इस बीमारी की हकीकत क्या है?
दरअसल, न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर उस अवस्था को कहते हैं, जिस में शरीर में हार्मोंन पैदा करने वाले ‘न्यूरोएंडोक्राइन सेल्स’ सामान्य से बहुत ज्यादा हार्मोन बनाने लगते हैं. एक तरह से यह शरीर में हार्मोंस बनने की अधिकता की बीमारी है. इसलिए इस ट्यूमर को कारसिनौयड्स भी कहते हैं.
हालांकि जिन कुछ खास लोगों में यह बीमारी सामने आई है, उन में से ज्यादातर के पेनक्रियाज में ये ट्यूमर पाए गए हैं.
लेकिन पेनक्रियाज शरीर की अकेली जगह नहीं है, जहां यह ट्यूमर हो सकता है. यह ट्यूमर शरीर के कई हिस्सों में हो सकता है, जैसे कि लंग्स, गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्स, थायरौयड या एड्रिनल ग्लैंड.
असल में यह शरीर में अपनी मौजूदगी के विशेष स्थान के आधार पर ही अपना आकार, प्रकार तय करता है. इस का इलाज संभव है, बशर्ते समय रहते या इस ट्यूमर के एडवांस स्टेज में पहुंचने के पहले इस का पता चल जाए.
अभी इरफान खान के डाक्टरों और उन के परिजनों के अलावा और कोई नहीं जानता कि उन में यह किस स्टेज का है. इरफान खान ने इस बात को बहुत सावधानी से गोपनीय बनाए रखा है, यह जरूरी भी है, क्योंकि संचार के इस ग्लोबल युग में जरा सी जानकारी लीक हुई कि उस के अनिगिनत अर्थ लगाए जाने लगते हैं.
बहरहाल ये ट्यूमर एक नहीं 3 प्रकार के होते हैं.
1. गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल न्यूरोजएंडोक्राइन टयूमर- यह गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल टै्रक्ट के किसी भी हिस्से में हो सकता है, जिस में बड़ी आंत और एपेंडिक्स शामिल हैं.
2. लंग न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर- यह फेफड़ों में होने वाला ट्यूमर है, जिस में खांसी के दौरान ब्लड आना और सांस लेने में दिक्कत होती है.
3. पेंक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर – यह पेनक्रियाज में होने वाला ट्यूमर है. हार्मोन से जुड़ाव के कारण न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर ब्लड शुगर को काफी प्रभावित करता है.
सवाल है, आखिर यह ट्यूमर होता क्यों है? इस की कई वजह हैं, मसलन इस की एक सब से बड़ी वजह मातापिता में इस बीमारी के होने को माना जाता है. माता या पिता में से किसी एक को भी अगर यह बीमारी है तो बच्चों में भी इस के होने की आशंका बढ़ जाती है.
इस के होने का दूसरा बड़ा कारण स्मोकिंग और ढलती उम्र के साथ शरीर का कमजोर प्रतिरक्षातंत्र भी होता है. असल में जब हमारे अंदर किसी भी किस्म की बीमारी से लड़ने की स्वाभाविक ताकत नहीं रहती तो कोई भी बीमारी परेशान कर सकती है.
इस के अलावा अल्ट्रावायोलेट किरणें भी न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर होने के खतरे को बढ़ाती हैं. लेकिन इतना खतरनाक होने के बावजूद भी यह कई दूसरी बीमारियों की तरह बहुत चुपचाप वार करने वाली बीमारी है या कहें साइलैंट किरण है.
इस बीमारी की पहचान
आखिर हम कैसे जानें कि वे कौन सी चीजें हैं, जिन की शरीर में मौजूदगी से पता चल सके कि हम न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर का शिकार हो चुके हैं. इस की मौजूदगी के सामान्य लक्षण इस तरह है-ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, थकान या कमजोरी लगातार महसूस होती है. पेट में अकसर दर्द बना रहता है और वजन गिरने लगता है.
कई बार इस के चलते टखनों में सूजन भी आ जाती है और त्वचा में बहुत चमकीले धब्बे निकलने लगते हैं. जब यह बीमारी काफी ऊंची स्टेज में पहुंच गई हो और लोग इस का पता न लगा पा रहे हों तो भी इस का पता लगाया जा सकता है. मसलन अगर शरीर से सामान्य से ज्यादा पसीना आ रहा है और रह रह कर बेहोशी छा रही है. बहुत डलनेस महसूस हो रही है तो फिर इसे होने से कोई नहीं रोक सकता.
इस बीमारी में खासतौर पर शरीर में ग्लूकोज का लेबल तेजी से बढ़ने या गिरने लगता है. जिन लोगों को इस के बारे में ज्यादा कुछ मालूम न हो और इसे जानना चाहते हों तो इसे कुछ इस प्रकार समझना चाहिए.
— सीबीसी, बायोकैमेस्ट्री टेस्ट, सीटी स्केन, एमआरआई और बायोप्सी कर के इस बीमारी की पुष्टि की जाती है.
— इस के अलावा बेरियम टेस्ट, पैट स्केन, एंडोस्कोपी व बोन स्कैन भी इस का पता लगाने में सहायता करते हैं.
— आखिर ट्यूमर किस स्टेज में है यह भी कुछ जांचों से पता चल जाता है.
जहां तक इस के इलाज का सवाल है तो इस का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वह शरीर के किस हिस्से में है. साथ ही वह किस स्टेज में है.
इलाज के जो कई तरीके हैं, उन में से एक तरीका सर्जरी की मदद से इस ट्यूमर को हटाया जाना भी है. कुछ मामलों में रिजल्ट के आधार पर दोबारा सर्जरी भी की जाती है, ड्रग थैरेपी भी देते हैं. इस में कीमोथैरेपी, टारगेटेड थैरेपी और दवाएं ली जाती हैं.
साथ ही रेडिएशन और लिवर डायरेक्टटेड थैरेपी भी दी जाती है. इस बीमारी को शायद आज पूरी दुनिया इतनी गहराई से नहीं जान पाती, यदि यह खास बीमारी स्टीव जौब्स को न हुई होती. इस बीमारी से पीडि़त स्टीव जौब्स वास्तव में अमेरिकी मल्टीनेशनल कंपनी एप्पल के पूर्व फाउंडर थे, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे. स्टीव जौब्स की मौत का कारण पेनक्रियाटिक न्यूरोजएंडोक्राइन ट्यूमर था, जिस का खुलासा उन्होंने 2009 में एक ओपन लैटर में दिया था.
इरफान खान का फिल्मी कैरियर
अब यही बीमारी सहज अभिनय के लिए जाने जाने वाले इरफान खान को भी हो गई है. इरफान खान नई दिल्ली स्थित नेशनल स्कूल औफ ड्रामा से पासआउट हैं. वह अपने सहज अभिनय के लिए जाने जाते हैं. 1988 में मीरा नायर की फिल्म ‘सलाम बौंबे’ से उन्होंने फिल्मों में डेब्यू किया था. यह फिल्म औस्कर अवार्ड के लिए भी नौमिनेट हुई थी. इरफान खान के फैंस उन्हें विशेष रूप से कुछ खास फिल्मों के लिए जानते हैं. इन फिल्मों में हैं, ‘हासिल’, ‘मकबूल’, ‘लाइफ इन मैट्रो’, ‘न्यूयार्क’, ‘द नेमसेक’, ‘लाइफ औफ पई’, ‘साहब, बीवी और गैंगस्टर-2’, ‘पान सिंह तोमर’, ‘लंच बौक्स’ और ‘हिंदी मीडियम’.
इरफान के बेजोड़ अभिनय को सरकार ने भी नोटिस किया, जिस की वजह से साल 2011 में उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. फिल्म ‘पान सिंह तोमर’ के लिए साल 2012 में बेस्ट एक्टर का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला.
इरफान खान मूलत: जयपुर के टोंक कस्बे से हैं. उन का ताल्लुक जमींदार फैमिली से है और असली नाम है साहबजादे इरफान अली खान. इरफान की लाइफ में एक वक्त ऐसा भी आया था, जब वह एक्टिंग छोड़ना चाहते थे. दरअसल, नैशनल अवार्ड विनर इरफान खान एक तरह की एक्टिंग से ऊब गए थे.
1994-1998 के बीच उन्होंने कई टीवी शोज में काम किया. ये सब एक ही तरह के थे. इसलिए इरफान खान रोजरोज एक जैसा काम कर के परेशान होने लगे थे. तभी एक दिन उन्होंने तय किया कि अब रोजरोज यह सब नहीं करना. उस वक्त उन्होंने अभिनय करने से ही तौबा करने का मन बना लिया था.
लेकिन उन्हीं दिनों उन की भेंट आसिफ कपाडि़या से हो गई जिन्होंने उन्हें फिल्म ‘वेरियर’ में पेश किया. इस फिल्म की स्क्रिप्ट इरफान खान को बेजोड़ लगी. उन्होंने इस फिल्म में अभिनय भी बेजोड़ किया और इस तरह से उन का मन बदल गया और वह फिल्म इंडस्ट्री में बने रहने के लिए तैयार हो गए.
फिल्म ‘वैरियर’ के बाद उन्हें और भी कई अच्छी फिल्में मिलीं. इरफान खान जब एनएसडी में फाइनल ईयर में थे तभी डायरेक्टर मीरा नायर ने उन्हें फिल्म ‘सलाम बौंबे’ में काम करने के लिए औफर दिया था. लेकिन हाइट ज्यादा होने की वजह से उन का रोल काट दिया गया था. फिर भी ‘सलाम बौंबे’ से उन की पहचान जुड़ी रही. क्योंकि उन्होंने इस फिल्म से साल 1988 में डेब्यू किया था.
योद्धा हैं इरफान खान
इरफान खान अपने सहज अभिनय के लिए ही नहीं, बल्कि साफगोई भरी बातचीत के लिए भी जाने जाते हैं. इरफान ने एक इंटरव्यू में खुलासा किया था कि कैरियर के शुरुआती दिनों में उन्हें कास्टिंग काउच के दौर से गुजरना पड़ा था.
बकौल इरफान, ‘मुझे मेल और फीमेल दोनों ही डायरेक्टर्स ने काम के लिए साथ सोने का औफर दिया था. ऐसा नहीं है कि कास्टिंग काउच का सामना सिर्फ एक्ट्रेस को ही करना पड़ता है, ये लड़कों के साथ भी हो सकता है. इस तरह की स्थितियों का सामना दोनों को ही करना पड़ता है. हालांकि इस परेशानी से लड़कियों को ज्यादा जूझना पड़ता है. कास्टिंग काउच काफी फोर्सफुली किया जाता है. यहां तक कि कई बार इस में आपसी सहमति भी नहीं होती, उस स्थिति में यह काफी दर्दनाक हो जाता है.
इरफान की पत्नी सुपता सिकदर ने अपने फेसबुक एकाउंट पर एक पोस्ट लिखी है, जो इमोशनल होने के साथ ही उन के मजबूत इरादों को भी दिखाती हैं. सुपता सिकदर ने अपनी पोस्ट में लिखा है, ‘मेरे सब से अच्छे दोस्त और पार्टनर एक वौरियर (योद्धा) हैं और वे इस मुश्किल से बहुत ही बेहतरीन ढंग से निबट रहे हैं.
‘आप के काल्स और मैसेजेस के जवाब न देने के लिए मैं क्षमा चाहूंगी, लेकिन आप के प्यार और दुआओं के लिए मैं आप की शुक्रगुजार हूं. मैं भगवान और अपने पार्टनर की भी आभारी हूं कि उन्होंने मुझे वौरियर बनाया. इस समय मेरा फोकस उस युद्ध के मैदान पर है, जिसे मुझे जीतना है.’