भोजपुरी फिल्मों का मुकाबला सीधे हिंदी फिल्मों से है. ऐसे में इन की लोकप्रियता दूसरी क्षेत्रीय बोली की फिल्मों से ज्यादा है. पहले हिंदी फिल्मों में काम करने के लिए ज्यादातर कलाकार लड़केलड़कियां हिंदी बोली वाले उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश से आते थे. हीरोहीरोइन बनने के सपने देखने वाले सभी कलाकार हिंदी फिल्मों में काम नहीं पाते. लड़के हीरो की जगह पर दूसरे काम करने लगते थे. लड़कियां भी वापस घर आ जाती थीं. पर जब से भोजपुरी फिल्में बनने लगी हैं, छोटे शहरों की वे लड़कियां जो हीरोइन बनने के सपने देखती थीं, अब फिल्मी परदे पर चमकने लगी हैं. इन में से कई आज भोजपुरी फिल्मों की स्टार बन गई हैं.
पटना से अक्षरा सिंह, इलाहाबाद से पूनम दुबे, चंडीगढ़ से कल्पना शाह, हरदोई से अंजना सिंह, भोपाल से गुंजन पंत, आजमगढ़ से सनी सिंह जैसे कई नाम इस लिस्ट में शामिल हैं. छोटे शहरों से आने वाली लड़कियों में से ज्यादातर ने ऐक्टिंग की कोई क्लास नहीं की होती है. हां, बहुतों ने स्कूल में होने वाले नाटकों में हिस्सा लिया होता है. वहीं से वे ऐक्टिंग की दुनिया में कदम रखने आ जाती हैं.
आजमगढ़ की सनी सिंह ने बताया, ‘‘मुझे कई दोस्त कहते थे कि मेरी शक्ल अच्छी है, मैं हीरोइन बन सकती हूं. ऐसे में मैं ने घर वालों से बात कर के फिल्मों में कदम रखा. धीरेधीरे मुझे काम मिलना शुरू हुआ और मेरी एक पहचान बन गई. ‘‘आज भोजपुरी फिल्मों के दर्शक मुझे बहुत पसंद करते हैं. अगर भोजपुरी फिल्में नहीं होतीं तो शायद मुझे इतना जल्दीकाम मिलना शुरू नहीं होता.’’
हरदोई उत्तर प्रदेश का एक छोटा सा पिछड़ा जिला है. यहां की रहने वाली अंजना सिंह ने पहले लखनऊ में एक सौंदर्य प्रतियोगिता में हिस्सा लिया. वहां से वे ऐक्टिंग की दुनिया में आईं. आज वे भोजपुरी फिल्मों की बड़ी कलाकार हैं. उन को भोजपुरी फिल्मों का ‘हौट केक’ कहा जाता है. बदल रहे हैं परिवार
भोजपुरी फिल्मों की हीरोइन प्रियंका महाराज पटना जिले की रहने वाली हैं. हीरोइन बनने के लिए उन्होंने बड़ा संघर्ष किया है. पहले वे पटना से कुछ दिन दिल्ली में रहीं, फिर वहां से मुंबई गईं. प्रियंका महाराज कहती हैं, ‘‘मेरे पिताजी शुरुआत में राजी नहीं थे. मेरी मां तैयार थीं. ऐसे में वे मेरे साथ मुंबई आईं और यहां मेरे साथ रहीं. कुछ दिनों के बाद मेरे पिताजी भी तैयार हो गए. अब भी मैं मां के साथ मुंबई में रहती हूं.’’
पहले के समय में छोटे शहरों में रहने वाले परिवार अपने घर के बच्चों खासकर लड़कियों को फिल्मों में भेजने से बचते थे. यही वजह होती थी कि कई बार लड़केलड़कियां घर वालों को बिना बताए मुंबई चले आते थे. पर अब समय बदल गया है. बच्चे पहले अपने मांबाप को विश्वास में लेते हैं और मांबाप भी बच्चों पर भरोसा करते हैं. पहले लड़कियों को ले कर एक आम सोच होती थी कि फिल्मों में उन का शोषण होता है. अब शोषण की बात कोई मुद्दा नहीं रह गई है. लोगों में यह समझ आ गई है कि ऐसे हालात केवल फिल्मों में नहीं हैं, शोषण का शिकार तो हर जगह हुआ जा सकता है. ऐसे में छोटे शहरों की लड़कियों को पहले से ज्यादा मौके मिल रहे हैं.
मेहनत से मिली कामयाबी भोजपुरी फिल्मों में छोटे शहरों की लड़कियां ज्यादा कामयाब हैं. इन में भी आमतौर पर
वे गरीब और साधारण परिवारों से होती हैं. इस की वजह पर बात करते हुए सुधाकर मिश्र कहते हैं, ‘‘छोटे शहरों की लड़कियां आमतौर पर मेहनती होती हैं. उन की बौडी फिट होती है. वे लुक के हिसाब से भी भोजपुरी फिल्मों के लायक होती हैं. वे कम पैसों में ज्यादा और अच्छा काम कर लेती हैं.
‘‘शूटिंग पर रहने की बात हो या वहां तक आनेजाने की, वे किसी तरह की कोई परेशानी खड़ी नहीं करती हैं. ऐसे में वे भोजपुरी फिल्मों के डायरैक्टर और प्रोड्यूसर के बजट को सूट करती हैं. ‘‘हिंदी भाषी होने के चलते वे दर्शकों को पसंद आती हैं. कई भोजपुरी फिल्मों में गुजरात और महाराष्ट्र की लड़कियों ने काम किया, पर वे दर्शकों को पसंद नहीं आईं. ऐसे में हिंदी भाषा वाले इलाकों में रहने वाली लड़कियां भोजपुरी फिल्मों में ज्यादा कामयाब होती हैं.’’
भोजपुरी फिल्मों के एक डायरैक्टर कहते हैं, ‘‘भोजपुरी फिल्मों की कहानी गांव और छोटे शहरों के आधार पर बनती हैं. ऐसे में छोटे शहरों की लड़कियां भोजपुरी फिल्मों में ज्यादा कामयाब हो जाती हैं. ‘‘भोजपुरी फिल्मों में हर साल तकरीबन 100 फिल्में बनती हैं. ऐसे में हर साल नई लड़कियों के लिए मौके भी सामने आते हैं. एकदूसरे को देख कर छोटे शहरों की लड़कियां खुद आगे बढ़ रही हैं. इन के मातापिता भी मदद कर रहे है.’’
भोजपुरी फिल्मों की नायिका अंजना कहती हैं, ‘‘अब गांव की लड़कियां पहले जैसी नहीं रही हैं. वे भी मौका मिलने पर अपने हुनर का कमाल दिखा सकती हैं. भोजपुरी फिल्मों में काम करने वाली ज्यादातर लड़कियां छोटे शहरों से ही आती हैं. यहां वे अपनी चमक बिखेरती हैं.’’ भोजपुरी फिल्मों की डांसर सीमा सिंह कहती हैं, ‘‘पहले हमारे घर वाले यह सोचते थे कि गांवघर और परिवार के लोग क्या कहेंगे? पर अब वे यह नहीं सोचते हैं और अपनी लड़की का साथ देते हैं.’’
सीमा सिंह को खुद फिल्मों में आने के लिए सघर्ष करना पड़ा था. आज उन के घर के लोग ही नहीं गांव और शहर के लोग भी हम पर नाज करते हैं.