राजनीति से अपराधी करण को खत्म करने का दावा करने वाली भाजपा ने पूर्वांचल में माफिया राजन तिवारी को चुनाव के बीच पार्टी में शामिल करके अपने ही दावे पर सवालिया निशान लगा दिया है. राजन तिवारी को भाजपा में शामिल होने से पार्टी की अंदरूनी राजनीति भी प्रभावित होगी.
भाजपा के लिये पूर्वांचल की राह सबसे कठिन है. लोकसभा चुनाव में छठे और सातवें चरण के चुनाव में 27 सीटों पर चुनाव है. यहां वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चुनाव लड़ रहे हैं. उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गोरखपुर की प्रतिष्ठित सीट है. जहां से भोजपुरी अभिनेता रवि किशन प्रत्याशी हैं. भाजपा को अपना जनाधार बचाने के लिये माफिया राजन तिवारी को चुनाव के बीच भाजपा में शामिल करना पड़ा. पूर्वांचल में ठाकुर और ब्राहमण माफियाओं के बीच दुश्मनी पुरानी कहानी है. राजन तिवारी के शामिल होने से एक बार फिर से राजनीति के अपराधीकरण की चर्चा ने जोर पकड़ लिया है.
चुनाव ने खोली शौचालय की पोल
90 के दशक में अपराध की दुनिया में श्रीप्रकाश शुक्ल का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं था. यूपी पुलिस को सिर्फ इस माफिया गैंग से निपटने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स यानि एसटीएफ बनानी पड़ी थी. इस गैंग पर उस समय के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी लेने का आरोप लगा था. इस श्री प्रकाश के गैंग में राजन तिवारी नाम का एक सदस्य भी था. श्रीप्रकाश गैंग के करीब करीब सभी बदमाश एकएक कर के पुलिस मुठभेड़ में मारे गए लेकिन राजन तिवारी खुद को बचाकर अपना राजनीतिक सफर शुरू किया. राजन ने बिहार विधान सभा चुनावों से अपना सफर तय किया.
अपराध से राजनीति:
2019 के लोकसभा चुनाव में राजन तिवारी भाजपा में शामिल हो गए हैं. उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री गोपाल जी टंडन ने उनको भाजपा में शमिल करा लिया. गोपाल टंडन के पिता लाल जी टंडन बिहार के राज्यपाल हैं. राजन तिवारी के भाजपा में शामिल होने का बहुत प्रचार नहीं किया गया. इसकी वजह भाजपा की आंतरिक और जातीय राजनीति को माना जा रहा है. उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में माफियाओं के बीच भी जातीय द्वंद लंबे समय से चलता रहा है. ठाकुर और ब्राहमण वर्ग में आपसी टकराव माफियाओं में भी चलता रहता है.
नक्सलवाद की पृष्ठभूमि
वीरेंद्र शाही और हरिशंकर तिवारी के बीच यह लंबा सघर्ष चला था. वीरेन्द्र की हत्या के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला गैंग यहा प्रभावी रहा. उस समय भाजपा के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी की चर्चा आने के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला को मारने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार को एसटीएसफ बनानी पडी. श्रीप्रकाश के मारे जाने के बाद भी माफियों के बीच जातीय संघर्ष चलता रहा. गोरखपुर में गोरखनाथ पीठ के प्रभावी होने के बाद इस परंपरा पर रोक लगी. अब जबकि गोरखनाथ पीठ के महंत योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री है तब श्रीप्रकाश गैंग के राजन तिवारी को भाजपा में शामिल किया जाना बड़ी घटना मानी जा रही है.
श्री प्रकाश गैंग चर्चा में:
राजन तिवारी का नाम पहली बार चर्चा में तब आया था जब गोरखपुर के बाहुबली वीरेंद्र प्रताप शाही पर श्रीप्रकाश ने जानलेवा हमला किया था. 4 अक्टूबर 1996 को शाही जब अपने कार्यालय से घर जा रहे थे तब कैंट इलाके में उनकी कार पर बदमाशों ने जमकर फायरिंग की थी. इस हमले में शाही की जांघ में गोली भी लगी थी. गनर मारा गया लेकिन शाही बच गए थे. इस हमले में श्री प्रकाश के साथ राजन तिवारी को भी अभियुक्त बनाया गया.
इसके बाद तो राजन और श्रीप्रकाश का नाम कई बड़ी वारदातों में सामने आया. यूपी में एके 47 राइफल और 9 एम् एम् पिस्टल का चलन भी इसी गैंग की देन थी. राजन तिवारी पर सबसे बड़ा आरोप तब लगा जब बिहार के बाहुबली नेता बृज बिहारी प्रसाद पर पटना के इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में जानलेवा हमला हुआ. बृज बिहारी पर हमला बिहार के ही दूसरे बाहुबली भुटकुन शुक्ल के इशारे पर हुआ था.
बृज बिहारी की हत्या में श्रीप्रकाश शुक्ल, राजन तिवारी, मुन्ना शुक्ला, सूरजभान, मंटू तिवारी का नाम आया. बिहार के माफिया सूरजभान ने ही श्रीप्रकाश और राजन तिवारी की मुलाकात करवाई थी. भुटकन तब अपने भाई की हत्या का बदला बृज बिहारी से लेना चाहता था. मगर बृज बिहारी के खौफ की वजह से उसे बिहार में शूटर नहीं मिल रहे थे. ऐसे में श्रीप्रकाश ने बृज बिहारी की सुपारी ली और इस घटना को अंजाम दिया. गोरखपुर में रेलवे के ठेके पर कब्जे को ले कर हुए विवेक सिंह हत्याकांड में ही श्रीप्रकाश और सूरजभान एक गुट में शामिल थे. इस केस में सीबीआई कोर्ट से आजीवन कारावास की सजा तो हुयी मगर 2014 में बिहार हाईकोर्ट ने सबूतों के अभाव में सभी आरोपियों को बरी कर दिया. इसी साल वीरेंद्र शाही की हत्या के आरोप में भी राजन बरी हो गए.
इसलिए केजरीवाल के साथ नहीं अग्रवाल समाज
कैसे खत्म होगा राजनीति से अपराधीकरण:
बृजबिहारी प्रसाद की हत्या में जेल जाने से पहले ही राजन ने राजनीति का रास्ता चुन लिया. उस वक्त बिहार की राजनीति में बाहुबलियों का बोलबाला बढ़ा हुआ था. बिहार में राजन दो बार विधायक भी रहे. राजन को उत्तर प्रदेश में अपनी राजनीतिक पकड बनानी थी. इस वजह से वह उत्तर प्रदेश में अपना सियासी रास्ता बनाने की कोशिश में लग गए. भाजपा की सदस्यता लेने वाले राजन तिवारी मूल रूप से उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के सोहगौरा गांव के रहने वाले हैं. उनका बचपन इसी गांव में बीता मगर पढ़ाई गोरखपुर शहर में हुई. पूर्वी उत्तर प्रदेश में किसी मजबूत ब्राह्मण नेता की तलाश में जुटी भाजपा ने फिलहाल राजन तिवारी पर अपनी उम्मीदें टिका दी हैं. भाजपा ने लोकसभा चुनाव में अपने प्रभाव को बढ़ाने के लिये राजन तिवारी को बीच चुनाव में पार्टी में शामिल किया गया.
राजन तिवारी की रणनीति उत्तर प्रदेश विधान सभा का चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. भाजपा इस बहाने पूर्वांचल की राजनीति में ब्राहमण को महत्व देकर अपना जनाधार बढ़ाना चाहती है. राजन तिवारी के भाजपा में शामिल होने के बाद एक सवाल उठ रहा है कि योगी आदित्यनाथ और राजन तिवारी को एक ही पार्टी में रहना बताता है कि भाजपा में आपसी सियासत गरम हो रही है.