केन्द्र सरकार ने पिछले 5 साल में जो सबसे बड़ा काम किया वह स्वच्छता अभियान और पूरे देश में शौचालय बनाने का कहा. गांव से लेकर शहर तक शौचालय निर्माण को केन्द्र की मोदी सरकार की सबसे बडी उपलब्धि माना गया. 2019 के लोकसभा चुनाव में वोट डालने के लिये मतदान केन्द्र बनाये गये स्कूलों में बने शौचालयों ने इसकी पोल खोल दी. शहरों में सरकारी स्कूलों की खराब हालत को देखते हुये निजी स्कूलों को मतदान केन्द्र बनाया गया. निजी स्कूलों के मुकाबले सरकारी स्कूलों की हालत सबसे अधिक खराब पाई गई. पुराने सरकारी स्कूलों में बने शौचालय बेहद छोटे और पुराने किस्म के थे. शौचालय की कमरे सीलन नुमा था. यहां के शौचालयों में केवल मतदान करने वाले ही नहीं मतदान डयूटी पर गये कर्मचारियों का बोझ भी था. ऐसे में कुछ ही समय में यह शौचालय गंदगी से भर गये.
सबसे खराब हालत गांव में बने शौचालयों की थी. गांव के सरकारी स्कूलों में शौचालय बनाये जाने के बाद भी बेहद कम प्रयोग किये जाते है. लड़कियों के लिये बने शौचालय भी कम ही प्रयोग होते है. यह कम समय में ही गंदगी से भर गये. उन महिलाओं के लिये तो कुछ आराम था जो अपनी गाड़ियों से चुनावी डयूटी में गई थी. जो सरकारी बसों से लंबा समय तय करके डयूटी करने गई उनको स्कूल के ही शौचालय प्रयोग करने पड़े. सबसे मजेदार बात यह थी कि सरकारी कर्मचारियों को किसी भी तरह की शिकायत करने का भी डर था. वह खुलकर अपनी बात कह भी नहीं पा रहे थें. ऐसे में बहुत सारी महिला कर्मचारियों को आस-पास के घरों में बने शौचालय का प्रयोग करना पड़ा.
लोकसभा चुनाव:- “बेहाल कर रही चुनावी ड्यूटी”
गरमी के दिनों में चुनाव होने के कारण पानी की प्यास भी ज्यादा लगती हैं और शौचालयों का प्रयोग ज्यादा करना पड़ता है. स्कूलों में बने शौचालय बाहर से तो बहुत खूबसूरत नजर आते हैं पर अंदर वह दिखावा भर ही होते हैं. जिन स्कूलों में शौचालय है तो भी वहां पर गंदगी साफ करने वाले सफाई कर्मचारी नहीं है. ऐसे में गंदगी से भरे होने के बाद भी लोगों को उन शौचालय का प्रयोग ही करना पड़ा. चुनाव मतदान केन्द्र बनाते समय जिला प्रशासन ने इन बातों को ध्यान में नहीं रखा. कई महिला कर्मचारियों ने इस बात की शिकायत भी दबी आवाज में की. कई स्कूलों में टीन से घेर का अस्थाई शौचालय भी बनाये गये.
जिस केन्द्र सरकार ने अपने कार्यकाल में पूरे देश में बनाये गये शौचालय के आंकड़े जारी करके अपने काम को गिनाया. उसी केन्द्र सरकार के चुनाव में शौचालय की समस्या ने पूरे मतदान कर्मचारियों को परेशान कर दिया. शौचालय की परेशानी ने केन्द्र सरकार के स्वच्छता अभियान दावे के सच को भी परखा है. देखा जाये तो चुनाव में शौचालय की पोल खुल गई है. शहरो में सरकारी स्कूलों के मुकाबले निजी स्कूलों को प्राथमिकता दिये जाने के पीछे यही प्रमुख वजहें थी. सरकारी स्कूलों की जर्जर व्यवस्था अब मतदान केन्द्र बनाने लायक नहीं बची है. शौचालय ही नहीं पूरे स्कूल की दशा बदहाल हो रही है. जिससे निजी स्कूल मतदान केन्द्र बन रहे हैं.