अक्सर कहा जाता है कि भाई पर मुसीबत पडऩे पर सब से पहले भाई ही आगे खड़ा होता है. छोटे भाई अनिल द्वारा कर्ज का पैसा न चुकाने पर जेल जाने से बचाने के लिए बड़े भाई मुकेश अंबानी के आगे आने पर यह बात फिर कही जा रही है. करीब एक दशक से चल रहे अंबानी भाइयों के झगड़े के बीच संबंधों में सुधार की यह एक अच्छी खबर है.

असल में अनिल अंबानी की कंपनी आरकौम को स्वीडिश कंपनी एरिक्सन को 459 करोड़ रुपए चुकाने थे. मामला सुप्रीम कोर्ट में था. कोर्ट ने अनिल को 19 मार्च तक का समय दिया था या फिर जेल भेजने की चेतावनी दी थी. एरिक्सन मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल को अवमानना का दोषी माना था और जेल भेजने की चेतावनी दी थी.

एरिक्सन के पैसे चुकाने के बाद अनिल ने बड़े भाई मुकेश और भाभी नीता अंबानी का आभार व्यक्त किया.

एरिक्सन का भुगतान करने के बाद आरकौम ने जियो के साथ स्पैक्ट्रम, फाइबर और टावर आदि बेचने की डील खत्म करने की भी घोषणा की. एनसीएलटी में मुकेश अंबानी की कंपनी जियो आरकौम के एसेट के लिए बोली लगाती है तो यह उसे ये एसेट सस्ते में मिल सकते हैं.

इधर आरकौम ने नैशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल[एनसीएलटी] में दिवालिया याचिका लगाई है. यहां अब उसे पूरी प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा. आरकौम पर 11 बैंकों का 48,000 करोड़ रुपए का कर्ज भी है.

पिता धीरूभाई की 2002 में मृत्यु हो गई थी पर वह कोई वसीयत नहीं छोड़ गए. अंबानी भाइयों के बीच विवाद बढने लगा तो वे अलगअलग हो गए पर दोनों के बीच आपसी खटास कम नहीं हुई. पावर का बिजनेस अनिल के पास और प्राकृतिक गैस का मुकेश के पास था. मुकेश पावर प्लांट के लिए गैस की कीमत बढाना चाहते थे. अनिल भाई मुकेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए पर कोर्ट ने मई 2010 में मुकेश के पक्ष में फैसला दे दिया.

यह अनिल के लिए नुकसानदेह था. दोनों भाइयों के बीच यह समझौता भी हुआ था कि मुकेश कुछ समय तक टेलीकौम बिजनेस में नहीं आएंगे. 2010 में यह करार खत्म हुआ तो मुकेश ने 2016 में जियो लांच किया. यह बात अनिल के लिए बुरी थी क्योंकि जियो ने सर्विसेज के जो रेट तय किए उस से दूसरी सभी टैलीकोम कंपनियों का मुनाफा घटने लगा था.

बहरहाल मुकेश अंबानी द्वारा छोटे भाई का कर्ज चुका कर जेल जाने से बचा लेने की मिसाल परिवारों के झगड़ों के बीच ठंडी हवा के झोंके की तरह है. अनिल अंबानी अगर जेल भेज दिए जाते तो  यह स्थिति सब से पहले भारत के सब से अमीर, विश्व के शीर्ष 11 व्यक्तियों में दौलतमंद माने जाने वाले मुकेश अंबानी के लिए ही मुश्किल भरी होती. थूथू उन की भी होती. तरहतरह की बातें होतीं. दुनिया भर में उद्योग जगत और समाज में गलत संदेश जाता इसलिए मुकेश का भाई को बचाना जरूरी था. लोकलाज ही सही मुसीबत के वक्त परिवार सब से पहले काम आया.

अंबानी परिवार बहुत धार्मिक रहा है. वह बारबार नाथद्वारा जाता रहता है. खूब दानदक्षिणा देता है. अंबानी परिवार मोरारी बापू को अपना धार्मिक गुरु मानता है. भाइयों के विवाद में उन्होंने भी सुलह कराने की कोशिश की थी पर बात नहीं बनी.

कहने को धर्म प्रेम, शांति की सीख देता आया है पर अनिल को जेल जाने से बचाने के लिए धर्म आगे नहीं आया, उन की मां आगे आईं. कहा जा रहा है कि मां कोकिलाबेन ने मुकेश को पैसे देने के लिए मनाया.

लोग प्रेम, शांति, सुखसमृद्घि के लिए धर्म की शरण में जाते हैं पर धर्म ने भाइयों को लडऩे की सीख दी. सुलह की नहीं. जमीन प्रोपर्टी के लड़ रहे भाई कहते सुने जा सकते हैं कि संपत्ति के लिए तो कौरवपांडव भाइयों में भी झगड़ा हुआ था. अक्सर भाइयों की लड़ाई के रामायण, महाभारत के उदाहरण दिए जाते हैं.

रावण और विभीषण, बालि और सुग्रीव, कौरव और पांडवों जैसे भाइयों की लड़ाई के उदाहरण भरे हुए हैं. धर्म के ये किस्से तो भाइयों के रिश्तों में आग लगाने वाले हैं, बुझाते नहीं हैं. धर्म भाइयों के झगड़े की प्रेरणा है. यही वजह है कि समाज में जहां देखो भाईभाई के जर, जोरू और जमीन को ले कर सड़कों, अदालतों में आम हो रहे हैं.

हर दूसरेतीसरे परिवार में भाइयों के बीच मनमुटाव, कलह चलती है. धार्मिक गुरुओं, प्रवचकों की बढती फौज के बावजूद पारिवारिक झगड़े कम नहीं हो रहे. आए दिन औद्योगिक परिवारों की लड़ाई अदालतों के माध्यम से सामने आती रहती है. इन दिनों फोर्सिट हैल्थकेयर और रेलिगेयर इंटरप्राइजेज के प्रमोटर भाइयों मलविंदर मोहन सिंह और शिविंदर मोहन सिंह का मामला भी सुर्खियों में हैं.

दोनों भाइयों ने धोखाधड़ी और मारपीट का मामला दर्ज कराया था पर यहां भी दोनों भाइयों की मां और परिवार बीच में आया. उन के कहने, समझाने पर शिकायत वापस ली गई थी. बड़े भाई मलविंदर का कहना था कि शिविंदर प्रियस रियल एस्टेट कंपनी की बोर्ड मीटिंग में दखल देने को  कोशिश करते थे. प्रियस ने गुरिंदर सिंह ढिल्लन की कंपनियों और उन के परिवार को 2000 करोड़ रुपए का कर्ज दे रखा था. ढिल्लन राधा स्वामी संत्संग ब्यास का आध्यात्मिक  गुरु हैं और मलविंदर, शिविंदर का परिवार उन का अनुयायी है.

शिविंदर ने पिछले साल सितंबर में बड़े भाई मलविंदर पर फोर्टिस का पैसा डुबोने का आरोप लगाते हुए नेशनल कंपनी ला ट्रिब्यूनल में याचिका दायर की थी पर बाद में मां और परिवार के सदस्यों ने मिलबैठ कर विवाद सुलझाने की सलाह दी थी. इस के बाद शिङ्क्षवदर ने याचिका वापस ले ली थी. भाइयों ने आपस मे मारपीट का मामला भी पुलिस में दर्ज कराया था.

फरवरी 2018 में दोनों भाई फोर्टिस से अलग हो गए थे. पिछले साल नवंबर में मलेशिया की कंपनी आईएचएच हैल्थकेयर ने 4000 करोड़ रुपए में फोर्टिस में 31.1 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीद ली थी.

दोनों भाइयों ने 1996 में फोर्टिस हैल्थकेयर की शुरुआत की थी. फिलहाल देश के 45 शहरों में यह अपनी सेवाएं दे रही हैं. दुबई, मारिशस और श्रीलंका में भी इस का नेटवर्क है. 2016 में दोनों भाइयों ने फोब्र्स की 100 सब से अमीर भारतीयों की लिस्ट में 92 नंबर पर जगह बनाई थी. उस वक्त दोनों की संपत्ति 8,864 करोड़ रुपए थी.

कुछ समय पहले एस्टेट करोबारी और लिकर ङ्क्षकग कहे जाने वाले पौंटी चड्ïढा को उन के ही भाई ने गोलियों से भून कर हत्या कर दी थी.

इस तरह आए दिन भाइयों के झगड़े सामने आते हैं. भाइयों के बीच झगड़े का असर केवल परिवार, समाज पर ही नहीं, देश पर भी पड़ता है. अगर भाई किसी बड़े व्यवसाय के संचालक हों. औद्योगिक, कौरपोरेट घरानों की आपसी कलह से उत्पादकता प्रभावित होती है. देश के राजस्व को नुकसान होता है. काम करने वाले कर्मचारियों पर असर पड़ता है. वह खुद तो गहरे तौर पर प्रभावित होते ही हैं. इस से बहुत बड़ा आर्थिक और सामाजिक नुकसान होता है.

भाइयों के झगड़ों के मामले अदालतों द्वारा तय करने के अलावा समाज के पास ऐसा कोई प्रभावी कारगर व्यवस्था नहीं है जहां सुलह कराई जा सके. उद्योग व्यापार संगठनों के पास भी ऐसा कोई सिस्टम नहीं है. हालांकि पारिवारिक रिश्तेदार बीचबचाव के लिए आगे आते तो हैं पर वहां सुलह की गारंटी नहीं होती. कोई कारगर तरीका नहीं है. हालांकि अंबानी परिवार अपने धार्मिक गुरु मोरारी बापू के पास भी गए पर कोई समाधान न निकल पाया. हां, गुरुजी ने मोटी दक्षिणा जरूर ऐंठ ली होगी.

बातबात में धर्म के किस्सों की मिसालें देने वाले समाज को धर्म के बर्बाद करने वाले किस्सों की बजाय भाइयों के बीच प्रेम स्थापित करने वाली मिसालें सामने रखनी चाहिए. यह व्यवस्था समाज को बनानी होगी. समाज को एक ऐसा ढांचा बनाना चाहिए जहां पारिवारिक एकता, प्रेम, शांति कायम रह सके.

कानून भाइयों के बीच संपत्ति का बंटवारा तो करा सकता है पर रिश्तों को जोडऩे का काम भाइयों को खुद, परिवार और समाज को ही करना होगा. मां से बड़ा मध्यस्थ तो कोई नहीं हो सकता. आपसी प्रेम को परिवार ही लौटा ही सकता है.

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