आजकल अधिकतर परिवार एकाकी होते हैं. परिवार में बच्चों की संख्या भी कम होती है. अधिकतर मातापिता की 1-2 संताने ही होती हैं. देखा जाए तो परिवार नियोजन के तहत यह अच्छा भी है, लेकिन बच्चों के व्यक्तिगत विकास की बात की जाए, तो एकाकी परिवारों में बच्चों को सामाजिक व्यवहार सीखने बहुत कठिनाइयां होती हैं. खासतौर पर बात जब शेयरिंग की होती है, तो ऐसे परिवार के बच्चे जल्दी अपनी वस्तुओं को दूसरे बच्चों के साथ शेयर करने के लिए तैयार नहीं हो पाते कयोंकि घर में उन्हें इतनी प्राइवेसी मिल चुकी होती है और अपने प्रत्येक सामान के वे अकेले मालिक हो चुके होते हैं कि उन को अपने सामान को किसी और द्वारा इस्तेमाल किया जाना स्वीकार नहीं होता.
कहने के लिए तो शेयरिंग की आदत बच्चों में डलवाना बहुत छोटी सी बात है. लेकिन यही छोटीछोटी बातें बच्चों के विकास में बहुत एहमियत रखती हैं. ज्यादातर मातापिता इस बात पर ध्यान नहीं देते, जबकि बच्चे के 3 वर्ष के होने के बाद से उन में अच्छी आदतों का प्रवाह करना बहुत जरूरी है. इन आदतों में शेयरिंग की आदत सब से अव्वल है क्योंकि यही वह उम्र होती है जब मातापिता बच्चों का स्कूल में दाखिला करवाते हैं.
दरअसल, स्कूल एक ऐसा स्थान होता है जहां बच्चों को अपनी जगह से ले कर कौपीकिताबें यहां तक की खानेपीने का सामान तक सभी कुछ साथी बच्चों से शेयर करना पड़ता है. ऐसे में यदि मातापिता ने अपने बच्चे में पहले से यह आदत नहीं डलवाई है, तो उसे बहुत ज्यादा दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. बच्चों को किसी भी तरह की दिक्कतों का सामना न करना पड़े और उन के व्यक्तित्व विकास में कोई रुकावट न आए, इस के लिए मातापिता अपने बच्चों में छोटेछोटे प्रयासों से शेयरिंग की आदत डलवा सकते हैं. इस के लिए आप को घर से ही शुरुआत करनी होगी. आइए, हम आपको बताते हैं कैसे डालें बच्चों में शेयरिंग की आदत:
1. घर पर माहौल खुशनुमा बनाएं: घर बच्चों का पहला स्कूल होता है और मातापिता पहले अध्यापक होते हैं . इसलिए घर पर ही बच्चों को अपना सामान दूसरों से शेयर करने की आदत डलवाएं. खासतौर पर खानेपीने की वस्तुओं में शेयरिंग की भावना का बहुत महत्व है. यदि घर में 2 बच्चे हैं, तो दोनों को अलगअलग एक ही सामान देने की जगह एक सामान ही दें और दोनों को बारीबारी से उसे शेयर करने को कहें. इस से बच्चे में किसी भी सामान पर अपना अधिकार जमाने और उस के लिए लड़ने जैसी भावना विकसित नहीं हो पाएगी और यदि घर में एक ही बच्चा है, तो उसे परिवार के बाकी सदस्यों के साथ अपना सामान शेयर करने की आदत डलवाएं. उदाहरण के तौर पर, बच्चे को एक चिप्स का पैकेट दिलाने के बाद उस से कहें कि वह इसे खाने से पहले घर के सभी सदस्यों को पूछे. इतना ही नहीं, बच्चे द्वारा पूछने पर औपचारिकता ही सही एक चिप्स पैकेट में से जरूर लें और उसे इस के लिए शुक्रिया भी कहें ताकि बच्चें को एहसास हो जाए की वह कुछ अच्छा काम कर रहा है.
2. बच्चों को बताएं किस वस्तु को कर सकते हैं शेयरः इस बात से आप भी वाकिफ हैं कि हर चीज को दूसरों से शेयर नहीं किया जा सकता है. मगर वह कौनकौन सी चीजें हैं, जिन्हें शेयर किया जा सकता है, इस की जानकारी आप को बच्चे को देनी पड़ेगी. बच्चे अपने उस सामान को किसी से भी शेयर नहीं कर सकते जो उन के पास एक ही हो और सिर्फ उन के लिए ही लिया गया हो. आप को उन्हें यह भी बताना पड़ेगा कि किस वस्तु को किस के साथ शेयर करना है और इस से उन्हें क्या लाभ मिलेगा. जैसे बच्चों को बताएं कि अपने खिलौनों को अकेले खेलने से ज्यादा किसी दोस्त के साथ खेलने में ज्यादा मजा आएगा. दरअसल, जो बच्चे अकेले रहते हैं उन्हें अकेले खेलने में ही मजा आता है. लेकिन अकेले खेलना उन की मानसिक, शारीरिक और व्यक्तिगत विकास पर बुरा प्रभाव डालता है.
3. क्यों जरूरी है शेयरिंगः बच्चे अपने सामान को लेकर बहुत ही पजेसिव होते हैं. अपने सामान के साथ वह एक अपना अलग ही कंफर्ट जोन बना लेते हैं. यह कंफर्ट जोन उन्हें विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में असमर्थ बना देता है. जैसे घर में 2 बच्चे हैं, दोनों के पास अपनेअपने क्रियोन कलर्स हैं. एक बच्चे के पास कुछ कलर्स कम हो जाते हैं. ऐसे में दूसरे बच्चे को जब उस के कलर्स को शेयर करने के लिए कहा जाता है तो वह तुरंत ही तुनकते हुए कहता है कि मैं क्यों दूं, ये तो मम्मीपापा ने मुझे दिलाया है. मैं नहीं दूंगा/दूंगी. इस स्थिति में आपको नए कलर्स खरीद कर ही दूसरे बच्चे को देने पड़ेंगे. अब खुद सोचिए, बच्चों में शेयरिंग की आदत होती तो आप के पैसे बच सकते थे.
वैसे बात सिर्फ पैसों की नहीं है. शेयरिंग की भावना बच्चों में अहंकार जैसी गलत भावना को भी प्रवेश नहीं करने देती. इतना ही नहीं, शेयरिंग हैबिट रखने वाले बच्चे ही बड़े हो कर व्यवहारकुशल और सहयोगी प्रवृत्ति के बनते हैं. साथ ही उन में अपनों का खयाल रखने और उन की जरूरत समझने की समझ भी आती है. ऐसे बच्चे अपनी पर्सनल और प्रोफैशनल दोनों ही जीवन में सफल रहते हैं.
4. कैसे डलवाएं आदतः शेयरिंग की आदत डलवाने के लिए सब से बेहतर तरीका है बच्चों को ऐसी सिचुऐशन दें जिस में उसे सभी से सामान शेयर करने के लिए खुद ही पूछना पड़े. उदाहरण के तौर पर दो बच्चे हैं, तो एक को बैट और एक को बौल दिलाएं. अब बैट के इस्तेमाल के लिए बौल का होना जरूरी है इसलिए बैट वाले बच्चे को बौल के लिए अपना बैट बौल वाले बच्चे से शेयर करना ही पड़ेगा. इसी तरह यदि बच्चा एक ही है तो उसे दूसरे तरीके से शयरिंग करना सिखया जा सकता है. जैसे, आप ने आईस्क्रीम खाने का प्लान बनाया है, तो आप तीनों (माता, पिता और बच्चे) अलगअलग फ्लैवर की आईस्क्रीम लें. जाहिर है, बच्चे का मन चलेगा की वह आप की आइस्क्रीम भी टेस्ट करे. ऐसे में उस से कहें कि पहले वह भी अपनी आईस्क्रीम शेयर करे. इस तरह बच्चा समझ पाएगा की दूसरे से उन के सामान की अपेक्षा तब ही की जा सकती है, जब खुद भी सामान को शेयर करने के लिए तैयार हों.
भावनाएं भी करें शेयर
बच्चों को सिर्फ सामान की शेयरिंग ही न सिखाएं बल्कि उन्हें खुद से और अपने दोस्तों से भावनाओं को जाहिर करने का तरीका भी सिखाएं. कई बार बच्चे संकोची स्वभाव के होते हैं. चाहते हुए भी किसी से सहयोग मांगने में हिचकिचाते हैं. लेकिन बच्चों को सिखाएं कि सहयोग देना और लेना दोनों ही अनिवार्य है.
न करें जबरदस्तीः
बच्चों को डांट कर उन के सामान को शेयर करने के लिए विवश न करें. इस से बच्चा चिड़चिड़ा हो जाएगा. बच्चों को समझाएं कि यदि वह अपना सामान किसी और से शेयर करेगे तो दूसरे लोग भी जरूरत पड़ने पर अपना सामान उन को इस्तेमाल करने के लिए देंगे.