धर्म में छल, कपट के सहारे सत्ता हथियाने की सीख लेने वाली भाजपा का दांव कर्नाटक में सफल नहीं हो पाया. विधायकों की बाड़ेबंदी और खरीदफरोख्त का खेल नाकाम हो गया. राज्य में कांग्रेसजेडीएस गठबंधन सरकार फिलहाल बच भले ही गई हो, पर खतरा अभी बरकरार है.

दरअसल सरकार के 4 विधायकों के बगावत की खबरें आई तो कहा गया कि इन विधायकों को भाजपा द्वारा खरीदने का प्रयास किया गया है. खतरा भांप कर कांग्रेस विधायक दल के नेता सिद्घरमैया बैंगलुरू शहर के बाहर एक रिसौर्ट में अपने विधायकों को ले गए.

उधर कर्नाटक भाजपा के अध्यक्ष बीएस येदियुरप्पा ने भी अपने विधायकों की बाड़ेबंदी कर दी. पार्टी के 104 विधायकों को गुरुग्राम के एक रिसोर्ट में ले जाया गया. दोनों ओर से खरीदफरोख्त के आरोपप्रत्यारोप लगाए गए. जेडीएस विधायकों का आरोप है कि भाजपा ने 60 करोड़ रुपए और मंत्रिपद का औफर दिया था. कांग्रेस के करीब 8 विधायकों ने पाला बदलने का वादा किया था.

कांग्रेस नेता सिद्घरमैया ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह गठबंधन सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं क्योंकि उन्हें आगामी लोकसभा चुनावों में तीन या चार सीटें ही मिलने का डर है.

दरअसल 7 महीने पहले कर्नाटक में कांग्रेसजेडीएस की गठबंधन सरकार बनी थी. मई 2018 में हुए चुनाव में भाजपा को 104 सीटें मिली थीं. वह सब से बड़ी पार्टी बन कर आई. राज्यपाल वजूभाई ने भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था. बहुमत के लिए जरूरी 112 सीटों का आंकड़ा न होने के बावजूद येदियुरप्पा सरकार बन गई थी.

राज्यपाल ने 15 दिन में बहुमत सिद्घ करने का मौका दिया था पर सुप्रीम कोर्ट ने एक ही दिन का मौका दिया. 80 सीटों वाली कांग्रेस ने 37 सीटों वाले जेडीएस के नेता एचडी कुमारस्वामी को समर्थन दे कर मुख्यमंत्री बना दिया.

224 सदस्यीय विधानसभा में बहुमत के लिए 112 सीटें जरूरी हैं. भाजपा के पास 104 सीटें हैं. ऐसे में बहुमत से थोड़ी दूर बैठी सत्ता के लिए जीभ लपलपा रही भाजपा कांग्रेसजेडीएस गठबंधन सरकार कभी भी गिरा सकती है.

कर्नाटक में विधायकों की इस खरीदफरोख्त कर सरकार गिराने के प्रयासों के बाद मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी कांग्रेस के सामने खतरा मंडराने लगा है. इन दोनों राज्यों में कांग्रेस सरकारें बहुमत के किनारे पर हैं. यहां की सरकारें सतर्क हो गई हैं.

असल में राजनीतिक दलों को ऐनकेन प्रकारेण सत्ता प्राप्ति के लिए कोई भी अनैतिक काम करने की प्रेरणा पुरानी कहानियों  से मिलती रही है. पुराणों में समुद्र मंथन से अमृत कलश निकलने की कथा है. कहा गया है कि इस अमृत में अमरता के गुण थे. लिहाजा इसे पाने के लिए देवताओं और असुरों में छीनाझपट्टी हुई. बाद में अमृत हासिल करने के लिए देवताओं ने छल, कपट की सीमाएं लांघ दी थी.

हमारे नेता इन पुरानी कथाओं को जबतब उद्घृत करते रहते हैं और इसे हमारी महानता के साथ जोड़ कर गर्व से इठलाते नजर आते हैं.

सवाल इस देश की जनता का है. नेता वोट ले कर अपने स्वार्थ के लिए पाला बदल लेते हैं पर उस जनता के बारे में सोचने की जहमत नहीं उठाते जिन्होंने उसे अपना नुमाइंदा बनाया है उस के प्रति उस की कोई जिम्मेदारी है. जिम्मेदारी और जवाबदेही की सीख धर्म नहीं, लोकतांत्रिक संविधान सिखाता है पर अफसोस हमारे नेता लोकतांत्रिक संविधान से सर्वोपरि धर्म को मानते हैं.

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