18 सितंबर, 2018 को ज्योंज्यों दिन चढ़ता जा रहा था, त्योंत्यों कामता की चिंता भी बढ़ती जा रही थी. उस के मन में तरहतरह की आशंकाएं उठने लगी थीं. दरअसल, गांव में बीती रात को गणेश पूजा का आयोजन था. इस पूजा में शामिल होने के लिए कामता के पिता विश्राम सिंह भी गए थे. कार्यक्रम खत्म हो जाने के बाद पासपड़ोस के सब लोग घर वापस लौट आए थे, लेकिन विश्राम सिंह नहीं लौटे थे.
कामता की समझ में नहीं आ रहा था कि उस के पिता कहां चले गए और घर क्यों नहीं लौटे. उस ने पूजास्थल और गांव का कोनाकोना छान मारा, जो लोग पूजा कार्यक्रम में गए थे. उन से भी पिता के बारे में पूछा, पर विश्राम सिंह का कुछ पता नहीं चल सका.
जब शाम तक विश्राम सिंह का कोई पता नहीं चला तो कामता अपने दोस्त विजय कोरी को साथ ले कर शाम करीब 5 बजे थाना महाराजपुर जा पहुंचा और इंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी को पिता के लापता होने की जानकारी दे दी.
इंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी ने 62 वर्षीय विश्राम सिंह की गुमशुदगी दर्ज कराने के बाद इस मामले की जांच एसआई धर्मपाल सिंह को सौंप दी.
एसआई धर्मपाल सिंह अपने साथ कांस्टेबल राजा सिंह, ओमप्रकाश और नीरज को साथ ले कर विश्राम सिंह के गांव रूमा पहुंच गए. वहां उन्होंने परिवार वालों व गांव के लोगों से विश्राम सिंह के बारे में पूछताछ की. उन सभी ने बताया कि विश्राम सिंह गणेश उत्सव में दिखाई दिए थे.
वह शराब के नशे में कार्यक्रम में नाच भी रहे थे. लेकिन कार्यक्रम खत्म होने के बाद कहां गए, इस का किसी को पता नहीं था. लोगों से बात करके पुलिस थाने लौट आई. वह दिन ही नहीं, अगला दिन भी बीत गया लेकिन विश्राम सिंह का कुछ पता नहीं चला. पिता के गायब होने से कामता का बुरा हाल था.
हवा ने दी सूचना
22 सितंबर, 2018 की सुबह पुरवाई चल रही थी. तभी गांव के लोगों को बदबू का अहसास हुआ. लोग समझ नहीं पा रहे थे कि बदबू कहां से आ रही है. लोग सोचने लगे कि कोई कुत्ता मर गया होगा. पर बदबू ऐसी थी कि सांस लेनी मुश्किल हो रही थी.
इसी बीच लोगों ने महसूस किया कि बदबू शायद गांव के पूर्वी छोर पर स्थित कुएं से आ रही है. वह कुआं रामभरोसे के खेत पर था, जो सूख गया था. लोगों ने जब उस कुएं में झांक कर देखा तो हैरान रह गए, क्योंकि उस में एक लाश पड़ी थी.
कुएं में लाश पड़ी होने की बात कुछ ही देर में पूरे गांव में फैल गई. फिर तो देखतेदेखते वहां भीड़ जुट गई. इसी भीड़ में कामता भी जा पहुंचा. लोग कुएं में झांकते और बदबू की वजह से नाक पर रूमाल रख कर दूर हट जाते. कामता ने भी कुएं में झांक कर देखा. चूंकि लाश औंधे मुंह पड़ी थी, इसलिए वह भी नहीं पहचान पाया कि लाश किस की है.
चूंकि उस के पिता कई दिनों से लापता थे, सो उस के मन में तरहतरह के विचार आने लगे. कामता के पास एसआई धर्मपाल सिंह का फोन नंबर था. उस ने उन्हें फोन कर के कुएं में किसी आदमी की लाश पड़ी होने की जानकारी दी.
सूचना मिलते ही एसआई धर्मपाल सिंह साथी पुलिसकर्मियों के साथ घटनास्थल पर पहुंच गए. कुएं में झांकने के बाद उन्होंने गांव के युवकों से कुएं में उतरने के लिए कहा, लेकिन तेज बदबू की वजह से कोई भी तैयार नहीं हुआ.
तब उन्होंने सरसौल कस्बे से 2 जमादारों को बुलवाया. उन्हें किसी तरह राजी कर के एसआई धर्मपाल सिंह ने कुएं में उतारा और रस्सी के सहारे लाश कुएं से बाहर निकाल ली. वह लाश विश्राम सिंह की ही थी.
अपने पिता की लाश देख कर कामता फूटफूट कर रो पड़ा. उस की पत्नी संगीता भी दहाड़ मार कर रो रही थी, यह बात दीगर थी कि उस की आंखों से एक भी आंसू नहीं निकल पा रहा था. दरोगा धर्मपाल सिंह ने विश्राम सिंह का शव कुएं से बरामद होने की सूचना थानाप्रभारी इंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी को दे दी. वह भी मौके पर पहुंच गए. इंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी ने यह बात एसएसपी अनंतदेव त्रिपाठी और एसपी (देहात) प्रद्युम्न सिंह को भी दी.
घटनास्थल का निरीक्षण कर पुलिस यह पता लगाने की कोशिश कर रही थी कि विश्राम सिंह की हत्या कर शव को कुएं में फेंका गया था या वह नशे की हालत में कुएं में गिरे थे. बहरहाल, पुलिस ने जरूरी काररवाई निपटा कर लाश पोस्टमार्टम के लिए लाला लाजपत राय अस्पताल भेज दी.
निकला हत्या का मामला
अगले दिन थानाप्रभारी इंसपेक्टर रविशंकर त्रिपाठी को जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिली तो वह चौंके. क्योंकि उस में बताया गया था कि विश्राम सिंह की हत्या गला घोंट कर की गई थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट मिलने के बाद पुलिस ने अज्ञात के खिलाफ हत्या की रिपोर्ट दर्ज कर ली.
विश्राम सिंह की हत्या किस ने और क्यों की? इस की जानकारी के लिए एसआई धर्मपाल सिंह ने सब से पहले मृतक के बेटे कामता व उस की पत्नी संगीता से पूछताछ की. दोनों ने बताया कि पिताजी की न तो किसी से रंजिश थी और न ही जमीन, मकान का कोई विवाद था. उन की बस एक ही कमजोरी थी कि किसी के भी कहने से शराब पी लेते थे.
इस के बाद धर्मपाल सिंह ने गांव के कुछ लोगों से पूछताछ की तो उन्होंने बताया कि उन के घर में विजय कोरी का ज्यादा आनाजाना था. कोरी उन के बेटे कामता प्रसाद का दोस्त है. विजय कोरी भी गणेश उत्सव में मौजूद था और उस समय वह भी नशे में था.
विजय कोरी पुलिस के संदेह के घेरे में आया तो दरोगा धर्मपाल सिंह ने उसे थाने बुलवा लिया. थाने में जब उस से पूछताछ की गई तो उस ने यह तो स्वीकार किया कि कामता उस का दोस्त है और उस के घर आनाजाना है. किंतु विश्राम सिंह की हत्या करने से वह साफ मुकर गया. उस ने अफसोस जताते हुए कहा, ‘‘विश्राम चाचा सीधेसादे और अच्छे स्वभाव के थे. वह उसे अपने बेटे की तरह मानते थे. उन की मौत से उसे बेहद दुख हुआ.’’
दरोगा धर्मपाल सिंह को भी लगा कि शायद विजय सच बोल रहा है, इसलिए उन्होंने उस की बातों पर विश्वास कर के उसे घर भेज दिया. विजय थाने से घर तो आ गया लेकिन उस के बाद वह परेशान रहने लगा. वह सोचने लगा कि आज तो वह झूठ बोल कर पुलिस से बच गया. लेकिन कल सच्चाई सामने आ गई तो वह पकड़ा जाएगा और जेल की हवा खानी पड़ेगी.
पुलिस के डर और जेल जाने के भय से विजय कोरी गांव से फरार हो गया. उधर दरोगा धर्मपाल सिंह ने कांस्टेबल राजा सिंह को इस केस की सुरागरसी के लिए लगा दिया था. राजा सिंह ने सादे कपड़ों में रूमा गांव में डेरा डाल दिया. राजा सिंह ने चोरीछिपे लोगों से जानकारी हासिल की तो चौंकाने वाली बात सामने आई.
पता चला कि मृतक विश्राम सिंह की बहू संगीता से विजय कोरी के नाजायज संबंध हैं. इन संबंधों का विश्राम सिंह विरोध करने लगे थे. शायद इसी विरोध के चलते उन की हत्या हुई है. पकड़े जाने के डर से विजय गांव से ही फरार हो गया है.
इस के बाद विजय पूरी तरह से संदेह के घेरे में आ गया था. उसे पकड़ने के लिए पुलिस ने ताबड़तोड़ छापेमारी शुरू कर दी. लेकिन वह पुलिस को नहीं मिला. संभवत: विजय को पुलिस काररवाई की सारी जानकारी मिल रही थी. पुलिस की इस काररवाई से विजय कोरी घबरा गया. इसी घबराहट में उस ने कानपुर-इलाहाबाद रेलवे ट्रैक पर ट्रेन से कट कर आत्महत्या कर ली. यह बात 5 अक्तूबर, 2018 की है.
संगीता आई निशाने पर
जांच अधिकारी धर्मपाल सिंह को जब विजय के आत्महत्या करने की जानकारी मिली तो उन्हें पूरा विश्वास हो गया कि विश्राम सिंह की हत्या उसी ने की थी. हत्या के रहस्य की जानकारी उस की प्रेमिका संगीता को जरूर रही होगी, यह सोच कर धर्मपाल महिला कांस्टेबल आरती व सोनी पाल को साथ ले कर संगीता के घर पहुंच गए.
संगीता उस समय घर पर ही मौजूद थी. उस वक्त वह मोबाइल फोन पर किसी से बात कर रही थी. पुलिस को देख कर संगीता घबरा गई और अटकते हुए बोली, ‘‘साहब, हमारे ससुर के कातिल का कुछ पता चला?’’
‘‘हां, चल गया है.’’ धर्मपाल सिंह ने उसे घूरते हुए कहा.
‘‘कौन है वह?’’ संगीता ने पूछा.
‘‘थाने चलो, वहां तुम्हें सब पता चल जाएगा.’’ कह कर एसआई धर्मपाल ने महिला पुलिस को इशारा किया. महिला कांस्टेबल आरती व सोनी पाल ने संगीता को हिरासत में ले लिया और थाने ले आईं.
थाने ला कर जब संगीता से पूछताछ की तो वह घडि़याली आंसू बहा कर उन्हें गुमराह करने लगी. लेकिन जब उस से सख्ती की गई तो वह टूट गई और ससुर विश्राम सिंह की हत्या का अपराध स्वीकार कर लिया. एसपी (देहात) प्रद्युम्न सिंह भी थाने आ गए थे. उन के सामने संगीता ने स्वीकार किया कि उस ने अपने प्रेमी विजय कोरी के साथ मिल कर ससुर की हत्या की थी.
हत्या के बाद शव को उन दोनों ने कुएं में फेंक दिया था. संगीता ने घर में छिपा कर रखा गया वह अंगौछा भी बरामद करा दिया, जिस से विश्राम का गला घोंटा गया था. संगीता से पूछताछ के बाद प्यार से ले कर ससुर का गला घोंटने तक की जो कहानी सामने आई, वह इस प्रकार थी.
संगीता उत्तर प्रदेश के जिला कन्नौज के गांव गबडहा के रहने वाले दीपनारायण की बेटी थी. खेतीकिसानी कर के गुजरबसर करने वाले दीपनारायण के परिवार में पत्नी के अलावा 2 बेटे तथा 2 बेटियां थीं, जिन में संगीता सब से छोटी थी. वह अपने अन्य भाईबहनों से पढ़नेलिखने के अलावा हर मामले में तेज थी.
संगीता जवान हुई तो दीपनारायण ने उस की शादी कानपुर के रूमा गांव निवासी कामता प्रसाद के साथ कर दी. कामता प्रसाद के पिता विश्राम सिंह केस्को (कानपुर इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई कंपनी) में संविदा कर्मचारी थे. कामता सीधासादा युवक था. संगीता जैसी सुंदर, कर्मठ, व्यवहारकुशल पत्नी पा कर वह निहाल हो गया था.
संगीता की सास रमा की मृत्यु हो चुकी थी, इसलिए ससुराल आते ही उस ने घर की सारी जिम्मेदारी संभाल ली थी. पति के साथसाथ वह ससुर का भी पूरा खयाल रखती थी. बहू की इस सेवा से विश्राम सिंह भी खुश थे. वह अपनी कमाई का आधा पैसा बहू को दे देते थे. संगीता का जीवन हंसीखुशी से बीत रहा था.
लेकिन संगीता ने अपने जीवन में जो मौजमजे के सपने देखे थे, कामता के साथ पूरे नहीं हो पाए थे. पति की सीमित आय से उस की इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती थीं.
बाद में कामता प्रसाद को लगने लगा कि संगीता बहुत महत्त्वाकांक्षी औरत है, क्योंकि वह उस से तरहतरह की फरमाइश करने लगी थी. खेतीकिसानी से गुजरबसर करने वाला कामता संगीता की फरमाइशें पूरी नहीं कर पाता था.
पति की मजबूरी समझने के बजाय संगीता उस से झगड़ा करने लगी थी. संगीता के इसी स्वभाव की वजह से दोनों के दांपत्य जीवन में कटुता आ गई थी. इन्हीं विषम परिस्थितियों में समय आगे खिसकता रहा.
दोस्त ने दोस्ती की आड़ में लगाई सेंध
कामता का बचपन का दोस्त था विजय कोरी. उस का घर गांव के पूर्वी छोर पर था. विजय के पिता सियाराम जाजमऊ स्थित एक टेनरी में काम करते थे. उन को अच्छा वेतन मिलता था. विजय अच्छाखासा पढ़ालिखा था. लेकिन उस पर नेता बनने का भूत सवार था. इसी के मद्देनजर उस ने बहुजन समाज पार्टी का दामन थाम लिया था. अपनी पार्टी का वह जोरदार प्रचार करता था, इसलिए स्थानीय नेताओं में उस की पैठ बन गई थी.
नेताओं से सांठगांठ के चलते ही उस ने सरसौल क्षेत्र से पार्षद का टिकट हासिल कर लिया था. टिकट मिलने के बाद चुनाव प्रचार में जुट गया. इसी दौरान विजय का कामता के घर आनाजाना होने लगा. तभी उस की नजर कामता की खूबसूरत बीवी संगीता पर पड़ी.
पहली ही नजर में संगीता विजय के दिल में रचबस गई. चुनाव में संगीता व उस के पति कामता ने विजय का खूब प्रचार किया. उसी दौरान विजय और संगीता की नजदीकियां बढ़ती गईं. संगीता भी विजय में दिलचस्पी लेने लगी थी.
हालांकि विजय पार्षद का चुनाव हार गया था, लेकिन वह संगीता को जीतने में कामयाब हो गया था. वह संगीता के यहां कभी खाली हाथ नहीं आता था. कभी उस के हाथ में चिकन की थैली होती तो कभी संगीता के लिए उपहार. संगीता भी उसे चाहने लगी थी.
एक दिन मौका मिलने पर जब विजय ने संगीता को अपनी बांहों में बांध कर उस की उन्मादी आंखों में झांका तो संगीता भी उसे मना नहीं कर पाई. उस की मौन स्वीकृति मिलते ही विजय बेकाबू हो गया.
संगीता भी सब कुछ भूल कर उस की बांहों में झूल गई. इस के बाद दोनों ने अपनी हसरतें पूरी कर लीं. फिर तो चोरीछिपे उन का यह खेल खेला जाने लगा. ऐसे संबंध चाहे कितने भी चालाकी से क्यों न बनाए जाएं, एक न एक दिन जगजाहिर हो ही जाते हैं.
धीरेधीरे विजय और संगीता के अवैध संबंधों को ले कर पासपड़ोस में तरहतरह की चर्चाएं होने लगीं. जब इस की भनक कामता को लगी तो उसे विश्वास ही नहीं हुआ. कामता ने इस बाबत संगीता से बात की तो वह तुनक कर बोली, ‘‘विजय तुम्हारा दोस्त है. तुम्हीं उस के साथ महफिल जमाते हो. अगर तुम्हें शक है तो उसे घर आने को मना कर दो.’’
‘‘संगीता, मैं तुम पर शक नहीं कर रहा हूं. ऐसी बातें पासपड़ोस के लोग कर रहे हैं.’’ कामता ने कहा.
‘‘पड़ोसियों की बातों पर ध्यान मत दो, क्योंकि वे सब हम से जलते हैं. विजय हमारी आर्थिक मदद करता है. हमारे छोटेमोटे काम भी कर देता है, इसलिए पड़ोसी कानाफूसी करते हैं और बदनाम कर रहे हैं.’’ संगीता ने पति को समझाया.
संगीता ने जिस संजीदगी से बात कही, उस पर कामता ने सहज ही विश्वास कर लिया. पर उस के मन में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहा. अत: वह संगीता व अपने दोस्त विजय पर कड़ी नजर रखने लगा.
उस ने विजय से कह भी दिया कि वह घर में तभी आए, जब वह घर में मौजूद हो. विजय समझ गया कि कामता को उस पर शक हो गया है. अत: वह संगीता से मिलने में सावधानी बरतने लगा.
लेकिन सावधानी के बावजूद एक दिन विश्राम सिंह ने बहू संगीता को विजय के साथ आपत्तिजनक स्थिति में देख लिया. उस रोज विश्राम सिंह ने घर में हंगामा खड़ा कर दिया. उन्होंने दोनों को खूब खरीखोटी सुनाई और विजय को अपमानित कर के भगा दिया.
कामता के सामने आई हकीकत
शाम को जब कामता घर आया तो उस ने बहू की करतूत उसे बताई. कामता को गुस्सा तो बहुत आया लेकिन कुछ सोचने के बाद उस ने संगीता को इज्जत का वास्ता दे कर समझाया और सही रास्ते पर चलने की नसीहत दी.
पति और ससुर की नसीहतों का संगीता पर कोई असर नहीं हुआ. क्योंकि संगीता के बहके कदम पतन की राह पर इतने आगे निकल चुके थे कि उस का लौटना मुश्किल था. विश्राम सिंह रिटायर केस्को कर्मी थे. अत: पूरे दिन घर पर ही रहते थे. वह भी बहू पर कड़ी नजर रखने लगे थे. कड़ी निगरानी से संगीता और विजय के मिलन में अड़चन पड़ने लगी थी. कई बार संगीता विजय को दरवाजे से ही लौटा चुकी थी.
विश्राम सिंह के विरोध को कम करने के लिए विजय ने एक नया तरीका निकाला. वह जानता था कि विश्राम शराब के शौकीन हैं. अत: जब वह आता तो शराब की बोतल साथ लाता. पहले वह झुक कर विश्राम के पैर छूता और फिर कहता कि चाचा तुम्हारे लिए दवाई (शराब) लाया हूं, चाहो तो ले लो. मैं भी तुम्हारा साथ दूंगा.
फिर दोनों बैठ कर शराब पीते. विजय जानबूझ कर विश्राम सिंह को ज्यादा पिला देता ताकि वह सुधबुध खो बैठें. विश्राम के बेसुध होते ही विजय संगीता के बिस्तर पर पहुंच जाता था.
एक दिन संगीता ने कहा, ‘‘विजय, अब ससुर का विरोध दिनबदिन बढ़ता जा रहा है. किसी दिन उस ने हम दोनों को फिर देख लिया तो हंगामा खड़ा कर देगा. कोई ऐसा रास्ता निकालो, जिस से हमें मिलने में कोई डर न हो.’’
‘‘अगर तुम मेरा साथ दो, तो एक रास्ता है.’’
‘‘क्या?’’ संगीता ने पूछा.
‘‘बुड्ढे को ठिकाने लगाना पड़ेगा.’’ विजय ने कहा.
‘‘ठीक है लगा दो ठिकाने, मैं तुम्हारा साथ दूंगी.’’
इस के बाद दोनों ने विश्राम सिंह की हत्या की योजना बनाई. योजना बन जाने के बाद विजय और संगीता सही मौके का इंतजार करने लगे. उधर सीधासादा कामता पत्नी की कुटिल चाल को समझ नहीं पाया. वह संगीता के चरित्र पर तो संदेह करता ही था पर खुल कर विरोध नहीं कर पाता था. जब कभी वह विरोध की हिम्मत जुटाता तो संगीता उस के विरोध को अपनी चपल बातों से ही दबा देती थी. वैसे भी वह पति पर हावी रहती थी.
बुना गया हत्या का जाल
17 सितंबर, 2018 को गांव में गणेश पूजा थी. गणेश पूजा का आयोजन गांव के पश्चिमी किनारे स्थित एक इंटर कालेज के मैदान में किया गया था. कुछ नामी कलाकार भी कार्यक्रम में आए थे. अत: शाम से ही लोग कालेज के मैदान में जुटने लगे थे. विजय ने इसी अवसर का फायदा उठा कर विश्राम को ठिकाने लगाने की सोची.
रात लगभग 8 बजे विजय शराब की बोतल ले कर विश्राम सिंह के पास पहुंचा. उस ने कहा, ‘‘चाचा, गणेश पूजा में नहीं चलोगे? सुना है कि वहां कई नामी कलाकार आए हैं.’’
‘‘सुना तो मैं ने भी है, लेकिन मेरा शरीर टूट रहा है. मैं नहीं जा पाऊंगा.’’ विश्राम सिंह ने कहा.
‘‘चाचा, बदन टूटने की दवा मैं साथ लाया हूं. इसे पी लो, फिर बदन नहीं टूटेगा.’’ कहते हुए विजय ने शराब की बोतल खोली. फिर दोनों ने शराब पी. विश्राम सिंह को शराब पिलाने के बाद विजय चला गया.
कुछ देर बाद विश्राम सिंह ने खाना खाया और गणेश पूजा पंडाल में पहुंच गए. इधर विजय ने मोबाइल से संगीता से बात की और कहा कि आज अपने बीच के कांटे को निकाल फेंकना है. तुम भी पंडाल आ जाओ.
कामता उस समय घर पर ही था. वह दिन भर का थकामांदा था, सो चारपाई पर जा कर लेट गया. थोड़ी सी देर में उसे नींद आ गई. संगीता ने एक नजर खर्राटे भर रहे पति पर डाली और बाहर की कुंडी लगा कर पूजा पंडाल पहुंच गई. वहां उस ने विजय से योजना पूछी.
पूजा पंडाल में गणेश वंदना चल ही रही थी कि विश्राम सिंह नशे की हालत में नाचने लगे. कार्यक्रम आयोजकों ने उन्हें रोका और पंडाल से बाहर कर घर जाने को कहा. विश्राम सिंह पंडाल से बाहर आए तो विजय सामने आ कर बोला, ‘‘चाचा, आप ज्यादा नशे में हो. चलो, घर छोड़ देता हूं.’’
विजय विश्राम सिंह को ले कर चला तो निगाहें गड़ाए बैठी संगीता भी पीछे से आ गई. दोनों विश्राम सिंह को घर के बजाय गांव के पूर्वी छोर पर स्थित कुएं के पास ले गए. यहां विजय ने विश्राम को जमीन पर गिरा दिया. इस के बाद विश्राम के गले में पड़े अंगौछे से उन का गला घोंटने लगा.
विश्राम सिंह हाथपैर चलाने लगे तो संगीता ने उन के पैर दबोच लिए. कुछ देर तड़पने के बाद विश्राम सिंह शांत हो गए. इस के बाद दोनों ने शव को उठा कर कुएं में फेंक दिया. फिर इत्मीनान से दोनों अपनेअपने घर चले गए.
अगले दिन सुबह जब कामता को पिता की सुध आई तो उस ने उन की खोज शुरू की. न मिलने पर उस ने थाने में गुमशुदगी दर्ज करा दी. 4 दिन बाद जब गांव में बदबू फैली तो लोग कुएं पर पहुंचे और थाना महाराजपुर पुलिस को सूचना दी.
7 अक्तूबर, 2018 को पुलिस ने अभियुक्त संगीता को कानपुर कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रैट के समक्ष पेश किया, जहां से उसे जिला कारागार भेज दिया गया. कथा संकलन तक उस की जमानत नहीं हुई थी. दूसरे अभियुक्त विजय ने आत्महत्या कर ली थी. अत: पुलिस ने उस की फाइल बंद कर दी थी.
- कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित