आमतौर पर जब कोई अपना व्यवसाय शुरू करता है तो बड़े या मध्यम स्तर पर कार्य करने के लिए एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की स्थापना करता है, जिस में वह शख्स खुद व पार्टनर्स निदेशक बनते हैं. एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी बनाने के लिए कम से कम 2 निदेशकों का होना जरूरी है.

व्यक्ति अपने दोस्तों, रिश्तेदारों या अपने विश्वासपात्र कर्मचारियों में से किसी से निदेशक बनने को कहता है. संबंध खराब न हो जाएं या नौकरी न छीन ली जाए, इस भय से लोग निदेशक बनने की हामी भर देते हैं. इस में आमतौर पर कंपनी या व्यवसाय में निवेश करना जरूरी नहीं होता. यह तो सिर्फ एक औपचारिकता होती है. हां, इस व्यक्ति विशेष को अपने नाम के आगे निदेशक लिखने का बोनस जरूर मिल जाता है.

कुछ वर्षों पहले तो कंपनियां बनाने की एक अजीब सी होड़ लगी थी. कंपनियां बना कर बाजार में शेयर बेच कर यानी कि पब्लिक इश्यू ला कर जनता से पैसा बटोरने की होड़ थी. नियम लचीले थे. कंपनी के निम्न स्तर के कर्मचारियों तक को निदेशक बना दिया जाता था. अब समय बदल गया है. सरकार ने कानूनों और सूचनाओं पर लगाम कस दी है. अब सावधान रहना जरूरी है.

निदेशक बनने से पहले

निदेशक बनने के लिए सहमति देने से पहले विचार कर लें कि आप को अपनी तमाम निजी जानकारियां कंपनी को देनी होंगी. इन में आप का आधार नंबर, पैन नंबर, घर का पता, हस्ताक्षर, रिश्तेदारों का विवरण और आप की फोटो शामिल है. सो, यह सुनिश्चित कर लें कि आप को इस में कोई असुविधा न हो. इस के अलावा आप को यह मान कर चलना होगा कि आप के नाम का इस्तेमाल कंपनी में होगा.

निदेशक बनने की हामी भरने से पहले आप कंपनी के बारे में तमाम जानकारी हासिल कर लें, जैसे :

–           कंपनी के दफ्तर कहांकहां हैं. इस की फैक्टरियां कहां पर हैं.

–           संचालक मंडल में और निदेशक कौन हैं, उन का पूरा विवरण.

–           कंपनी के बैंक अकाउंट कहां पर हैं और उन्हें कौन औपरेट करता है.

–           कंपनी के मुख्य अधिकारियों, इंटर्नल तथा बाहरी औडिटरों के नाम व पते.

–           कंपनी पर कितना कर्ज है.

–           कंपनी पर कितने मुकदमे चल रहे हैं.

–           आयकर और अन्य विभागों में कंपनी की क्या स्थिति है.

उपर्युक्त मदों पर संतुष्ट होने के बाद निदेशक बनने की सहमति दें. याद रखें कि एक बार अगर आप निदेशक बन गए तो फिर आप जिम्मेदारियों में तब तक फंसे रहेंगे जब तक कि इस्तीफा न दे दें.

निदेशक बनने के बाद

एक बार अगर आप निदेशकमंडल में शामिल हो जाते हैं तो कंपनी का अभिन्न अंग बन जाते हैं. सो, आप को समयसमय पर बोर्ड मीटिंग में जाना चाहिए और मासिक, त्रैमासिक, अर्धवार्षिक व वार्षिक अकाउंट्स हासिल करने चाहिए, साथ ही कंपनी से एक सर्टिफिकेट लेना चाहिए कि कंपनी ने सभी रिटर्न्स दाखिल किए हैं और सभी कानूनों, जिन में लेबर से संबंधित कानून भी शामिल हैं, का पूरी तरह पालन किया है.

विशेषतौर पर आप को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि कंपनी का कोईर् चैक बाउंस तो नहीं हो रहा है, क्योंकि चैक बाउंसिंग के मामले में आप की भी जिम्मेदारी बनती है, बेशक चैक पर आप के हस्ताक्षर न हों.

कई बार सुना गया है कि बड़ेबड़े नामों पर मुकदमे हो गए हैं जो सिर्फ नाममात्र के निदेशक थे और उन्होंने न तो किसी चैक पर हस्ताक्षर किए थे, न ही इस बारे में उन्हें कोई जानकारी थी.

हो सकते हैं जवाबदेह

कई बार छोटी या बंद हो रही प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों में ऐसी परिस्थितियां पैदा हो जाती हैं जब आप को व आप के दूसरे सहयोगियों को निदेशक बना दिया जाता है और मालिक खुद उस कंपनी के संचालकमंडल में नहीं होते या किसी बहाने से बाहर निकल जाते हैं. ऐसी कंपनियों में अगर केवल 2-3 ही अंशधारक हैं और वे आपस में लड़ पड़ते हैं, सहयोग नहीं देते हैं, तो मुसीबत आप के गले आ पड़ती है. आप का लेनादेना नहीं, अंशधारक आपसी लड़ाई की वजह से मीटिंग में नहीं आते और जवाबदेही आप की बन जाती है.

अंशधारक नहीं आएंगे, तो मीटिंग नहीं होगी और अगर मीटिंग नहीं होगी तो वार्षिक खाते मंजूर नहीं होंगे और अगर वार्षिक खाते मंजूर नहीं हुए तो आप उसे फाइल नहीं कर सकते. अगर समय पर फाइलिंग नहीं हुई तो निदेशक होने के नाते आप से पूछताछ होगी.

सरकार को कानून में बदलाव करना चाहिए कि कम से कम छोटीछोटी कंपनियों में कंपनी के असली मालिकों यानी कि शेयरहोल्डरों को ही जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए, न कि उन निदेशकों को जिन के पास कोई मालिकाना हक ही नहीं है.

गलती शेयर होल्डर्स यानी कि अंशधारक करें और सवाल पूछे जाएं उन निदेशकों से जो काम करने के लिए निदेशक बने थे.  सो, कंपनी विभाग को इस बारे में ऐसे कानून बनाने चाहिए कि निदेशकों पर बेवजह की मार न पड़े. कुछ बेईमानों को पकड़ने के लिए मूर्ख व दंभी सरकारी अफसरों ने सभी को लपेटे में ले लिया है.

कंपनी एक कृत्रिम इकाई है और निदेशक मंडल कंपनी की आंख और कान है. कंपनी के किसी काम के लिए निदेशकमंडल निजी तौर पर सामान्यतया जिम्मेदार नहीं होते, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में यह आवरण हट जाता है

और निदेशकमंडल की निजी जिम्मेदारी आ जाती है. ऐसा तब होता है जब कंपनी कानून तोड़ती है या किसी गैरकानूनी काम में लिप्त पाई जाती है. सो, निदेशक होने के नाते यह आप का दायित्व है कि आप सुनिश्चित करें कि कंपनी में कोई गैरकानूनी काम नहीं हो रहा है वरना गाज आप पर भी गिर सकती है.

कंपनी में अगर महिला कर्मचारी भी कार्य कर रही हैं तो आप सुनिश्चित कर लें कि उन की सुरक्षा के तमाम उपाय किए जा रहे हैं और इस बाबत जितने भी कानून हैं, उन के प्रावधानों का पालन किया जा रहा है.

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