पिछले वर्ष 26 दिसंबर को ईकौमर्स में एफडीआई से जुड़ी सरकार की घोषणा से अमेरिकी ईकौमर्स कंपनी अमेजन और अमेरिका की वौलमार्ट के स्वामित्व वाली फ्लिपकार्ट ज्यादा ही टेंशन में हैं. हालांकि, इन के आलावा दूसरी सभी ईकौमर्स कंपनिया भी टेंशन में हैं.
दरअसल, इस वर्ष के चौथे महीने यानी अप्रैल में देश की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी को आम चुनाव का सामना करना है. ऐसे में उसे वोटबैंक की चिंता सताने लगी है, क्योंकि वह अपने कार्यकाल में जनहित के कार्यों को लागू नहीं कर पाई है. उलटे, उस के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी नेशनल डेमोक्रेटिक अलायन्स (एनडीए) सरकार ने जो कदम उठाए, वे जनहित नहीं बल्कि जनअहित के रहे. नतीजतन, देश के मतदाता एनडीए व उस की सरकार से नाराज हैं. इस की एक बानगी हालिया हुए 5 राज्यों की विधानसभाओं के चुनावों में देखने को मिली, जब भाजपा कहीं भी सरकार न बना सकी. उसे हर जगह हार का स्वाद चखना पड़ा.
वर्ष 2014 में खुदरा कारोबारियों को ईकौमर्स मैदान में खेल कर रहीं देशी विदेशी कंपनियों से नजात दिलाने का वादा कर नरेंद्र मोदी सत्ता पर काबिज हुए, लेकिन सत्ता के नशे में वे इस सेक्टर की अनदेखी करते रहे. अब जब चुनाव सर पर हैं तो उन्हें इन की चिंता हुई. सो, इन्हें खुश करने के लिए ईकौमर्स कंपनियों पर नकेल लगाने का फैसला किया और एफडीआई के नियम बदल डाले.
प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानी फौरेन डायरेक्ट इन्वेस्टमेंट (एफडीआई) प्राप्त करने वाली कंपनियों अमेजन और फ्लिपकार्ट ज्यादा ही टेंशन में आ गई हैं. हालांकि, सरकार के कदम से दूसरी कंपनियां भी टेंशन में हैं. सरकार के घोषित नए नियमों में 2 क्लौज ऐसे हैं, जिन के कारण अमेजन और फ्लिपकार्ट को अपने काम करने के तरीकों में बड़े बदलाव करने होंगे. पहला यह है कि किसी भी वेंडर में मार्केटप्लेस या उस की ग्रुप कंपनियों का इक्विटी स्टेक नहीं हो सकता है. दूसरा यह है कि वेंडर अपनी 25 फीसदी से ज्यादा खरीदारी मार्केटप्लेस की होलसेल यूनिट सहित किसी इकाई से करे तो यह माना जाएगा कि वेंडर की इनवेंटरी पर उन की मार्केटप्लेस का कंट्रोल है.
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