समाज की सोच समय के हिसाब से बदलती है और बदलनी भी समय के हिसाब से जरूरी है. आप ने कहावत सुनी होगी कि इतना कमाओ कि सात पीढि़यां आराम से खा सकें. अब यह अंधसोच बन रही है और आज के युवा नई सोच के साथ आगे बढ़ रहे हैं. इसी तरह से कमर झुकने तक नौकरी करते रहने की प्रवृत्ति में भी बदलाव आ रहा है और लोग कम उम्र में ही सेवानिवृत्ति को प्राथमिकता दे रहे हैं. यह खुलासा हाल के एचएसबीसी की भारत, अमेरिका, कनाडा, आस्ट्रेलिया, फ्रांस, मलयेशिया, सिंगापुर, चीन, ब्रिटेन सहित 16 देशों में कराए गए सर्वेक्षण में हुआ है.

सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत में 22 प्रतिशत लोगों की राय है कि उन्हें खुद की सुविधा के लिए कमाना है और अगली पीढ़ी क्या करे और कैसा खाएगी, यह उसे ही तय करना है. नई पीढ़ी को आने वाली पीढ़ी के लिए संपत्ति संग्रहण पर भरोसा नहीं है.

वहीं भारत में 54 प्रतिशत लोग समय से पहले सेवानिवृत्ति चाहते हैं. सेवानिवृत्ति के बाद वे निठल्ले नहीं बैठना चाहते बल्कि अपने लिए नया काम शुरू करना चाहते हैं. नई पीढ़ी की सोच में यह क्रांतिकारी बदलाव है, लेकिन असलियत यह है कि यह बदलाव नई परिस्थितियों के कारण आया है.

पहले नौकरी करना आसान था. बाबू दिन में कभी फुरसत मिलने पर औफिस पहुंचता और हाजिरी रजिस्टर में हस्ताक्षर कर ड्यूटी पूरी कर लेता. सबकुछ हाजिरी रजिस्टर होता था. लेकिन अब हालात बदले हैं. निजी कंपनियों में भी पहले कर्मचारी यूनियन गलत लोगों को बचाने और अपना गुट मजबूत करने में लगी रहती थीं. इस से नियोक्ता के लिए काम कराना मुश्किल था और लोग उम्र के आखिरी पड़ाव में भी बेमन से सेवानिवृत्ति लेते थे. अब स्थितियां बदली हैं और सोच का बदलाव स्वाभाविक है.

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