जब कोई युवती मां बनती है तो बेटे की शिक्षा, नौकरी आदि के साथसाथ उस के विवाह की कल्पनाओं के सपने संजोने लग जाती है. ‘बड़ा होगा चांद सी सुंदर बहू लाएगा, पोता होगा और वो राज करेगी.’ समय बीतता है, बेटा शिक्षित होता है, नौकरी या व्यवसाय करता है, मां की या अपनी पसंद की पत्नी भी ले आता है. मां प्रौढ़ हो चुकी है. इस उम्र में जीवन का बहुत सा अनुभव, घरगृहस्थी के प्रबंध में महारत भी हासिल हो जाती है.

रमा ने जब अपने बेटे रवि के लिए खूबसूरत, स्मार्ट, पढ़ाई में टौपर काम्या को चुना तो सब रिश्तेदार और परिचित सराहना से भर उठे, ‘वाह, क्या लड़की है हजारों में एक.’ रवि भी मां के चुनाव पर खुश था कि इस से अधिक की कल्पना उस ने भी नहीं की थी. धूमधाम के साथ शादी हो गई.

शादी के 10 दिनों बाद रमा ने काम्या की चौकचढ़ाई की रस्म की. रमा ने कहा, ‘‘बहू कुछ मीठा बनाना है तुम्हें.’’ ‘काम्या ने पूछा, ‘‘मम्मी, खीर बना दूं?’’ ‘‘नहीं,’’ रमा बोली, ‘‘सूजी का हलवा बनाओ.’’ ‘‘जी,’’ काम्या ने कहा और रमा की तरफ सहायता के लिए देखा. रमा ने सूजी का जार, घी व शक्कर के डब्बे और मेवा, इलायची निकाल कर दे दिया. और बोली, ‘‘बरतन नीचे की अलमारी में हैं, निकाल लेना.’’

‘‘जी,’’ कह तो दिया लेकिन काम्या सोच में थी. ‘‘कितना बनाना है,’’ उस ने पूछा. ‘‘घर में 7-8 लोग तो होंगे ही?’’ रमा ने कहा और किचन से बाहर चली गई.

असमंजस में काम्या खड़ी ही रह गई. उसे खाना बनाने का बिलकुल भी अनुभव नहीं था, फिर इतने लोगों के लिए, वह भी हलवा. उस ने तो अपनी मम्मी से खीर बनानी सीखी थी. दोचार बार घर पर बना कर खुश भी हो गई थी. ‘अब क्या करूं’ काम्या परेशान थी.

बाथरूम में जा कर काम्या ने मम्मी को फोन लगाया और हलवे की विधि पूछी. जैसा मम्मी ने समझाया था उसी तरह से करने का प्रयास करने लगी. नापतोल कर घी व सूजी कड़ाही में डाल कर भूनना शुरू किया. तेज आंच पर सूजी भूनी, मेवे काट कर, नाप के हिसाब से शक्कर व पानी डाल दिया. काम्या को हलवे की शक्ल देख कर लगा कि ठीक ही है. डोंगे में डाल कर मेवे से सजा कर खाने की मेज पर ले आई.

सब से पहले रमा के पति सुरेश ने कहा, ‘‘वाह, भई वाह, बहुत अच्छा लग रहा है. महक तो बहुत ही बढि़या आ रही है. मैं तो रुक नहीं सकता.’’ उन्होंने अपनी प्लेट में हलवा लिया और खाने लगे. काम्या उन का चेहरा देख रही थी. पलभर को तो वे चुप रहे, फिर बोले, ‘‘बेटा, बहुत अच्छा बना है.’’ फिर शगुन का लिफाफा उस की ओर बढ़ाया, ‘‘तुम्हारा इनाम.’’

काम्या ने लिफाफा लिया और उन के पांव छू लिए. घर के अन्य सदस्यों ने भी हलवा खाया और प्रशंसा की. रमा ने हलवा चखा और बरबस बोल उठी, ‘काम्या, यह कैसा हलवा बनाया है, सूजी जल्दी तेज आंच पर भून दी.’ रमा से अधिक उस के चेहरे का भाव मुखर था.

‘‘क्यों मम्मीजी, ठीक नहीं बना?’’ काम्या ने सहमते हुए कहा, ‘‘मुझे कुकिंग ठीक से नहीं आती.’’

‘‘वह तो दिख ही रहा है,’’ रमा थोड़ी उपेक्षा से बोली.

काम्या का मन बुझ गया. उसे समझ नहीं आ रहा था, कमी कहां रह गई. सुरेश ने उस के भावों को समझा और बोले, ‘‘बेटा, ठीक है, थोड़े दिनों में और भी अच्छा बनाना सीख जाओगी.’’

रवि हलवा खाते हुए बोला, ‘मां जैसा नहीं है. उस का तो स्वाद ही अलग होता है.’ सुन कर रमा के मुंह पर गर्व की चमक आ गई.

यह पहला अनुभव काम्या के लिए आखिरी हो गया. उस ने फैसला कर लिया कि वह बहुराष्ट्रीय कंपनी की नौकरी नहीं छोड़ेगी. खाना बनाने के लिए शैफ रख सकने की सामर्थ्य है उस की सैलरी में. शायद रमा ने मार्गदर्शन किया होता तो काम्या के मन में यों कटुता नहीं आती.

एकदूसरे को सहयोग करें

आजकल युवतियां युवकों की तरह ही पढ़ाई और दूसरी गतिविधियों में चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं जरूरी नहीं कि घरगृहस्थी के कामों में भी वे अपनी सास के समान कुशल हों. स्वाभाविक है सास के समय अधिकांश महिलाएं नौकरीपेशा नहीं थीं. साथ ही साथ, घर के कामों में मां को सहयोग भी देती थीं. तब पढ़ाई में प्रतियोगिता का तनाव भी नहीं झेलना पड़ता था.

सो, घर आने वाली बहू के लिए गलतियों व कमियों के लिए जगह रखें. सास के अनुभव व मार्गदर्शन की भी आवश्यकता होगी उसे. केवल आलोचनाओं के तराजू पर न रख कर प्रशंसा का ठंडा झोंका भी देना जरूरी है अच्छे रिश्ते के लिए.

मीना ने बहू के आते ही ऐलान कर दिया कि अब उन की उम्र हो गई है. घर की जिम्मेदारियों की चाबी उन्होंने बहू के पल्ले में बांध दी. बड़ी बहू बन कर आई नीरू ने भी खुलेमन से अपनी ननद, देवरों की जिम्मेदारी स्वीकार कर लिया. किंतु धीरेधीरे उसे एहसास होने लगा कि वह बिना वेतन के घर की कर्मचारी मात्र है. आएदिन उसे यह जताया जाता कि यह काम ऐसे नहीं ऐसे किया जाता है. रसोई में नीरू विशेषरूप से जो कुछ बनाती उसी खाने को मीना दोचार दिनों बाद, जब नीरू किचन में नहीं होगी तब, बनाती, यह साबित करने के लिए कि नीरू को खाना बनाना अच्छी तरह नहीं आता.

हर घर के खाना बनाने की विधि व स्वाद अलग होता है. आप अपने तरीके से बहू को सिखाने की कोशिश करें. थोड़ा धीरज व मार्गदर्शन आवश्यक है. बहू के घर आते ही सास में बुढ़ापा कैसे चला आता है?

हर जगह सास एकजैसी नहीं होतीं. कुछ आधुनिक सास बहुत सुलझी हुई भी मिलीं. उदाहरण के रूप में उषा 2 विवाहित बेटों की मां हैं. उन्होंने बताया कि बहुएं पढ़ीलिखी और समझदार हैं आजकल. उन्हें उपदेश देने की मैं जरूरत महसूस नहीं करती हूं. बेटे बाहर थे तो विवाह के बाद थोड़ा ही अवसर मिला हमें साथ रहने का.

विवाह के बाद मैं ने अपनी बहुओं से किचन का काम नहीं करवाया, उन की पसंद के व्यंजन मैं सुबह ही बना लेती थी. जिस से हमें अधिक से अधिक समय साथ बिताने का अवसर मिलता था. नतीजा यह रहा कि अब मेरी दोनों बहुएं घर की कोई समस्या हो या किसी विशेष पार्टी आदि का आयोजन कर रही हों, वे फोन कर के सलाह लेती हैं, मार्गदर्शन चाहती हैं. इस से हमारे बीच बहुत अच्छे संबंध हैं. बहुतकुछ है जो मैं ने बहुओं से सीखा है, इस बात को मैं अपनी बहुओं के आगे स्वीकार करने में संकोच नहीं करती.

बहू के संग आप के घर एक नया व्यक्तित्व आ रहा है. आप के वर्तमान में यह एक सुखद बदलाव है, उस का खुलेमन से स्वागत करें. आप के बेटे के जीवन को शेयर करने के साथसाथ वह आप के अनुभव, आप के मार्गदर्शन के लिए भी तैयार है. ऐसी स्थिति में अनायास ही बहू के आते ही खुद रिटायर होेने की घोषणा न करें. अभी तो आप के आगे खुद को दादी के रूप में स्थापित करने के अवसर आने हैं. कितना सुखद होता है अपने पोतेपोतियों के साथ का अनुभव.

आप ने अपने बच्चों को जब पाला, तो समय का अभाव था. घर के सौ कामों में उलझी मां बच्चों के बचपने का पूरी तरह से आनंद नहीं उठा पाती. लेकिन अब घर के कामकाज का दायित्व बहू उठाने लग जाती है. आप पूरी तरह से अपने पोतेपोतियों के संग आनंद उठाएं. उन्हें भी बूढ़ी, थकी दादी के रूप में आप अच्छी नहीं लगेंगी. तो बस, बहू आई सास बुढ़ाई वाली स्थिति न आने दें.

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