स्निफर डौग उन कुत्तों को कहते हैं जिन्हें बुद्धिमत्तापूर्ण गतिविधियों को अंजाम देने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है. इन कुत्तों में यह सैंस या इंद्रिय ज्ञान उन की घ्राणेंद्रिय यानी सूंघने की शक्ति की बदौलत होता है. कुत्तों में सूंघने की जबरदस्त क्षमता होती है. इंसान के मुकाबले ये 2 हजार फीसदी ज्यादा सूंघ सकते हैं. इसलिए ये स्निफर डौग यानी बुद्धिमान कुत्ते आज की इस दहशतभरी दुनिया में हमें सुरक्षित रखने की भरपूर कोशिश करते हैं.

आतंकवादी कहीं भी और कभी भी हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं. ये कुत्ते छिपा कर रखे गए विस्फोटकों का पता लगाने, अवैध मादक पदार्थों को ढूंढ़ने तथा हत्या व हत्यारे का पता लगाने में हमारी भरपूर मदद करते हैं.

कुत्ते खोजबीन के हमारे सब से बड़े उपकरण हैं. अगर कुत्ते न हों तो हत्यारे, चोरडकैत आदि को पकड़ने में काफी मुश्किल आए. यदि ये कुत्ते न हों तो मादक द्रव्यों की तस्करी को रोकना कभी भी इतना आसान न हो. आमतौर पर हम कुत्तों को छिपना और ढूंढ़ना खुद ही सिखाते हैं या कहा जाए इन के प्रशिक्षण की शुरुआत ऐसे ही खेलखेल में शुरू होती है.

कई लोगों का मानना है कि हत्यारों और छिपाए गए विस्फोटकों को ढूंढ़ना एकजैसा काम है. मगर ऐसा है नहीं. खोए हुए इंसानों को ढूंढ़ना और छिपाए गए मादक पदार्थों को ढूंढ़ना दोनों अलग तरह के काम हैं.

काम अलग, कुत्ते अलग

यही वजह है कि दोनों कामों को अंजाम देने के लिए अलगअलग तरह के कुत्तों का इस्तेमाल होता है.

मादक पदार्थों का पता लगाने के लिए आमतौर पर डिटैक्शन डौग्स का इस्तेमाल होता है, जबकि इंसानों को ढूंढ़ने या किसी चीज को उठा कर लाने के लिए सर्च डौग्स ज्यादा कारगर होते हैं. उन्हें कभीकभार काडेवर डौग्स भी कहते हैं. इन का इस्तेमाल अवैध दवाइयों को पकड़ने के दौरान मारे गए छा?पों में होता है. यदि कोई वीआईपी आ रहा हो तो सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद करने के लिए आगमन से पहले डिटैक्शन डौग्स को घुमाया जाता है, ताकि यह पता लगाया जा सके कि दुश्मन ने कहीं अपने शरीर पर कोई विस्फोटक तो नहीं बांध रखा है.

दुनियाभर में कुत्तों को प्रशिक्षित किया जाता है, क्योंकि पूरी दुनिया में सुरक्षा व्यवस्था संकट में है. हर तरफ आतंकियों ने दहशत का जाल बिछा रखा है. उन की साजिश का शिकार होने से बचने के लिए इन कुत्तों की मदद ली जाती है.

पक्की गारंटी नहीं

यह नहीं कहा जा सकता कि कुत्ते सौ फीसदी छानबीन की गारंटी देते हैं. यह भी कहा जा सकता है कि यदि कुत्ते न हों तो यह एक मुश्किलभरा और असुरक्षित मामला बन जाता है. घ्राणेंद्रिय के साथसाथ कुत्ते की श्रवणेंद्रिय भी बहुत तेज होती है. वह मामूली खुसुरफुसर भी आराम से सुन लेते हैं. लेकिन इस बातचीत को जरूरतमंदों तक नहीं पहुंचा पाते, क्योंकि उन्हें यह पता नहीं होता कि इसे कैसे व्यक्त किया जाए. तमाम जेलों में भी कुछ ऐसे कुत्ते होते हैं जो यह पता लगाते हैं कि कैदी ने अपने पास अवैध रूप में मोबाइल फोन तो नहीं रखा है और जेल के बाहर अपने साथियों से संपर्क स्थापित तो नहीं कर रहा है.

कुत्तों के सूंघने की इस अद्भुत क्षमता का इस्तेमाल काफी सारे कामों के लिए होता है. सरहद पर तैनात सैनिक भी इन कुत्तों का फायदा उठाते हैं. वे इन प्रशिक्षित कुत्तों का इस्तेमाल सरहद पार चल रही दुश्मन की गतिविधियों को जाननेसमझने के लिए करते हैं. सेना और अर्धसैनिक बलों में इन कुत्तों का इस्तेमाल इतना बढ़ गया है कि बाकायदा इन के प्रशिक्षण के लिए सेना में इन के विभाग तक होते हैं.

पुलिस के पास भी अपना डौग स्क्वैड होता है. देश में सेना और अर्धसैनिक बलों के लिए कुत्तों को ग्वालियर और झांसी के बीच एक बड़े डौग फार्म में ट्रेन किया जाता है.

गौरतलब है कि देश में कुत्तों को प्रशिक्षण देने के लिए कई बड़बड़े फार्म हैं. आजकल बड़े पैमाने पर जिस तरह सीडी, डीवीडी, नकली मुद्रा आदि का संकट गहरा रहा है, इन सब की रोकथाम में भी कुत्तों का इस्तेमाल होता है.

इस तरह देखा जाए तो कुत्ते न सिर्फ पारंपरिक आपराधिक गतिविधियों को रोकने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं बल्कि जरूरत के हिसाब से वे आपराधिक गतिविधियों को रोकने में भी मदद पहुंचाते हैं. इस से यह पता चलता है कि कुत्ते वक्त के हिसाब से अपनी प्राथमिकताओं और अपनी बुद्धिमत्ता को भी विकसित करते हैं.

सुरक्षा के मापदंड

एक तरफ जहां कुत्तों का प्राचीनकाल में इंसान अपने पारंपरिक कामों में सुरक्षा के लिहाज से इस्तेमाल करता था, वहीं आज जब सुरक्षा के माने बदल गए हैं तब भी कुत्तों की उपयोगिता बची हुई है, लेकिन हमेशा कुत्तों के इस्तेमाल को जायज नहीं ठहराया जाता. कई बार यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और निजता पर हस्तक्षेप जैसा होता है.

दुनिया की तरह भारत में भी तमाम तरह की आपराधिक व आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए स्निफर डौग्स का इस्तेमाल किया जाता है जो अपनी सूंघने की क्षमता से तमाम अपराधों को रोकने में मदद करते हैं. कुत्तों की इस संबंध में उपयोगिता कई बार तो आधुनिक मशीनी उपकरणों से भी ज्यादा सटीक होती है.

यही कारण है कि रेलवे स्टेशनों, हवाई अड्डों, राज्य व केंद्र सरकारों के महत्त्वपूर्ण दफ्तरों आदि में आतंकवादी गतिविधियों से बचने के लिए सीसीटीवी कैमरे से कहीं ज्यादा भरोसा इन कुत्तों पर किया जाता है.

कई चीजें सीसीटीवी कैमरे, डोरफ्रेम और मैटल डिटैक्टर से पकड़ने में छूट जाती हैं, वहां प्रशिक्षित कुत्ते काम आते हैं. इस में कोई शक नहीं कि हाल के वर्षों में विभिन्न तरह के विस्फोटकों का पता लगाने में तमाम संवेदनशील उपकरण विकसित किए गए हैं, लेकिन ये तमाम उपकरण उपयोगिता के नजरिए से जासूस कुत्तों या कहें प्रशिक्षित कुत्तों के मुकाबले कुछ भी नहीं हैं. इसलिए तमाम उपकरणों के विकास के बावजूद कुत्तों की उपयोगिता घटी नहीं, बल्कि बढ़ी है.

आज देश के सभी संवेदनशील क्षेत्रों में खासकर उन सभी जगहों पर जहां बड़े पैमाने पर भीड़ इकट्ठी होती है, ऐसे कुत्तों की जरूरत कहीं ज्यादा बढ़ गई है.

अब सुरक्षा समस्याएं इतनी जटिल और विशिष्ट हो गई हैं कि सभी महकमे चाहते हैं कि कुत्ते उन की खास जरूरतों को ध्यान में रख कर ही प्रशिक्षित किए जाएं. यही कारण है कि आज डौग प्रशिक्षण केंद्रों से विभिन्न महकमे अपनी खास जरूरतों को ध्यान में रख कर कुत्तों को प्रशिक्षित किए जाने की मांग करते हैं. इस के लिए वे अतिरिक्त भुगतान करने को भी तैयार हैं.

तमिलनाडु के पोडुनूर तथा राजधानी दिल्ली के दयाबस्ती इलाके में स्थित डौग ब्रीडिंग ऐंड ट्रेनिंग सैंटर में खास जरूरतों के लिए मांगे जाने वाले कुत्तों की अच्छीखासी फेहरिस्त तैयार हो गई है.

यही कारण है कि अब गंभीरता से सोचा जा रहा है कि तमाम शहरों व महकमों की खास जरूरतों और भूगोल को ध्यान में रखते हुए ऐसा ट्रेनिंग सैंटर खोला जाए.

इसी तरह रेलवे की जरूरतों को ध्यान में रख कर उस के 8 जोनल कार्यालयों वाले शहरों में भी खास उसी के लिए डौग ट्रेनिंग ऐंड ब्रीडिंग सैंटर शुरू किए जाएंगे.

कुत्तों के प्रशिक्षण, उन के रखरखाव और इस्तेमाल में 100 करोड़ रुपए से भी ज्यादा की रकम खर्च हो रही है. अनुमान है कि 2020 तक यह राशि बढ़ कर 2,500 करोड़ रुपए से ले कर 3,000 करोड़ रुपए तक हो जाएगी, जो इस बात का सुबूत है कि आने वाले दिन सुरक्षा के लिहाज से कितने संवेदनशील और आतंकी गतिविधियों के नजरिए से कितने खौफनाक होंगे.

रिटायर्ड कुत्तों को पैंशन

वर्ष 2020 तक देश में अनुमान है कि प्रशिक्षित कुत्तों की फौज बढ़ कर 2,500 तक हो जाएगी, जिस में कुछ तो रिटायर्ड हो जाएंगे. मालूम हो कि पुलिस या फौज में स्निफर डौग्स को उसी तरह से रिटायरमैंट दी जाती है जैसे फौजियों और पुलिस वालों की होती है. यही नहीं, इन्हें भी बाकायदा पैंशन दी जाती है और वह पैंशन 5,000 रुपए महीने से कम नहीं होती. यह सब इसलिए किया जाता है ताकि रिटायर्ड होने के बाद कोई स्निफर डौग लाचार जिंदगी जीने को मजबूर न हो.

रिटायर्ड होने के बाद इन की हालत पहले काफी खराब हो जाती थी. मसलन, ये अपनी रूटीन लाइफ से कट कर बेचैनी महसूस करते थे. साथ ही, इन की ठीक से देखरेख के लिए भी कोई नहीं होता था. अगर किसी ने सहज मानवीयता के चलते इन की देखरेख की भी तो उस के पास उतने संसाधन नहीं होते थे, जितने संसाधनों की जरूरत पड़ती थी. यही वजह है कि सरकार ने इस तरफ ध्यान दिया और इन के रिटायर्ड होने पर इन की पैंशन को एक अच्छे अमाउंट में तबदील किया.

इस तरह इन्हें ड्यूटी के दौरान खूब तवज्जुह मिलती है, क्योंकि इन के कंधों पर ही सुरक्षा का भार होता है.

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