स्कूलों से छुट्टियां सारे वर्ष का सब से आनंदित समय होता है. पर क्यों? क्यों स्कूल के दिन हमें भारी लगते हैं जहां नया ज्ञान मिलता है, संगीसाथी मिलते हैं, तरहतरह के सवाल मिलते हैं और फिर उन के उत्तर भी मिलते हैं. जहां किताबों में जानकारी की नदियां हैं, लाइबे्ररी ज्ञान की विशाल झील है. जब चाहो उस में गोता लगाओ और बेहद उपयोगी जानकारी ले आओ. क्यों छुट्टी अच्छी लगती है, जब मालूम न हो कि सारा दिन क्या करना है? यदि पिता काम पर हों, मां घर पर हों तो परेशानी कि मां के काम करो या उन के काम में रुकावट न बनो. दोनों काम पर हों तो सारा दिन क्या करो. बाहर अब साथी नहीं दिखते. घरों में छतें कम हो रही हैं. पड़ोस वाली आंटियां भाव नहीं देतीं. पड़ोसी बच्चे दूसरे स्कूलों के हैं, अलग पसंद वाले हैं. फिर छुट्टी की ऐसी चाहत क्यों?
यह इसलिए कि हमारा देश छुट्टी मनाने को काम समझता है. 11 से 13 मार्च को रविशंकर नाम के गुरु ने सैकड़ों मंत्रियों, नेताओं, बच्चों से छुट्टी करवा दी कि यज्ञहवन देखो, रागरंग देखो, योग उपासना देखो. न ज्ञान, न काम, न प्रयोग, न सवाल. बस, समय बरबाद करने में प्रधानमंत्री भी लगे थे, केंद्रीय मंत्री और दिल्ली सरकार के मंत्री भी लगे रहे छुट्टी मनाने में. देश के लिए फैसलों से छुट्टी, लोगों की परेशानियां सुनने से छुट्टी. छुट्टी ही काम हो गया. वाह, जहां बुजुर्ग, सफल कहे जाने वाले समय की बरबादी को काम कहेंगे, वहां छुट्टी के प्रति ललक क्यों नहीं होगी. जहां मंत्री, अफसर, व्यापारी, मातापिता अपनीअपनी जिम्मेदारी छोड़ कर 3 दिन के लिए लाखों की संख्या में यमुना नदी को नष्ट करने को कर्तव्य कहेंगे वहां छुट्टी को महान नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे.
ये सब लोग जो यहां जमा हुए, जिन्होंने यज्ञहवन में घी डाला, जिन्होंने भजन गाए, जिन्होंने प्रवचन दिए कुछ बनाते नहीं, कुछ सुधारते नहीं, कुछ ज्ञान नहीं देते, जीवन सुखद नहीं बनाते. वे बस, बहकाते हैं. मैं बैठाबैठा व्यस्त हूं, डिस्टर्ब न करो. हम 5 लाख, 10 लाख, 20 लाख लोग जमा हैं, हमारी छुट्टी है, हमारे लिए काम करो, खानेपीने का इंतजाम करो, बसें चलवाओ, रोशनी करवाओ. यही तो बच्चे करते हैं छुट्टी में. वहीं से सीखते हैं कि मां पिज्जा मंगवा दो क्योंकि खुद व्हाट्सऐप पर बिजी हैं, कोने में बैठ कर सुकून से. इस देश में छुट्टी ही मुक्ति है. छुट्टी ही सफलता है. छुट्टी ही लक्ष्य है. छुट्टी है तो परमज्ञान है. जो बड़े सिखाएंगे वही छोटे सीखेंगे. जय छुट्टी. जय हौलीडे. जय पूजा डे.