बिहार में भाजपा को पटखनी देने के बाद नेशनल लेवल पर भाजपा को तगड़ी चुनौती देने और नया राजनीतिक विकल्प तैयार करने के मकसद से नीतीश कुमार ने जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान तो संभल ली है, पर इस कवायद में उन्होंने नैतिकता को ताक पर रख दिया है. वहीं भाजपा की तर्ज पर आडवाणी, जोशी जैसे बुजुर्ग नेताओं की तरह नीतीश ने शरद यादव को भी ‘मार्गदर्शक’ बना कर साइड लगा दिया है.
10 अप्रैल को जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में नीतीश कुमार को सर्वसम्मिति से जदयू का नया राष्ट्रीय अध्यक्ष चुन लिया गया. 23 अप्रैल को पटना में होने वाली पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में इस प्रस्ताव पर अंतिम मुहर लग जाएगी. शरद यादव 3 बार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्हें तीसरी बार अध्यक्ष बनाने के लिए साल 2013 में पार्टी के संविधन में बदलाव किया गया था. शरद ने इस बार पिफर से अध्यक्ष बनने के लिए पार्टी के संविधन बदलाव करने से इंकार कर दिया.
नीतीश ने अध्यक्ष बनने के बाद शरद की विरासत को आगे बढ़ाने की बात कही हैं, पर जगजाहिर है कि नीतीश और शरद की कभी भी पटी नहीं है. दोनों एक दूसरे की जड़े खोदने में ही लगे रहे हैं. पार्टी सूत्रों की मानें तो पिछले लोक सभा चुनाव में शरद यादव मधेपुरा सीट से पप्पू यादव के हाथों हार गए, इसके पीछे नीतीश की ही भीतरघात थी. नीतीश नहीं चाहते थे कि शरद सांसद बने क्योंकि इससे शरद पार्टी पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते.
राजनीति में हर बार विरोधी दलों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने वाले नतीश ने अपने मामले में चुप्पी साध रखी है. ‘एक व्यक्ति, एक पद’ का उनका नारा पता नहीं कहां गुम हो गया है? जदयू के एक विधायक नाम नहीं छापने की शर्त पर कहते हैं कि हर राजनीतिक पार्टी के मुखिया ने अपने-अपने दलों को ‘पौकेट पार्टी’ बना रखा है. हर दल के सुप्रीमो ने कभी भी पार्टी में सकेंड लाइन के नेताओं की टीम ही नहीं तैयार की है. तेज-तर्रार नेताओं को साजिश के तहत आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है. नीतीश ने पार्टी अध्यक्ष की जिम्मेवारी लेते हुए यही जताया कि पार्टी में उनकी कद का कोई और नेता ही नहीं है? इससे तो वह खुद ही अपने उपर यह कलंक लगा लेते हैं कि उन्होंने कभी भी जदयू में सेकेंड लाइन की लीडरशिप तैयार नहीं की या तैयार नहीं होने दी.
भाजपा के नेता सुशील कुमार मोदी कहते हैं कि लालू यादव, ममता बनर्जी, मायावती की राह पर चलते हुए नीतीश कुमार ने भी पार्टी को अपनी जेब में रख लिया है. अध्यक्ष बन कर उन्होंने साफ कर दिया है कि उन्हें अपनी पार्टी के किसी भी बड़े नेता पर भरोसा नहीं है और न ही उनकी पार्टी में आंतरिक लोकतंत्रा है. पहले उन्होंने राजनीति कर ककहरा सिखाने वाले जार्ज फर्नाडीस को किनारे लगाया और अब शरद यादव से किनारा कर लिया है.
बहरहाल, साल 2019 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी को कड़ी टक्कर देने की कवायद में नीतीश कुमार पूरी तरह से लग गए हैं. उनके करीबी नेताओं को मानना है कि नीतीश के पार्टी का अध्यक्ष बनने के बाद कई इलाकाई दलों को मिला कर एक मजबूत विकल्प बनाने का रास्ता खुल गया है. जदयू के विधन पार्षद रणवीर नंदन कहते हैं कि सभी इलाकाई दलों को एक मंच पर लाने की नीतीश की कोशिश पिछले आम चुनाव में परवान नहीं चढ़ सकी थी, पर अबकी बार उनकी कोशिश रंग लाएंगी और इससे भाजपा के चेहरे का रंग अभी से ही उड़ने लगा है.
ये भी बैठे हैं 2 पदों पर
फिलहाल एक व्यक्ति एक पद की नैतिकता की धज्जियां उड़ाने में नीतीश अकेले नहीं हैं. पश्चिम बंगान की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, ओडिसा में मुख्यमंत्री नवीन पटनायक, तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता, कश्मीर की महबूबा मुफ्ती और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल भी अपनी-अपनी पार्टी के राप्ट्रीय अध्यक्ष भी बने हुए है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी के संयोजक और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव अपनी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष का बोझ भी उठाए हुए हैं.