साल 2014 में नेता जयप्रकाश नारायण के जन्मदिन के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद के दोनों सदनों के सांसदों को 3-3 गांवों को ‘सांसद आदर्श गांव’ के रूप में चुन कर देशभर से तकरीबन 6 लाख गांवों में से 2500 गांवों में बुनियादी सुविधाओं समेत उन्हें हाईटैक बनाने का टारगेट दिया था.
इन गांवों को चुनने के पीछे कुछ शर्तें भी रखी गई थीं जिन के तहत कोई भी सांसद खुद का या पत्नी के मायके का गांव नहीं चुन सकता था. गांव की आबादी 3 से 5 हजार के बीच होनी थी. इन गांवों में 80 से ज्यादा समस्याओं को ध्यान में रख कर तरक्की के काम किए जाने थे. सेहत, सफाई, पीने का साफ पानी, पढ़ाईलिखाई, ईलाइब्रेरी, कसरत, खेतीबारी, बैंकिंग, डाकघर समेत ऐसे तमाम मुद्दों पर तरक्की के काम होने थे.
इस से गांवों में शहरों की तरह सुविधाएं मिलना शुरू हो जातीं और वहां के लोगों को शहरों की तरफ नहीं भागना पड़ता. लेकिन सांसद आदर्श गांवों की हकीकत कुछ और ही है. अगर सांसद आदर्श गांवों में हुए तरक्की के कामों की हकीकत की बात करें तो देश में तकरीबन 6 लाख गांवों में से अब तक 3 चरणों में 2500 गांवों को चुन लिया जाना था. लेकिन अभी पहले चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से केवल 500 सांसदों ने ही गांवों को चुना है यानी 43 सांसद ऐसे हैं जिन्हें गांवों की तरक्की से कुछ लेनादेना नहीं है.
राज्यसभा के सांसद तो गांवों को ले कर और भी उदासीन हैं. पहले चरण में 253 सांसदों में से केवल 203 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि बाकी के 50 सांसद चुनने की जहमत तक नहीं उठा सके.
अगर इस योजना के दूसरे चरण की बात की जाए तो इस के हालात तो और भी खराब हैं. इस में 545 लोकसभा सांसदों में से केवल 323 सांसदों ने ही गांवों को चुना जबकि 222 सांसद गांवों को चुनने में नाकाम रहे. राज्यसभा के 241 सांसदों में से केवल 120 सांसदों ने गांवों को चुना, बाकी सांसदों ने तो इस के बारे में सोचा तक नहीं.
जिन सांसदों ने दूसरे चरण में गांवों को चुना उन में से ज्यादातर सांसद तीसरे चरण के गांवों को चुनने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. अभी तक तीसरे चरण में लोकसभा के 543 सांसदों में से केवल 93 सांसदों ने ही गांवों को चुना है. बाकी के सांसदों को गांवों के चुनने में कोई दिलचस्पी नहीं. अगर राज्यसभा के सांसदों की बात की जाए तो 241 सांसदों में से केवल 24 सांसदों ने ही गांवों के चुनने में दिलचस्पी दिखाई यानी बाकी राज्यसभा सांसदों को गांव की तरक्की से कुछ भी लेनादेना नहीं है. कई सांसद आदर्श गांवों का दौरा करने पर पता चलता है कि ऐसे गांवों के लोग आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं. ज्यादातर सांसद ऐसे हैं जिन्होंने गांवों को चुन तो लिया है लेकिन तरक्की के कामों में वे फिसड्डी साबित हुए. जो छोटेमोटे काम हुए भी हैं, उस का फायदा सिर्फ अगड़ों तक ही सिमट कर रह गया.
बस्ती लोकसभा क्षेत्र के सांसद हरीश द्विवेदी ने पहले चरण में गांव अमोढ़ा को चुना. इस गांव के उत्तरी छोर पर हरिजन बस्ती व सोनकर बस्ती यानी खटीक लोग रहते हैं जो आज भी बुनियादी सुविधाओं से दूर हैं. सरकार व प्रशासन बड़े जोरशोर से स्वच्छ भारत का राग अलाप रहे हैं और इस मुहिम के कामयाब होने का ढोल भी पीट रहे हैं, पर आज भी यहां के लोग खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. यहां की पूरी दलित बस्ती ही खुले में शौच के लिए जाती है. तमाम औरतें अपनी जान जोखिम में डाल कर खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हैं.
सीतारुन्निसा जैसी कई औरतें विधवा पैंशन पाने के लिए सैकड़ों बार सरकारी अफसरों की चौखट पर नाक रगड़ चुकी हैं, लेकिन आज तक उन्हें विधवा पैंशन नसीब नहीं हुई है. हरिजन बस्ती के लोग आज भी बिजली के लिए तरस रहे हैं, क्योंकि इस बस्ती में आज तक बिजली पहुंची ही नहीं है.
सड़कों पर बजबजाती नालियों का गंदा पानी व कूड़े का ढेर यहां की साफसफाई व्यवस्था की धज्जियां उड़ा रहा है. गांव के दलित परिवार आज भी फूस के घरों में रहने को मजबूर हैं. उत्तर प्रदेश में एक दिन के लिए मुख्यमंत्री की कुरसी संभालने वाले सिद्धार्थनगर जिले की डुमरियागंज सीट के सांसद जगदंबिका पाल द्वारा चुने गए सांसद आदर्श गांव तरक्की का भी यही हाल है.
यहां भी दलित पुरवा तरक्की की योजनाओं का फायदा लेने के लिए तरस रहा है. इस गांव के पश्चिमी छोर पर हरिजन टोले में पहुंचने पर सब से पहले सड़क किनारे खुले में किया गया शौच आप का स्वागत करता हुआ मिल जाएगा. मिश्रीलाल, रामफल शर्मा, मनोहर, मंजू देवी, नीरज, नंदू जैसे सैकड़ों परिवार हैं, जिन के पास रहने को घर तक नहीं हैं. शौचालय न होने के चलते ये लोग खुले में शौच करने को मजबूर हैं. गांव में शौचालय, घर, बिजलीपानी की समस्या जैसे पहले थी वैसे ही आज भी बनी हुई है. गांव के लोगों में सांसद जगदंबिका पाल के खिलाफ गुस्सा है. उन का कहना है कि जब गांव को पिछड़ेपन के दलदल में ही धकेलना था तो फिर इस गांव को सांसद आदर्श गांव के रूप में क्यों चुना गया?
लोग नहीं पहचानते सांसद को जिन सांसदों ने आदर्श गांवों को चुना, वे उस गांव में जाने की कोशिश ही नहीं करते. इस वजह से गांव के ज्यादातर लोग सांसदों को पहचानते ही नहीं हैं.
देश में ऐसे तमाम सांसद हैं जो सदन की बैठक तक में शामिल नहीं होते, ऐसे में गांवों में जाने की बात तो दूर की कौड़ी है. जिन गांवों की पड़ताल की गई वहां के ज्यादातर लोगों का यही कहना था कि वे सांसद को नहीं पहचानते. क्रिकेटर रह चुके सचिन तेंदुलकर को ले कर सांसद आदर्श गांव के लिए बड़ी छीछालेदर हुई. इस के बाद वे पहली बार गोद लिए गांव में गए.
दलितों से वसूले जाते हैं पैसे सरकार दलितों के लिए ऐसी तमाम योजनाएं चलाती है जिन में उन्हें मुफ्त में बुनियादी सुविधाओं का फायदा मिलना चाहिए. लेकिन सांसद आदर्श गांव की हकीकत तो कुछ और है. यहां गरीबों को खाना पकाने के लिए मुफ्त में उज्ज्वला योजना के तहत गैस कनैक्शन मिलना था लेकिन जिन दलितों को इस योजना का फायदा दिया गया उस में 1-1 कनैक्शन के लिए 1600 रुपए वसूले गए.
जो दलित परिवार पैसा दे पाने में नाकाम थे उन को कनैक्शन के कागज ही नहीं दिए जा रहे थे. कुछ परिवारों ने उधार के पैसे से कनैक्शन लिए. सोना देवी, गुडि़या, रेनू, आशा जैसी तमाम औरतों ने बताया कि उन से उज्ज्वला गैस कनैक्शन के नाम पर 1600 रुपए वसूले गए. 2 और क्यों चुन लिए
जिन सांसदों ने प्रधानमंत्री के दबाव में तीनों चरणों के गांवों को चुन भी लिया, अभी उन के द्वारा चुने गए पहले चरण के गांवों में ही तरक्की को रफ्तार नहीं मिल पाई है, ऐसे में जब अगले साल यानी 2019 में लोकसभा चुनाव होने हैं, तो सांसद आदर्श गांवों में तय किए गए तरक्की के कामों को अमलीजामा पहनाना मुश्किल दिख रहा है. आज जब देश और देश के 19 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, उस के बाद 3 गांवों को चुन पाना और उन गांवों की तरक्की करने में पूरी तरह फेल हो जाने से सरकार की गांवों के प्रति अनदेखी का पता चलता है.
सांसद आदर्श गांवों को ले कर लोग यहां तक कह रहे हैं कि ये गांव 4 साल बाद भी गोदी में ही खेल रहे हैं. इस से जाहिर होता है कि सरकार गांव के लोगों को बेवकूफ बना कर अपना चुनावी उल्लू सीधा करना चाहती है.
सांसद आदर्श गांवों को आईना दिखाता एक गांव
उत्तर प्रदेश में सिद्धार्थनगर जिले के ब्लौक भनवापुर का हसुड़ी औसानपुर गांव अपनी तरक्की के कामों के चलते बड़ेबड़े शहरों तक को मात दे रहा है. यह सब सरकार, गांव के लोगों व ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी की कोशिशों के चलते मुमकिन हुआ है. जिस समय दिलीप कुमार त्रिपाठी ने गांव की जिम्मेदारी संभाली थी, उस समय गांव में गंदगी थी. लोगों के घरों में शौचालय न होने के चलते हर कोई खुले में शौच करने को मजबूर था. गांव में बना प्राथमिक व जूनियर स्कूल बदहाली का शिकार था. बेरोजगारी के चलते लोग गांव से बाहर जाने को मजबूर थे.
ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी ने पंचायत सदस्यों के साथ सलाहमशवरा कर गांव की तरक्की का खाका तैयार किया. लेकिन पता चला कि इस गांव के लिए सरकार के पास इतना भी बजट नहीं है जिस से एक भी काम पूरा किया जा सके. ऐसे में उन्होंने तय किया कि वे इस गांव को शहरों से भी ज्यादा सुविधाएं मुहैया कराएंगे. उन्होंने अपने मछलीपालन व सोलर के कारोबार से होने वाली कमाई को गांव की तरक्की में खर्च करने की ठान ली. गांव हुआ डिजिटल हसुड़ी औसानपुर गांव में बिजली के खंभों पर अब 23 सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं. इन कैमरों से गांव में खुले में शौच रोकने की निगरानी किए जाने के साथसाथ दूसरी तमाम गलत हरकतों पर नजर रखी जाती है.
गांव वालों को फ्री में वाईफाई सुविधा देने के लिए बिजली के खंभों पर इंटरनैट राउटर लगाए गए हैं. हर खंभे पर लगे सिस्टम से उद्घोषक गांव वालों को जागरूक करने का काम करते हैं. गांव वालों को सरकार की औनलाइन सेवाओं के लिए शहर न जाना पड़े, इस के लिए गांव में कौमन सर्विस सैंटर बनाया गया है जहां से राशनकार्ड, जन्म प्रमाणपत्र, मृत्यु प्रमाणपत्र, खेतीबारी से जुड़े अनुदान, वृद्धावस्था पैंशन, विधवा पैंशन वगैरह की आवेदन सुविधाएं मुहैया कराई गई हैं. यह प्रदेश का पहला ऐसा गांव है जहां की गांव से
जुड़ी 18 सूचनाओं समेत जमीनजायदाद की सूचनाएं जियोग्राफिकल इनफौर्मेशन सिस्टम के जरीए गांव की वैबसाइट से सार्वजनिक की गई हैं. हर घर में बिजली पहुंच चुकी है. गांव में बिजली की बचत के लिए एलईडी के बल्ब जलाए जाते हैं. बिजली के खंभों पर भी एलईडी की स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं.
इस गांव को कैशलैस बनाने के लिए एक बैंक द्वारा गांव में ही ग्राहक सेवा केंद्र बनाने की कवायद की गई है. बैंक से जुड़े अफसर हिमांशु टंडन ने बताया कि गांव की तरक्की में भागीदारी करते हुए गांव के सरकारी स्कूल में बच्चों के बैठने के लिए रंगबिरंगे बैंच व डिजिटल लाइब्रेरी समेत अनेक सुविधाएं देने की कवायद शुरू की गई है.
ग्राम प्रधान दिलीप कुमार त्रिपाठी ने राजस्थान के जयपुर से प्रभावित हो कर इस गांव के घरों की सभी दीवारों को गुलाबी रंग में रंगवा दिया है. अब तो इस गांव को ‘पिंक विलेज’ के नाम से जाना जाने लगा है. इस गांव के स्कूल का ऐसा बदलाव किया गया है कि यह पढ़ाई और दूसरी सुविधाओं के मामले में प्राइवेट स्कूलों को भी मात दे रहा है. टाइल्स लगे फर्श, लड़केलड़कियों के लिए अलगअलग शौचालय, साफ पानी के लिए स्कूल में आरओ सिस्टम, बच्चों की सिक्योरिटी के लिए हर क्लास में सीसीटीवी कैमरे, प्रोजैक्टर और दूसरी तकनीकी सुविधाओं से लैस स्मार्ट क्लास, साफसुथरे भोजन का इंतजाम इस स्कूल को दूसरे स्कूलों से अलग बनाता है.
गांव में कोई बीमार न पड़े, इस के लिए सभी को सेहत व सफाई की आदतों को ले कर जागरूक किया गया है. गांव को चारों ओर से खूबसूरती बढ़ाने वाले पौधों के साथसाथ फलदार व औक्सिजन बढ़ाने वाले पौधों को रोपा गया है. गांव के अंदर सड़कों को इंटरलौकिंग ईंटों से पक्का किया जा चुका है और गांव को शहर से जोड़ने वाली सड़क को कंक्रीट का बनाया जा चुका है.
इस गांव में किसानों को मजबूत किए जाने की कोशिश की जा रही?है. उन्हें समयसमय पर ट्रेनिंग, जैविक खेती की तकनीक, उन्नत कृषि यंत्र व बीज वगैरह की जानकारी मुहैया कराई जाती है. गांव के किसानों को सस्ती सिंचाई के लिए 6 सोलर पंप मुहैया कराए गए हैं. कृषि विज्ञान केंद्र, सोहना के वैज्ञानिकों द्वारा किसानों को खेती के नुसखे दिए जाते हैं.
गांव के लोगों को मनरेगा के जरीए रोजगार भी दिया जा रहा है. गांव की लड़कियों, औरतों व नौजवानों के लिए कंप्यूटर व सिलाईकढ़ाई की मुफ्त ट्रेनिंग दी जा रही है. इस गांव में छुआछूत का नामोनिशान तक नहीं मिलेगा. गांव की लड़कियों की शादी में ग्राम प्रधान की तरफ से 11 हजार रुपए की मदद भी दी जाती है.