उन दिनों मैं 2 सप्ताह से डाइटिंग कर रही थी और इतना समय किसी को भी तुनकमिजाज बनाने के लिए काफी होता है. मुझे लगता है कि चाहे मैं कितना भी कम क्यों न खाऊं, फैट कम नहीं होगा. सप्ताहांत में मैं पका खाना नहीं खाती. लेकिन फैट है कि बिलकुल कम नहीं होता. यह 3 साल पहले की बात है, मंत्री बनने से पहले की. यह कितने खेद की बात है कि इनसानी पेट या आंतें जो खाना अपने अंदर रखती हैं, उस पर इनसान का कोई बस नहीं चलता. बैरिएट्रिक सर्जरी कराना तो आजकल फैशन हो गया है. इस सर्जरी में पेट से जुड़े कुछ हिस्सों और छोटी आंतों को काट कर संकुचित कर दिया जाता है. इस के पीछे सिद्धांत यह है कि आंतों में जितनी कम जगह होगी वे उतनी ही कम कैलोरी पचा सकेंगी.
जानवरों में अलग ही बात
इस मामले में जानवर इनसानों से कहीं ज्यादा विकसित हैं. जानवरों में बैरिएट्रिक सर्जरी की जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि उन की मांसपेशियां उन की आंतों पर नियंत्रण रखने के लिए काफी हैं. इन को संकेत मिलता है बदलते मौसम से, आंतों में होने वाली क्रियाप्रतिक्रिया से और कभीकभी कुछ खाने की चीजों से भी. इस का मतलब यह है कि जानवरों की आंतें इनसानी आंतों की तरह आलसी नहीं, बल्कि सचेत व सक्रिय होती हैं. कुछ जानवरों की आंतों में तो आश्चर्यचकित करने वाली क्रियाएं होती हैं. उन की आंतें उन की इच्छा के अनुसार फैलतीसिकुड़ती हैं. इस का मतलब यह है कि जानवरों की इच्छानुसार उन की आंतें एक ही प्रकार के खाने से अलगअलग मात्रा में कैलोरी ले सकती हैं. जब इन की आंतें फैली हुई स्थिति में होती हैं तो अपने भीतर से गुजरने वाले खाने से ज्यादा पोषण सोख लेती हैं और जब संकुचित रहती हैं तो खाने का कोई भी तत्त्व नहीं सोखतीं.
उदाहरण के लिए, माइग्रेट बर्ड्स को जब एक से दूसरे देश जाना होता है तो उन की आंतें अपने आकार से 25 गुना ज्यादा फैल जाती हैं ताकि लंबा सफर आसानी से तय करने में मदद मिल सके. जब शरीर को जरूरत के अनुसार भार मिल जाता है तो आंतें खुद ही संकुचित हो जाती हैं. ऐसी प्रक्रिया मछली, मेढक, गिलहरी और चुहिया में भी होती है. अजगर कभीकभी अपनी आंतों को इतना ज्यादा संकुचित कर लेता है कि बिना कुछ खाए कई महीनों तक जिंदा रह सकता है. जैसे ही उसे शिकार मिल जाता है वह अपनी आंतों को इतना ज्यादा फैला लेता है जैसेकि खाने की उसे तुरंत जरूरत है.
मौत के बाद इनसानी शरीर में मांसपेशियां शिथिल पड़ जाती हैं और आंतें अपने आकार से 50 गुना ज्यादा बढ़ जाती हैं. शायद जब हम निष्क्रिय जीवनशैली अपना लेते हैं तो हमारी आंतों की मांसपेशियां अपने भीतर से गुजरने वाले खाने को अधिक मात्रा में सोखती हैं और आकार में बड़ी हो जाती हैं. कुछ चीजें निश्चित रूप से मोटापा बढ़ने का कारण बनती हैं जैसे नशा करना, हारमोन असंतुलन, तनाव और जरूरत से ज्यादा खाना. इन कारणों से भी आंतों के आकार में बदलाव संभव है. मुझे लगता है कि मेरी आंतें 100 फुट तक लंबी हो चुकी होंगी, क्योंकि जब मैं कुछ भी नहीं खाती और व्यायाम भी करती हूं, तब भी मेरा वजन कम नहीं होता.
शरीर के अंदर भी एक दुनिया
हमारे शरीर के अंदर भी एक दुनिया है, अजनबी और आश्चर्यजनक जीवों की, जिन के बारे में वैज्ञानिकों ने पता लगाना शुरू कर दिया है. हर इनसानी शरीर में ऐसे जीवों के प्लानेट होते हैं. 3 पैरों वाले वायरस और रंगीन फंगी, वर्म और बैक्टीरिया जैसे लाखों जीव हमारी आंतों में समूह बना कर रहते हैं. यहीं खाते हैं और वंश भी बढ़ाते हैं. वैज्ञानिकों का तो यह भी कहना है कि हमारी त्वचा, मुंह, दांत और अन्य अंग छोटेछोटे जीवों से इस कदर भरे हुए हैं कि हमारी 10 कोशिकाओं में से सिर्फ 1 कोशिका ही इनसानी शरीर का हिस्सा है. हम सिर्फ एक सामान्य इनसान नहीं, बल्कि कई तरह की प्रजातियों से बनी संघटित संरचना हैं. माइक्रोबायोलौजिस्ट शरीर में रहने वाले इन जीवों पर शोध कर रहे हैं कि आखिर ये हमारे शरीर में काम क्या करते हैं इन में से कई खाने को पचाने में सहायक हैं ताकि खाने से मिलने वाला पोषण शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंच सके.
मोटापे के जिम्मेदार बैक्टीरिया
यह भी सामने आया है कि बैक्टीरिया के 2 समूह शरीर में प्रभावशाली होते हैं- फर्मीक्यूट्स और बैक्टीरौइडट्स. वैज्ञानिकों ने यह भी पता लगाया है कि मोटापे के शिकार लोगों की आंतों में फर्मीक्यूट्स की संख्या ज्यादा होती है. इस के उलट पलते लोगों की आंतों में बैक्टीरौइडट्स ज्यादा होते हैं. वजन कम करने के तौरतरीकों को अपनाने वाले लोगों में फर्मीक्यूट्स की संख्या बढ़ती है और बैक्टीरौइडट्स की संख्या घटती है. चुहिया पर किए गए शोध में भी वैज्ञानिकों को यही जानकारी मिली. वैज्ञानिकों ने पाया कि मोटी चुहिया के मल में ज्यादा कैलोरीज थीं जबकि पतली चुहिया के मल में कम. शोधकर्ता इस नतीजे पर पहुंचे कि फर्मीक्यूट्स बैक्टीरौइडट्स की तुलना में खाने से कैलोरी ज्यादा मात्रा में निकालते हैं. इस का मतलब यह हुआ कि यदि
मैं 1 सेब खाती हूं तो फर्मीक्यूट्स इस की 100% कैलोरी निकाल लेंगे. लेकिन यदि मेरी बहन जोकि थोड़ी पतली है, सेब खाती है तो उस के शरीर में मौजूद बैक्टीरौइडट्स केवल 50% कैलोरी ही निकाल पाएंगे. ऐसे में ज्यादा खाना और कम व्यायाम करना ही मोटापे का कारण नहीं, बल्कि हमारे शरीर में मौजूद ये बैक्टीरिया मोटापे को घटानेबढ़ाने के असली कारण हैं. इस लेख को पढ़ने के बाद कोई पाठक यदि पैसा कमाना चाहता है तो उसे फर्मीक्यूट्स या बैक्टीरौइडट्स में से किसी एक बैक्टीरिया का व्यवसायीकरण करना सीखना होगा ताकि लोग इन्हें खरीद कर खा सकें और अपनी आंतों में इन का संतुलन बना सकें. यदि ऐसा संभव हुआ तो मोटा या पतला होना बहुत आसान हो जाएगा.
सीख लेनी होगी
अब हम ने जानवरों के बारे में जानना शुरू किया है. उन के बारे में नहीं तो कम से कम उन के शरीर के बारे में जानना तो शुरू किया ही है, जोकि हम से कहीं ज्यादा विकसित हैं. घोड़ों, कछुओं और वानरों में पोषण या पाचनक्रिया तब तक शुरू नहीं होती, जब तक कि उन की आंतों में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का संतुलन नियंत्रित नहीं हो जाता. इस के लिए वे हरी घास व कुछ मात्रा में फर्मैंटेड फूड भी खाते हैं ताकि अपनी आंतों में मौजूद बैक्टीरिया को आहार पहुंचा सकें. अपनी शारीरिक संरचना के अनुसार इनसान चूंकि शाकाहारी प्रवृत्ति के होते हैं, इसलिए जो सब्जियां वे खाते हैं, वे संभवतया इनसानी शरीर में मौजूद बैक्टीरिया के संतुलन को बनाए रखने में सहायता करती हैं. इस के अलावा किसी भी तरह का खाना शरीर में फर्मीक्यूट्स और बैक्टीरौइडट्स के संतुलन को बिगाड़ने का काम करता है.
मोटा बनातीं ऐंटीबायोटिक्स
ये दवाएं सिर्फ बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का ही सफाया नहीं करतीं, बल्कि ये शरीर के लिए जरूरी बैक्टीरिया को भी नुकसान पहुंचाती हैं. सभी ऐनिमल फैक्टरीज, पोल्ट्री फार्म, सूअर पालन केंद्र या खरगोश पालने वाले फार्महाउसेज में जानवरों को खाने के साथ ऐंटीबायोटिक्स दिए जाते हैं ताकि कम खा कर भी वे मोटे दिख सकें. इस से आप समझ सकते हैं कि ऐंटीबायोटिक्स जानवरों के शरीर में बैक्टीरिया संतुलन को बिगाड़ देते हैं, जिस की वजह से वे तेजी से मोटे होने लगते हैं. जब हम इन के मांस को खाते हैं तो ऐंटीबायोटिक्स की वजह से असंतुलित हुए बैक्टीरिया हमारे शरीर में पहुंच जाते हैं.
मोटापा संक्रामक है
क्या मोटापा संक्रामक भी है पोषण का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि मोटापा संक्रामक है. कुछ जंतु जैसे घोड़े, शेर, चूहे, मुरगे यदि 7 में से 1 से भी संक्रमित हो जाएं तो इन का मोटापा बढ़ने लगता है. इस का मतलब यह हुआ कि शरीर के सूक्ष्म जीव मोटापा फैला सकते हैं. हम इन में से किसी एक जंतु का मांस खाते हैं और संक्रमित हो जाते हैं, क्योंकि उस जंतु के अंदर के अच्छे बैक्टीरिया को तो उसे बेचने वाला पहले ही ऐंटीबायोटिक्स के जरीए मार चुका होता है.
अपनी डाइट पर वापस आने के साथसाथ मैं सपना देख रही हूं कि बैक्टीरौइडट्स की सेना योद्धाओं के साथ सशस्त्र हो कर खलनायक फर्मीक्यूट्स को समाप्त कर रही है. मैं ‘जूबीक्विटी’ किताब को धन्यवाद देती हूं, इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए.