घटना उस समय की है जब हम भ्रमण पर जैसलमेर गए थे. वहां हम ने लोंगोवाल ग्राम देखने का विचार किया. वह भारत-पाकिस्तान युद्ध के कारण सुर्खियों में था. सड़क सही न होने की जानकारी के बावजूद हम वहां जाने की उत्सुकता नहीं रोक पा रहे थे.
हम मुश्किल से 2-3 किलोमीटर ही आगे गए होंगे कि हमारी कार के पहिये रेत में धंस गए. हम 9 सदस्य कार में सवार थे. सब ने प्रयत्न किया पर व्यर्थ. अंधेरा होने को था, आसपास सिर्फ रेत का समंदर.
हम सभी डरे हुए थे. तभी 15-20 मिनटों के बाद बीएसएफ का ट्रक आता दिखा. बीएसएफ के जवानों ने हमारी कार को ट्रक से खींच कर निकाला. आज भी उन जवानों को याद कर सिर सम्मान से झुक जाता है.
मिथलेश गोयल
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मैं परिवार सहित अपनी कार द्वारा वैष्णोदेवी से वापस होशियारपुर, पंजाब आ रही थी. पठानकोट के निकट कंडवाल में हमारी कार की टक्कर सामने से आ रहे ट्रक से हुई. मैं चेतनाशून्य हो गई. 5 दिनों बाद मुझे होश आया तो मैं ने खुद को दयानंद मैडिकल अस्पताल, लुधियाना में पाया. तब मुझे पता लगा कि हमारी कार के पीछे चंडीगढ़ के कोई सज्जन कार में आ रहे थे. उन्होंने शोर मचा कर लोगों को इकट्ठा किया. हमारी कार के ड्राइवर की घटनास्थल पर ही मृत्यु हो गई थी. उन सज्जन ने हमारी कार के शीशे तोड़ कर हम सभी घायलों को बाहर निकाल, हमारे मोबाइल के सिमकार्ड से फोन नंबर देख कर हमारे रिश्तेदारों को होशियारपुर में सूचित किया और स्थानीय पुलिस को भी घटना की सूचना दी.
उन्होंने हम सभी घायलों को पठानकोट अस्पताल अपनी गाड़ी द्वारा पहुंचाया. रास्ते में मेरे पति और मेरा बेटा दम तोड़ गए और मेरी तथा मेरी बेटी की नाजुक हालत देख कर पठानकोट अस्पताल के डाक्टरों ने हमें दयानंद मैडिकल कालेज, लुधियाना के लिए रैफर कर दिया.
कंडवाल पुलिस चौकी के एएसआई तथा उन सज्जन व्यक्ति ने हमें लुधियाना भेजने के लिए ऐंबुलैंस की व्यवस्था की. इस दुर्घटना के कई दिनों बाद
तक वे दोनों फोन द्वारा मेरे परिजनों से मेरी बेटी और मेरी कुशलक्षेम पूछते रहे. स्वार्थ और भौतिकवाद के इस युग में उन दोनों व्यक्तियों के मानवीय व्यवहार को देख कर हम नतमस्तक हो गए.
पूजा वशिष्ट