इन देशों में से कितनों के नाम सुने हैं या उन के बारे में कुछ जानते हैं- यमन, मौरीशनिया, सेनेगल, इथोपिया, माली, पाकिस्तान, स्वाजीलैंड, छद रिपब्लिक, गिनी, लाइबेरिया, जांबिया, सिएरा लियोन, मोजांबिक, ट्यूनीशिया, नाइजीरिया, आईवरी कोस्ट, बंगलादेश, मैडागास्कर, मलावी, निकारागुआ आदि. ये अफ्रीका और दक्षिणी एशिया के वे देश हैं जिन में मानवशक्ति का सही व पूरा इस्तेमाल न के बराबर है. भारत का दरजा इन के अंतिम वाले से पहले आता है.
नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, इंडोनेशिया, वियतनाम, फिलीपींस, थाईलैंड हम से अच्छे हैं. सर्वोत्तम देश नौर्वे से भारत में ह्यूमन कैपिटल का विकास लगभग आधा है. फिर हम किस दम पर हर समय विश्व की सब से तेजगति से बढ़ने वाली अर्थशक्ति होने का दावा करते हैं.
एक बड़े भूभाग पर बड़ी जनसंख्या होने के कारण हम अपनी सम्मिलित आय या पूंजी पर शान नहीं बघार सकते. सवाल तो यह है कि हमारा औसत नागरिक कितना खुश, संतुष्ट, समर्थ है. इस में तो हम बिलकुल फेल हो रहे हैं.
नौर्वे, स्वीडन, स्विट्जरलैंड व अमेरिका पहले नंबर के 4 ऐसे देश हैं जिन्होंने कभी साम्राज्य नहीं बनाए पर इन में लोग सब से ज्यादा संतुष्ट और शिक्षित हैं. वे हुनर रखते हैं और अपनी स्किल के बलबूते अपनेअपने देश को व खुद को समर्थ बनाए हुए हैं.
इन देशों में से अमेरिका को छोड़ दें, तो धार्मिक व सामाजिक विवाद न के बराबर हैं. अमेरिका में सामाजिक, जातीय व धार्मिक विवाद हैं पर अभी भी अमेरिकी कठोर परिश्रम कर रहे हैं. दूसरे कई देश अब बेहतर हो रहे हैं पर लाख खामियों के बावजूद अमेरिका की श्रेष्ठता कम नहीं हो रही. हालांकि, बड़ी जनसंख्या व बड़े भूभाग के कारण अमेरिका लड़खड़ा रहा है पर फिर भी अग्रणी है.
भारत तो अजीब द्वंद्व में फंसा है. हमारे यहां कानून का राज है पर अराजकता है. हमारे यहां स्थायी सरकार है पर हर रोज वह अस्थायी फैसले लेती है. हमारे चप्पेचप्पे पर खेती होती है पर उपज कम है. हमारे यहां स्कूल खुले हैं पर उन से निकलने वाले अंगूठाछाप हैं. हम एक संविधान में बंधे हैं पर सरकार व जनता रोज उस को तोड़ने में लगी रहती हैं. हमारी उत्पादकता व्यर्थ जा रही है. बेकारों की गिनती बढ़ रही है. निरर्थक गपें होती रहती हैं. अर्थहीन मुद्दों पर सिरफुटौवल हो रही है.
पर छाती पीटने में हमारा कोई सानी नहीं है. हर रोज अपना खुद का गुणगान करना हमारा परम धर्म हो गया है. ह्यूमन कैपिटल की जो बरबादी इस देश में है, उस के उदाहरण सिर्फ अफ्रीका के कुछ ही देशों में मिलेंगे और कहीं नहीं. बंगलादेश व पाकिस्तान तो भारत की संस्कृति के ही हिस्सेदार हैं और उन के गुणदोष हमारे साझे के ही हैं.