वफा उस की कागजी थी शायद
जरा सी आंच न सह सकी शायद
उस के आने का करते रहे इंतजार
कोई गलतफहमी थी जरूर शायद
ख्वाब न पूरे हो सके अपने
कोशिशों में थी कमी शायद
सांस बेशक उस की चलती रहती है
जीने की तमन्ना खत्म हो चुकी शायद
तुम से मिलने हम आते जरूर लेकिन
प्यार से बुलाया नहीं कभी शायद.
– हरीश कुमार ‘अमित’
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