मेरे पापा बेहद नरमदिल, स्नेहिल स्वभाव वाले इंसान थे. वे हम 3 भाईबहनों के पापा कम, मित्र ज्यादा थे. बात उस समय की है जब मैं करीब 9 साल की थी. सर्दी के दिन थे. मां ने अंगीठी जला कर उस पर चाय बनाने के लिए रखी थी. मैं गरमाहट पाने के लिए अंगीठी के सामने बैठ गई और चाय बनते देखती रही. इतने में मां किसी काम से उठ कर बाहर गईं तो मेरी नजर एक कोयले पर पड़ी जो कुछ टेढ़ा सा हो रहा था. मैं ने चिमटा उठा कर उस कोयले को सीधा करना चाहा तो पतीले का संतुलन बिगड़ गया और खौलती हुई चाय मेरे पैर पर गिर पड़ी.

मैं ने दर्द के मारे चीखना शुरू कर दिया. मेरे रोने की आवाज सुन कर मेरी मां और मेरे पापा भी रसोई में आ गए. मां घबरा कर रोने लगीं.

पापा ने तुरंत मुझे अपनी गोद में उठाया और कुछ दूरी पर स्थित अस्पताल में ले गए जहां डाक्टरों ने मेरा उपचार किया. डाक्टर ने कुछ दिन पैर नीचे न रखने की हिदायत दी थी. मुझे दर्द से ज्यादा इस बात की चिंता थी कि मैं 4-5 दिन तक स्कूल कैसे जाऊंगी.

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मेरी मनोदशा को भांपते हुए पापा रोज सुबह अपनी गोद में उठा कर मुझे मेरी कक्षा में बिठा कर आते थे. पापा के औफिस में लंच का समय होता था. पापा लंच छोड़ कर दोपहर में मुझे फिर से गोद में उठा घर छोड़ कर फिर औफिस चले जाते.

आज मेरे पापा हमारे बीच नहीं हैं पर यह अनुभव और उन की यादें जीवन के अंतिम क्षणों तक मेरे दिल में रहेंगी.

मीनू मोहले, पंजाबी बाग (न.दि.)

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मैं गणित विषय से एमएससी कर चुकी थी. उसी साल मेरे पापा रिटायर हुए थे. मैं ने सोचा कि मैं अब आगे नहीं पढ़ूंगी, नौकरी ढूंढ़ूंगी ताकि घर का खर्च चलाने में पापा की मदद कर सकूं.

एक दिन मेरी सहेली हमारे घर आई और कहने लगी कि उस ने एमफिल में दाखिला ले लिया है. मेरे पापा ने सुन लिया और कहा, ‘‘तुम ने एमफिल का फौर्म क्यों नहीं भरा?’’ मैं ने कहा, ‘‘पापा, मैं और नहीं पढ़ूंगी, नौकरी कर के आप का हाथ बटाऊंगी.’’ पापा ने मुझे डांट कर कहा, ‘‘जब तक मैं हूं, तुम्हें घर की फिक्र करने की जरूरत नहीं. तुम जाओ और एमफिल करो.’’ अगले ही दिन मैं ने फीस भर कर एमफिल में दाखिला ले लिया. अभी मेरी एमफिल पूरी भी नहीं हुई थी कि मेरा राजकीय महाविद्यालय में प्राध्यापिका पद की नौकरी के लिए चयन हो गया. पापा आज हमारे बीच नहीं हैं. मुझे आज भी लगता है कि मुझे यह नौकरी पापा की वजह से ही मिली है.

पूनम कश्यप, विश्वकर्मा कालोनी (न.दि.)

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