मेरे पापा प्रथम श्रेणी के सरकारी अधिकारी के पद से रिटायर हुए. उन्होंने हमेशा स्वनियंत्रण व सद्विचार का पाठ पढ़ाया. नए वर्ष पर जहां देशभर में हंगामा व धूम मचा होता है, वहां हम सुबह 5 बजे उठते थे. पापा हमें अपने पिछले वर्ष किए गए कार्यों पर विचार करने को कहते और कहते कि गत वर्ष में जो गलतियां हुईं हों उन्हें अब न दुहराने का संकल्प लो. साथ ही, इस नए वर्ष में अपनी किसी एक बुरी आदत को त्यागने का संकल्प भी लो. किसी की शारीरिक बनावट पर हंसने के बजाय अपनी कमियों पर हंसने की शिक्षा दी है उन्होंने. किसी की बुराई करनी ही हो तो उस के पीठ पीछे नहीं, बल्कि उस के सामने करो जिस से उस का भला होगा, ऐसा मानना है पापा का. घर में काम करने के लिए आने वाले ‘हैल्पर’ या बरतन, झाड़ूपोंछा करने वाले को कम से कम एक कप चाय जरूर पिलाओ, यह सदा से आदेश रहा है पापा का. इन सब के चलते मैं अपने पापा को अपना आदर्श मानती हूं.

इन्हीं संस्कारों व आदर्शों को देखतेसुनते हुए हम 6 भाईबहन बड़े हुए और यही संस्कार व आदर्श हम सभी भाईबहन अपने बच्चों में डालने का प्रयत्न कर रहे हैं ताकि आगे चल कर हमारे बच्चे भी हमें अपना आदर्श मान सकें और गर्व से हमें अपना मातापिता कह सकें.

शन्नो श्रीवास्तव, फरीदाबाद (हरि.)

*मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी. उस समय मैं वौलीबौल खेलती थी. मैं वौलीबौल का मैच खेलने के लिए 3 दिन के लिए शहर के बाहर गई हुई थी. मुझे उस समय स्कूल के यूनिट टैस्ट का टाइमटेबल पता नहीं था. मैं अपने शहर वापस लौटी. दूसरे दिन स्कूल जाने के बाद पता चला कि अगले दिन गणित का पेपर है. स्कूल से लौटने के बाद मैं बहुत रोई क्योंकि पेपर की तैयारी नहीं थी. पापा शाम को औफिस से लौट कर मुझे परेशान देख कर गणित पढ़ाने बैठ गए. मैं और मेरे पापा उस दिन सिर्फ रात का खाना खाने के लिए ही पढ़ाई की टेबल से उठे थे. रात को 2 बजे तक पापा ने मुझे पूरी तैयारी करवाई. मेरा पेपर अच्छा रहा. पापा ने हमेशा मुझे यही सीख दी कि कभी भी कठिन परिस्थिति में सोचसोच कर समय नहीं गंवाना चाहिए. सही रास्ता ढूंढ़ कर सही समय पर मेहनत शुरू करोगी तो प्रगति अपनेआप होती जाएगी. पापा की यह सीख मैं ने अपने जीवन में उतार ली है.

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