मेरे चचेरे भाई का ठेकेदारी का व्यवसाय है. वे गृह और सड़क निर्माण में काम आने वाले उपकरणों को किराए पर देते हैं. 1 वर्ष पूर्व उन से एक कंपनी के मालिक मिले, जिन्हें सरकारी तौर पर सड़क बनाने का काम सौंपा गया था.

भाई का रोलर उन्होंने किराए पर लिया था. स्वयं को कानपुर का रहने वाला बता कर भाई से गहरी दोस्ती कर ली. अब तक किराया लगभग 1 लाख रुपए हो गया था.

इस बीच, वे कानपुर चले गए और वापस आने पर किराए की राशि अदा करने की बात कही. तब से अब तक कई महीने हो गए हैं, न वे स्वयं आए और न ही उन का कोई संदेश.

जब भाई ने संबंधित विभाग में जा कर पता किया तो पता चला कि वे समस्त सरकारी कागजी कार्यवाही पूरी कर के गए हैं. भाई फोन लगाता है तो नहीं लगता और दिया गया पता भी फर्जी है.

        प्रतिभा अग्निहोत्री

*

अप्रैल 2016 का वाकेआ है. हमारे यहां एक साधु बाबा आए. वे एक झोले में कई प्रकार के मनके रखते थे. उस में से उन्होंने रुद्राक्ष की काफी तारीफ की. कहने लगे, जो मेरे इस रुद्राक्ष को धारण करेगा, उस की समस्त बाधाओं का अपनेआप निराकरण हो जाएगा.

हमारे भाईसाहब वहीं बैठे हुए थे. वे अंधविश्वासी हैं. उन्होंने साधु बाबा से एकमुखी रुद्राक्ष के बारे में पूछा. बाबा ने झोले से एक मनका निकाल कर दिखाया और बोले कि एकमुखी रुद्राक्ष दुर्लभ हैं. मैं ने बड़ी मुश्किल से इसे नेपाल के पास रहते हुए हिमालय की तराई से प्राप्त किया है. अब तक इसे मैं ने किसी को नहीं दिया. आप की श्रद्घा देख कर मैं आप को दे सकता हूं. आप इसे रख लीजिए.

भाईसाहब ने जब मोलभाव किया, तो वे नाराज हो गए. बाबा बोले, रुद्राक्ष की कीमत नहीं होती. स्वेच्छा से दक्षिणास्वरूप आप जो देना चाहें, दें.

भाईसाहब उस रुद्राक्ष को हाथ में रखते हुए 101 रुपया देने लगे. तो बाबा ने 1,001 रुपए के बिना रुद्राक्ष नहीं देने की बात कही. आखिरकार भाईसाहब ने उन्हें 1,001 रुपए दिए और रुद्राक्ष रख लिया.

बाबाजी आशीर्वाद देते हुए निकल गए. भाईसाहब ने उस रुद्राक्ष को तुलसी माला के साथ पिरो लिया, और गले में पहनने लगे.

महीनेभर बाद रुद्राक्ष का रंग बदलने लगा, साथ ही उस की पपड़ी भी निकलने लगी. धीरेधीरे उस का ऊपरी हिस्सा ही गायब हो गया. पता चला कि वह रुद्राक्ष नहीं, बल्कि सूखा बेर है जिसे रंगरोगन आदि के जरिए वैसा रूप दे दिया गया था.

सी पी तिवारी

 

 

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...