फिल्म ‘चेन्नई एक्सप्रेस’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का पुरस्कार पाने वाले निर्माता और निर्देशक रोहित शेट्टी मुंबई के हैं. फिल्मी माहौल में पैदा हुए, रोहित को बचपन से ही फिल्मी क्षेत्र में ही कुछ करने की इच्छा थी. उनकी मां रत्ना शेट्टी जूनियर आर्टिस्ट थीं और उनके पिता एम बी शेट्टी मूवी फाइट मास्टर थे.

17 साल की उम्र में करियर की शुरुआत करने वाले रोहित शेट्टी ने ‘फूल और कांटे’ फिल्म में असिस्टेंट डायरेक्टर के रूप में काम शुरू किया था, लेकिन उनकी सफल फिल्म सिंघम, गोलमाल, चेन्नई एक्सप्रेस, बोल बच्चन आदि कई फिल्में हैं, जिसके बाद से उन्हें पीछे मुड़कर देखना नहीं पड़ा. उनकी इस कामयाबी के पीछे वे अभिनेता अजय देवगन का हाथ मानते हैं, जिन्होंने उनके हर निर्देशन को बारीकी से पर्दे पर उतारा है. फिल्मों में कारों का उछलना और रंग-बिरंगी लोकेशन दिखाना उनकी खास पसंद है. फिल्मों के अलावा वे टीवी पर भी रिएलिटी शो के होस्ट और जज भी रह चुके हैं. स्ट्रांग और सीरियस दिखने वाले रोहित शेट्टी हमेशा खुश रहते हैं और किसी भी सफलता को अपने परिवार और दोस्तों के साथ बिताना पसंद करते हैं. फिल्म ‘गोलमाल अगेन’ रिलीज पर है, पेश है उनसे हुई बातचीत के अंश.

किसी फिल्म का प्रेशर आप पर कितना होता है?

किसी भी फिल्म को बनाते समय मेरी कोशिश रहती है कि फिल्म ऐसी बने, जिससे लोग अपने आप को जोड़ सकें. प्रेशर तो होता है, क्योंकि एक फिल्म के पीछे पूरी टीम होती है. गोलमाल 5 तब बनेगी, जब ये फिल्म चले, क्योंकि किसी फिल्म की सीरीज बनाना आसान नहीं होता.

फिल्म अगर हिट हो, तो कलाकार को शाबाशी दी जाती है, जबकि फ्लाप होने पर निर्देशक को इसका जिम्मेदार माना जाता है, इस बात से आप कितने सहमत हैं?

मैं ऐसा नहीं सोचता, क्योंकि फिल्म चलेगी, तो मेरी और नहीं चलेगी तो भी मेरी ही होगी, लेकिन मैं इस बात से खुश हूं कि मुझे निर्देशक के रूप में बहुत प्यार मिला, मेरी फिल्में चली. मैं फिल्में बनाकर छोड़ नहीं देता, बल्कि इसकी ‘ट्रेकिंग’ भी करता रहता हूं कि ये कहां और कब दिखाई जा रही है. गोलमाल, सिंघम की ऐसी रिकार्ड मेरे पास है, जिससे मुझे इसकी प्रसिद्धि का पता चलता रहता है. इसके अलावा मैंने टीवी पर भी काम किया है उसमें भी पता चला है कि दर्शकों ने मुझे कितना पसंद किया.

फिल्मों में आप गहरे रंगों का अधिक प्रयोग करते हैं, इसकी वजह क्या है?

मुझे गहरे और चटकीले रंग पसंद है, जो आंखो को अच्छा लगता है. ‘सिंघम’ फिल्म में आपको ऐसे रंग देखने को नहीं मिलेगा, क्योंकि उसकी लोकेशन और सीन्स वैसी नहीं थी. थोड़ी सिरियस किस्म की फिल्म थी. वहीं गोलमाल, चेन्नई एक्सप्रेस या बोल बच्चन जैसी फिल्में जो खुशी को जाहिर करने वाली है उसमें ऐसा दिखाने की कोशिश करता हूं और यही अब मेरा ट्रेडमार्क बन गया है.

कामेडी फिल्म में सफलता को क्या आपने पहले से सोचा था?

जब मैंने पहले कामेडी फिल्म बनाने को सोची, वह भी एक्शन हीरो अजय देवगन के साथ, तो सबने मेरी हंसी उड़ाई, पर मेरे लिए ये चुनौती बन चुका था. बनने लगी तो अच्छा लगा, क्योंकि फिल्म में सादगीपन थी, जिसे दर्शकों ने पसंद किया. इतनी उम्मीद तो नहीं थी, पर अब मुझमें आत्मविश्वास आ गया है.

आप अब तक की जर्नी को कैसे देखते हैं?

मैं हमेशा से अपने आप को लकी मानता हूं. मुझे हमेशा सही लोग मिलते गए, जिससे काम करना आसान हो गया. हालांकि मेहनत तो मैंने बहुत की है, लेकिन सही समय पर सही व्यक्ति का साथ में होना बहुत जरुरी होता है. मैं किसी भी चीज को ग्रांटेड नहीं लेता कि मैं कुछ भी बनाऊंगा तो फिल्म चलेगी. मेरे हिसाब से ऐसा हर व्यक्ति को सोचना चाहिए. मुझे याद है कि एक एक्शन फिल्म करने के दौरान मैंने गोलमाल की कहानी सुनी थी. जो मेरे लिए लकी साबित हुई.

कामेडी में किसी का मजाक न उड़ाया गया हो इस बात का कितना ध्यान रखते हैं?

इसका मैं ध्यान रखता हूं और कोशिश करता हूं कि कोई ‘हर्ट’ न हो.

आपके यहां तक पहुंचने में परिवार का सहयोग कितना रहा?

परिवार का बहुत सहयोग रहा. जितना मैं अपने काम को सिरियसली लेता हूं उतना वे भी मेरे काम को लेते हैं. मेरी पत्नी हमेशा मेरी शिड्यूल को देखती है और जो भी कहना होता है, उसके बाद कहती है ताकि मैं फ्री होकर उसकी बात सुनूं. मेरी मां, मेरी पत्नी और बेटा सब मेरे हर काम और उसकी सफलता में शामिल होते हैं. जब मैं व्यस्त रहता हूं तो वे एक ऐसा माहौल तैयार करते हैं, जिससे मुझे स्ट्रेस न हो.

एक्शन वाली फिल्में देखकर आज की यूथ उसे करने की कोशिश करती है, जिससे कई दुर्घटनाएं हो जाया करती हैं, आप उन्हें क्या संदेश देना चाहते हैं?

मेसेज ये है कि हम सारे ट्रेन्ड हैं और कई साल इसे सीखने के लिए गुजारे हैं, उसे कभी भी न दोहराएं, ये हमारा प्रोफेशन है, हम मस्ती के लिए कभी नहीं करते. खासकर सड़क पर तो हम कभी भी कोई स्टंट करते नहीं हैं. इसकी ट्रेनिंग होती है, सुबह उठे और बाइक चला लिया, ऐसा कभी नहीं होता. सिनेमा के लिए जब हम कुछ भी करते हैं तो ‘सेफ्टी’ को ध्यान में रखा जाता है. आम जिंदगी में ये हम कभी नहीं करते.

दीवाली का त्योहार कैसे मनाते हैं?

मैं इस बार इस फिल्म के साथ दीवाली मना रहा हूं. ये खुशियों का त्योहार है इसलिए कामेडी फिल्म को मैंने इस बार चुना है. इसके अलावा परिवार के साथ इसे मनाऊंगा.

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