यह बिहार के गया जिले के बरसोना गांव की माधुरी देवी की करीब 5 साल पहले की कहानी है. उन की जिंदगी दुखों में बीत रही थी. वे और उन के पति ईश्वर कुमार वर्मा अपने 1.2 एकड़ निजी और बंटाई पर लिए कुछ खेतों में हाड़तोड़ मेहनत करते थे, फिर भी 2 वक्त की रोटी भी मयस्सर नहीं हो पाती थी. आमदनी से ज्यादा खर्चे होने के कारण उन का परिवार सेठोंसाहूकारों के तमाम कर्जों में फंस चुका था. परिवार चलाना भारी पड़ रहा था. साल 2010 की बात है, गांव में मगध मंडल में काम कर रही ‘प्रिजरवेशन एंड प्रोलिफेरेशन आफ रूरल रिसोर्स एंड नेचर’ (प्रान) नामक एक गैर सरकारी संस्था के कुछ कार्यकर्ता खेती में नई तकनीकों के इस्तेमाल के मकसद से जागरूकता कार्यक्रम चलाने आए. संस्था द्वारा दी गई जानकारियों का माधुरी पर गहरा असर पड़ा. वे साल 2010 के रबी सीजन में श्री विधि (सिस्टम आफ व्हीट इंटेंसीफिकेशन) द्वारा तैयार किए गए गेहूं के खेत देखने एक्सपोजर विजिट पर बोधगया गईं. वहां वे प्रगतिशील महिला किसानों का हौसला और गेहूं की उम्दा बालियां देख कर हैरान रह गईं.

घर आ कर माधुरी ने ये सारी बातें अपने पति को बताईं, मगर पति नई तकनीक अपनाने के लिए बिलकुल तैयार न थे. काफी समझाने के बाद माधुरी के पति अगले साल अपने खेत के सिर्फ 4 कट्ठे (0.15 एकड़) में श्री विधि से गेहूं की खेती करने को तैयार हुए. दूसरे साल माधुरी ने 5 कट्ठे (0.19 एकड़) में श्री विधि से गेहूं की खेती की. जिस खेत में पहले 40 किलोग्राम प्रति कट्ठा गेहूं होता था, उसी खेत में अब श्री तकनीक के जरीए 70-75 किलोग्राम प्रति कट्ठा गेहूं पैदा होने लगा है. उपज में भारी इजाफा व कम लागत को देखते हुए अब माधुरी अपने पूरे खेत में न सिर्फ गेहूं बल्कि धान, सरसों और कई सब्जियों की भी श्री विधि से ही खेती करती हैं. श्री विधि के तहत देशी कीटनाशकों व खादों का इस्तेमाल होता है और निराईगुड़ाई मशीनों से होती है. खेती में लगन और नवाचार अपनाने की वजह से आज माधुरी सूबे में चल रहे सरकार के ‘बिहार रूरल लाईबिलीहुड प्रमोशन सोसाइटी’ में बतौर कम्युनिटी मोबिलाइजर कार्यरत हैं.

इस बारे में माधुरी देवी बताती हैं, ‘शुरू से ही मुझे आधुनिक तरीके से खेती करने का जनून रहा है. जब मैं ने नापजोख कर के यंत्रों की मदद से होने वाली इस विधि को अपनाया, तो पूरा गांव मुझ पर हंस रहा था. आज बहुत ही खुशी की बात है कि हमारे गांव की खेती को देखने के लिए अमेरिका तक से कृषि वैज्ञानिक आ चुके हैं. इसी वजह से मुझे राज्य सरकार द्वारा ‘बिहार रूरल लाईबिलीहुड प्रमोशन सोसाइटी’ में बतौर कम्युनिटी मोबिलाइजर तैनात किया गया है. ‘घर की माली हालत बेहतर होने से अब हम बच्चों को अच्छी शिक्षा और परवरिश दे रहे हैं. खेती की और भी नई तकनीकें जानने के लिए सोसाइटी व सरकार द्वारा अकसर दूसरी जगहों पर जा कर सीखने का मौका मिलता है.’ इस प्रकार तकनीक ने माधुरी को  न सिर्फ संपन्नता दी बल्कि शोहरत भी दी. वे अब आसपास की महिलाओं के लिए मिसाल बन चुकी हैं.

इस बारे में संस्था के प्रशासनिक अधिकारी (परियोजना एवं मानव संसाधन) देवेश राज श्रीवास्तव बताते हैं, ‘संस्था जब दूरदूर के गांवों में काम करती है, तो किसानों की रूढि़यों को तोड़ने में बहुत समय लगता है. ऐसे में सब से अच्छा तरीका है कि किसानों के विकास, प्रशिक्षण और प्रदर्शन पर जोर दिया जाए. तभी खेती की तसवीर बदल सकती है.’ 

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