हमारे देश में सदियों से किसान फसलों के बचे भागों यानी अवशेषों को कचरा समझ कर या तो खेत में ही जला देते हैं या फिर उन्हें पशुओं को खिलाने के काम में लेते हैं. ज्यादातर देखने में आता है कि खासतौर पर पुआल वगैरह तो खेत में ही जला दिया जाता है, जिस से खेत को काफी नुकसान होता है. ऐसा करने से खेत के लाभदायी सूक्ष्मजीव मर जाते हैं और खेत की मिट्टी इन बचे भागों में पाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण पोषकतत्त्वों के बगैर रह जाती है. ऐसे में जरूरत है कचरा समझे जाने वाले फसल के बचे भागों को खेत में सोना समझ कर मिला देने की. नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने लगाई अवशेषों को जलाने पर पाबंदी : फसल अवशेषों को जलाने पर न केवल वायु प्रदूषण से पर्यावरण का प्रदूषण बढ़ रहा है, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग भी बढ़ रही है. हाल ही में 4 नवंबर, 2015 को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने उत्तर भारत के राज्यों दिल्ली, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब और राजस्थान के खेतों में फसल अवशेषों को जलाने पर सख्त फैसला लेते हुए किसानों पर 15 हजार रुपए तक जुर्माना लगाने का फैसला किया है.

क्या है एनजीटी का आदेश : 4 नवंबर, 2015 को एनजीटी ने कहा कि जिन राज्यों में पुआल जलाए जाने संबंधी रोक की सूचना जारी नहीं की गई है, वहां उसे फौरन जारी किया जाए. एनजीटी ने पर्यावरण शुल्क के तौर पर सभी प्रकार के छोटे, मंझोले और बड़े किसानों से 15 हजार रुपए तक जुर्माना वसूल करने का फरमान सभी राज्यों को दिया है. इस के साथ ही एनजीटी ने सभी राज्यों को फसल अवशेषों के निस्तारण (डिसपोजल) के लिए किसानों को मशीनें मुहैया कराने का आदेश भी दिया है.

कैसे हो रहा है दुरुपयोग : खासतौर से गेहूंगन्ने की हरी पत्तियां और सागसब्जियों के हरे पत्ते व डंठल पशुओं को खिलाए जाते हैं, जबकि धान के पुआल, गन्ने की सूखी पत्तियों व सनई आदि को खेत में ही जला दिया जाता है. यह समस्या उन खेतों में अधिक होती है, जहां गेहूं की कटाई हारवेस्टर द्वारा की जाती है, हारवेस्टर से कटाई के बाद फसल के अवशेष खड़े रह जाते हैं, जिसे लोग जलाना ज्यादा ठीक समझते हैं. यदि फसलों के अवशेषों को जला कर नष्ट न कर के खेत में ही जुताई के समय मिला दिया जाए, तो ये जीवांश खाद में बदल जाएंगे.

कैसे होगा सही इस्तेमाल : वर्तमान में हमारे देश में इस काम को बेहतर तरीके से करने के लिए रोटावेटर जैसी मशीनें आसानी से इस्तेमाल में लाई जा सकती हैं. यह मशीन पहली बार में ही जुताई के साथ फसल अवशेशों को कतर कर मिट्टी में मिला देती है. जिन इलाकों में नमी की कमी हो, वहां पर फसल अवशेषों का सही इस्तेमाल करने के लिए जरूरी है कि उन से कंपोस्ट तैयार कर के खेत में इस्तेमाल की जाए. उन इलाकों में जहां चारे की कमी नहीं होती, वहां मक्के की करबी व धान के पुआल को खेत में ढेर बना कर खुला छोड़ने के बजाय गड्ढों में कंपोस्ट बना कर इस्तेमाल करना मुनासिब रहता है. आलू व मूंगफली जैसी फसलों की खुदाई के बाद बचे अवशेषों को खेत में जुताई के साथ मिला देना चाहिए. मूंग व उड़द की फसलों से फलियां तोड़ कर बचे भाग खेत में मिला देने चाहिए. इसी प्रकार से केले की फसल के बचे अवशेषों से भी कंपोस्ट तैयार कर लेनी चाहिए.

कचरे में ही भरा है सोना : किसान आमतौर पर फसल के अवशेषों को कचरा समझ कर जला देते हैं, मगर वही कचरा यदि खेतों में मिला दिया जाए तो वह सोने से कम नहीं होता है. इस से खेतों को कई पोषक तत्त्व तो मिलते ही हैं, साथ ही मिट्टी के जीवांश कार्बन की मात्रा में भी इजाफा हो जाता है. इन अवशेषों से मिट्टी की जलधारण की कूवत बढ़ जाती है और सूक्ष्म जीवों की मात्रा में भी इजाफा हो जाता है. इन सब के अलावा मिट्टी में कई भौतिक, जैविक व रासायनिक सुधार होते हैं. कुछ और ध्यान देने वाली बातें : फसल की कटाई के बाद खेत में बचे अवशेषों यानी घासफूस, पत्तियों व ठूंठ आदि को सड़ाने के लिए किसानों को 20-25 किलोग्राम नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव कर के रोटावेटर या कल्टीवेटर से जुताई कर के मिट्टी में मिला देनी चाहिए. इस से पड़े हुए अवशेष खेत में विघटित होने लगेंगे और करीब 1 महीने में पूरी तरह विघटित हो कर आगामी बोई जाने वाली फसल को पोषक तत्त्व प्रदान करेंगे. कटाई के बाद डाली गई नाइट्रोजन अवशेषों के सड़ने की गति को तेज कर देती है.

यदि फसल अवशेष खेत में ही पड़े रहे तो फसल बोने पर जब नई फसल के पौधे छोटे रहते हैं, तो वे पीले पड़ जाते हैं, क्योंकि उस समय अवशेषों को सड़ाने में जीवाणु जमीन की नाइट्रोजन का इस्तेमाल कर लेते हैं. नतीजतन शुरुआत में फसल पीली पड़ जाती है. लिहाजा फसल अवशेषों को नाइट्रोजन छिड़क कर मिट्टी में मिलाने में चूक नहीं होनी चाहिए. ऐसा कर के हम अपनी जमीन में जीवांश पदार्थ की मात्रा में तेजी से इजाफा कर के जमीन को खेती लायक बरकरार रख सकते हैं.

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