मेरे पड़ोसी की पत्नी बहुत ही अंधविश्वासी है. उस का ज्यादातर समय पूजापाठ व धार्मिक टोटकों को पूरा करने में गुजर जाता है. बरसात का मौसम था. वह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ाने गई. उस दिन भीषण बारिश हो रही थी. फिसलन होने की वजह से वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ी और उस के घुटनों पर गंभीर चोटें आईं. धार्मिक अंधता के चलते उसे कई महीनों तक पीड़ा झेलनी पड़ी.

सुनंदा गुप्ता

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मैं अपने मित्र जगदीश के साथ कार में ब्रह्मपुखर से बिलासपुर की ओर जा रहा था. तभी एक साधु ने हाथ दे कर कार रुकवाई और कहा, ‘‘भक्त, जब गाड़ी में जा रहे हो तो इस महात्मा को भी साथ ले चलो.’’

मेरा मित्र गाड़ी ड्राइव कर रहा था. मैं ने उसे इशारे से मना किया, परंतु मेरे मित्र ने साधु को लिफ्ट देना समाजसेवा का काम समझा.

उस ने साधु से पूछा, ‘‘महात्माजी, आप को कहां तक  जाना है?’’ साधु ने कहा, ‘‘भक्त, बस थोड़ा सा आगे.’’

बस, थोड़ा सा आगे कहकह कर वह  महात्मा बिलासपुर पहुंच गया. कार से उतरते वक्त साधु ने मेरे मित्र से कहा, ‘‘भक्त, तुम्हारा भविष्य अच्छा है, जिन की गाड़ी में हम महात्मा लोग बैठते हैं उन को धन की कोई कमी नहीं रहती है. लाओ, अब कुछ दक्षिणा निकालो, महात्मा को भोजन भी करना है.’’

मेरे मित्र ने उसे 50 रुपए का नोट दिया. इस प्रकार वह साधु मुफ्त यात्रा करने के साथ मेरे मित्र से रुपए भी झटक कर ले गया.

प्रदीप गुप्ता

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मारवाड़ी समाज में घर के किसी भी सदस्य की मृत्यु पर 92 दिनों तक किसी के भी मिलने आने पर रोने का रिवाज है. घर के व्यक्ति की मौत पर वैसे ही सब की हालत बिगड़ी होती है, ऐसे में बारबार रोने से हालत और बिगड़ जाती है.

कुछ वर्षों पहले मेरी सहेली के पति की शादी के 10 वर्षों के बाद मौत हो गई. मेरी सहेली की हालत ज्यादा बिगड़ गई. उस से बैठा भी नहीं जा रहा था. ऐसे में घर के लोगों ने उस को रिवाज के अनुसार, मिलने आने वालों के सामने बैठा दिया. मेरी सहेली बेहोश हो गई. भला यह कैसा रिवाज कि दूसरे की जान पर बन आए.

उमा गोपालजी मुंगड

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