हमारे घर के पास खाली पड़े प्लौट में एक डौगी ने बारिश के मौसम में 10 बच्चों को जन्म दिया. सुबह औफिस जाते समय पति ने मुझ से कहा, ‘‘जो टीन का पतरा हमारे पास रखा है, किसी से कह कर इन बच्चों के लिए छोटा सा आशियाना बनवा देना. अगर बारिश हुई तो ये बच नहीं पाएंगे.’’

मेरी दोनों बेटियां पशुप्रेमी हैं. लेकिन वे अपने स्कूल और कालेज गई थीं. शाम को एक अनजान लड़की, जो पहले भी कई स्ट्रीट डौग्स को खाना, दवाई वगैरा खिलाने हमारे महल्ले में आती रहती है, अपने भाई के साथ आई, और बच्चों की मां को टोस्ट खिलाने लगी. हम भी घर के बाहर खड़े थे.

बातोंबातों में मैं ने उस से कहा, ‘‘हम तो इन बच्चों के लिए घर बनाना चाहते थे, मगर कैसे क्या करें, हमारे पास तो टीन का एक पतरा भर है.’’ तो उस ने तुरंत कहा, ‘‘आंटीजी, मेरे पास लोहे का एक स्टैंड है. उस पर टीन को रख कर हम इन बच्चों के लिए घर बना सकते हैं. मैं, बस, कुछ देर में वापस आती हूं.’’

रात में 8 बजे वह अपने भाई व 3 दोस्तों को ले कर आई. मैं, मेरे पति व बेटी भी बाहर उन की मदद के लिए निकल आए. प्लौट में सुरक्षित ऊंची जगह के ऊपर स्टैंड रख कर उसे टिन के पतरे से ढक दिया गया.

सामने के घर से एक पड़ोसी ने अपनी कार का पुराना प्लास्टिक कवर दे दिया जिस से पूरा घर ढक गया और हम सब ने राहत की सांस ली.

एक पाठिका

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वर्ष 2008 में मेरे पति के हृदय की बाईपास सर्जरी अपोलो अस्पताल, दिल्ली में हुई थी. 10 दिनों तक अस्पताल में रहने के बाद एक सप्ताह बाहर रहना था, उस के बाद फिर दिखाना था. उस के बाद छुट्टी मिलनी थी. अस्पताल के पास सरिता विहार में प्रतिदिन के हिसाब से एक सप्ताह के लिए कमरा और रसोई किराए पर मिल गए.

हम लोग तो बाहर का खा लेते पर इन के लिए खाने की व्यवस्था करनी थी. अस्पताल में ही एक सज्जन मिल गए जो दक्षिण दिल्ली में रहते थे. उन्होंने हमें अपनी गाड़ी से सरिता विहार पहुंचाया तथा हमारे लिए गैसबरतन आदि की व्यवस्था की और इन की सेवा के लिए एक नर्स भी दिलवा दी.

हमारे प्रवास के दौरान वे बराबर हालचाल पूछते रहे. आज भी उन्हें याद कर के हमारा सिर श्रद्धा से झुक जाता है.

मनोरमा अग्रवाल

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