‘‘मैं जब सिर्फ 3 महीने का था तो मेरे माथे पर एक छोटी सी चोट लगने से काफी देर तक खून बहता रहा. खून लगातार बह रहा था. पहले तो मातापिता ने इस ओर ज्यादा ध्यान नहीं दिया लेकिन जब काफी कोशिशों के बावजूद खून बंद नहीं हुआ तो वे मुझे अस्पताल ले गए. वहां डाक्टरों ने खून की जांच करवा कर बताया कि मुझे हीमोफीलिया की बीमारी है. उस समय इस बीमारी के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी. और न ही इस रोग के डाक्टर उपलब्ध थे. तब हीमोफीलिया के विशेषज्ञ ही उपचार किया करते थे. ऐसे विशेषज्ञ से मेरा भी इलाज चलता रहा.

‘‘एक बार तो इस बीमारी की वजह से मेरे हाथ में सूजन आ गई. एक डाक्टर ने इसे किसी कीड़े के काटने से आई सूजन समझ कर कट लगा दिया जिस से काफी ब्लीडिंग होती रही. उस के बाद मेरे पिता ने किसी अखबार में हीमोफीलिया फैडरेशन औफ इंडिया के बारे में पढ़ा. इस फैडरेशन तक पहुंचने में 4 साल लग गए. यहां पहुंचने पर मेरा फैक्टर टैस्ट हुआ. जिस के जरिए डायग्नोज हुआ कि मुझे ‘बी’ टाइप का हीमोफीलिया है.

‘‘मेरे मातापिता मेरे इलाज को ले कर काफी परेशान रहते. मैं अन्य बच्चों की तरह खेलकूद भी नहीं सकता था. 3 महीने में तकरीबन 20 से 25 इंजैक्शन लगवाने पड़ते. लेकिन आज मैं एक आम आदमी की तरह जी सकता हूं और अपने काम को पूर्ण रूप से करने में सक्षम भी हूं. हां, आज भी मुझे कुछ सावधानियां जरूर बरतनी पड़ती हैं.’’

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उपरोक्त कथन 36 साल के डा. रमन खन्ना का है. केवल रमन खन्ना ही नहीं, न जाने ऐसे कितने ही मरीज हैं जो हीमोफीलिया नामक इस बीमारी से जूझ रहे हैं. डा. रमन तो फिर भी बेहतर स्थिति में हैं कि उन्हें अपनी इस बीमारी के बारे में जानकारी है लेकिन न जाने ऐसे कितने मरीज हैं जिन्हें इस बीमारी के बारे में न तो जानकारी है और न ही वे इस का इलाज करवा पाने में सक्षम हैं.

हीमोफीलिक इस बीमारी को गंभीरता से लेते ही नहीं हैं. वे लगातार खून बहते रहने को एक आम समस्या की तरह लेते हैं. वे समझते हैं कि खून बहना कोई बीमारी नहीं है. कई डाक्टर भी यही कहते हैं कि खून बहना कोई बीमारी नहीं है. लेकिन लगातार बिना रुके खून बहते रहना अन्य गंभीर बीमारियों की तरह ही एक बीमारी है, जिस का समय पर इलाज किया जाना जरूरी है.

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के डा. डी के गुप्ता बताते हैं कि हीमोफीलिया एक आनुवंशिक बीमारी है, जो आमतौर पर पुरुषों में ही अधिक पाई जाती है. यह बीमारी रक्त में थक्का नहीं बनने देती. हीमोफीलिया के मरीजों में रक्त प्रोटीन की कमी होती है जिसे क्लौटिंग फैक्टर भी कहा जाता?है. यह प्रोटीन या फैक्टर रक्त का वह गुण है जो बहते खून पर थक्के जमा कर उस का बहना रोक देता है. रक्तस्राव अंगों या ऊतकों को हानि पहुंचाता?है और कई बार अधिक रक्तस्राव जानलेवा भी होता है. यह बीमारी वास्तव में है क्या और किस तरह इसे नियंत्रित किया जा सकता है, जानना जरूरी है.

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लक्षण

हीमोफीलिया के प्रकार व गंभीरता पर निर्भर करता है कि रक्तस्राव कितना होता है. जिस बच्चे को हलका हीमोफीलिया है, हो सकता है उस के लक्षण तब तक प्रकट न हों जब तक कि उस की कोई ऐसी सर्जरी या दुर्घटना न हो जिस में बहुत खून बहे. रक्तस्राव बाहरी या भीतरी, कैसा भी हो सकता है.

अत्यधिक बाहरी रक्तस्राव के लक्षण हैं:

– मुंह के भीतर कटने या दांत उखड़ने की वजह से रक्त बहना.

– बिना किसी कारण के नाक से खून बहना.

– किसी जख्म से खून कुछ देर के लिए बंद होने के बाद दोबारा बहने लगना.

जोड़ों मेें रक्तस्राव : घुटनों, कोहनियों आदि जोड़ों में?भीतरी रक्तस्राव बिना किसी चोट के हो सकता है. शुरू में जोड़ों में कसाव आ जाता है पर कोई पीड़ा नहीं होती, खून बहने का कोई निशान भी नहीं होता जोकि दिखाई दे. फिर जोड़ में सूजन आ जाती है, छूने पर वह गरम महसूस होता है. उस जोड़ को घुमानेहिलाने मेें दर्द होता?है. अस्थायी तौर पर जोड़ में कोई क्रिया नहीं हो पाती. जोड़ों में होने वाला रक्तस्राव तत्काल बंद न किया गया तो वह अंग हमेशा के लिए क्षतिग्रस्त हो सकता है.

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मस्तिष्क  में रक्तस्राव : दिमाग में रक्तस्राव का होना एक बहुत ही गंभीर समस्या है, जो एक साधारण गुमड़े  से भी हो सकती है या किसी गंभीर चोट से.

रक्तस्राव के लक्षण

– लंबे समय तक रहने वाले तकलीफदेह सिरदर्द या गरदन में पीड़ा या कड़ापन.

– बारबार उलटी होना.

– अचानक कमजोरी होना, बाजुओं या पांवों का बेडौल होना या चलने में तकलीफ होना.

– दोहरी दृष्टि, ऐंठन.

उपचार

हीमोफीलिया के लिए जो मुख्य उपचार है वह रिप्लेसमैंट थेरैपी कहलाता है. इस में मरीज को क्लौटिंग फैक्टर दिया या बदला जाता है. क्लौटिंग फैक्टर 8 (हीमोफीलिया ‘ए’ हेतु) या क्लौटिंग फैक्टर 9 (हीमोफीलिया ‘बी’ हेतु) को धीरेधीरे ड्रिप या इंजैक्शन के माध्यम से नसों में पहुंचाया जाता?है.

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एक और उपचार है, जिसे डेस्मोप्रेसिन कहते हैं. यह इंसान द्वारा बनाया गया एक हार्मोन है, जो निम्न से मध्यम स्तर के हीमोफीलिया ‘ए’ के मरीजों को दिया जाता है. इसे हीमोफीलिया ‘बी’ तथा गंभीर हीमोफीलिया ‘ए’ के मरीजों के उपचार के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता. इस तरह हीमोफीलिया के मरीजों को आशा नहीं खोनी चाहिए. यदि डाक्टर के निर्देशानुसार उपचार लिया जाए तो इस के रोगी सक्रिय रह कर सारा जीवन जी सकते हैं

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