गोंदिया से नौकरी की तलाश में आई अंकिता रायपुर के एक फाइवस्टार होटल में काम करने लगी. प्रदीप भी वहीं काम करता था. दोनों की जानपहचान बढ़ी और दोस्ती प्यार में बदल गई. इस के बाद उन्होंने एकसाथ रहने का फैसला कर लिया. मकानमालिक को आपत्ति न हो, इस के लिए दोनों ने वहां मंदिर में शादी रचा ली और अपनेआप को पतिपत्नी बता कर रहने लगे.
वह शादी मात्र दिखावा थी. वे लिव इन रिलेशनशिप (सहजीवन) में रह रहे थे. दोनों 2 साल तक साथ रहते रहे. उन में अच्छा तालमेल रहा मगर उस के बाद प्रदीप के रवैए में बदलाव आने लगा. उस ने एकाएक अपनी नौकरी बदल ली. अंकिता को कुछ संदेह हुआ. इसलिए उस ने हठ पकड़ ली कि हमें हमारे परिवारों को विश्वास में ले कर विवाह कर लेना चाहिए ताकि हमारे रिश्ते को कानूनी व सामाजिक मान्यता मिल जाए. मगर प्रदीप एक दिन बिना बताए गायब हो गया. अंकिता बहुत परेशान हुई. वह उस के दोस्तों के पास गई. तब एक दोस्त ने रहस्योद्घाटन किया कि प्रदीप उस से यह कह कर गया है कि मैं अंकिता के साथ टाइमपास कर रहा था, उस से कह देना कि वह मुझे भूल जाए.
अंकिता शिकायत ले कर पुलिस स्टेशन पहुंची और उस ने प्रदीप के खिलाफ रिपोर्ट लिखवाई जिस में उस ने विवाह का झांसा दे कर देहशोषण का आरोप लगाया. उस ने मंदिर में हुई प्रतीकात्मक शादी के सुबूत पेश करते हुए रिपोर्ट में लिखवाया कि सामाजिक रूप से शीघ्र शादी कर लेने के आश्वासन पर वे साथ रह रहे थे मगर जब भी उस ने घर वालों को रिश्ते के बारे में बताने के लिए कहा, प्रदीप कुछ न कुछ बहाना बना कर टालता रहा. पुलिस जांच किसी नतीजे पर पहुंचती, इस से पहले मन ही मन टूट चुकी अंकिता ने आत्महत्या कर ली. अब प्रदीप पर आत्महत्या हेतु उकसाने का प्रकरण चल रहा है.
बेंगलुरु में काम करते हुए राजीव और अलका की भेंट हुई. दोनों सहकर्मी थे. दोनों में आपस में अच्छा तालमेल था. वे लिव इन रिलेशनशिप में रहने लगे. यद्यपि दोनों टे्रडिशनल परिवारों से थे और जानते थे कि जातीय भिन्नता के कारण वे कभी विवाह नहीं कर पाएंगे. बावजूद इस के, वे साथ रह रहे थे. दोनों के बीच तय हुआ था कि वे बच्चे को जन्म नहीं देंगे और समय आने पर मातापिता व परिवार की पसंद से विवाह करने के बाद सदासदा के लिए अलग हो जाएंगे. इस तरह उन की रिलेशनशिप पूरी तरह से एकदूसरे का अकेलापन दूर करने के लिए बनी.
एक अरसे बाद उन की लिव इन रिलेशनशिप समाप्त हो गई. आज अलका एक कारोबारी की पत्नी है और पूरी तरह से अपने परिवार में रचबस गई है. उधर, राजीव मुंबई में कार्यरत है. जब कभी वे मिलते हैं, मैत्री भाव से मिलते हैं.
आजकल लिव इन रिलेशनशिप अत्यधिक प्रचलन में है. इस का तात्पर्य परस्पर सहमति से 2 वयस्क स्त्रीपुरुष का विवाह किए बिना, पतिपत्नी की भांति साथ रहने से है. उन के इसी सहजीवन को लिव इन रिलेशनशिप कहते हैं. हालांकि कानून में यह परिभाषित नहीं है लेकिन लिव इन रिलेशनशिप में रही एक अध्यापिका के अलग होने पर गुजाराभत्ता दिए जाने के मामले में उच्चतम न्यायालय ने 4 शर्तों का उल्लेख किया है जिन्हें परिभाषा के रूप में माना जा सकता है.
न्यायालय की पहली शर्त है कि रिलेशनशिप में रहने वाले युगल समाज के समक्ष पतिपत्नी के तौर पर पेश होने चाहिए. दूसरी शर्त है कि वे शादी की वैध आयु को प्राप्त कर चुके हों. तीसरी शर्त यह है कि उन के बीच रिश्ते कानूनी रूप से शादी करने हेतु वर्जित न हों. चौथी व अंतिम शर्त यह है कि वे स्वेच्छा से लंबे समय तक पतिपत्नी के रूप में रह रहे हों. इन शर्तों को सहजीवन की रूपरेखा माना जा सकता है.
जहां तक कानून द्वारा प्रतिबंध या वर्जना की बात है, ऐसा कहीं भी देखा नहीं गया है. उलटा, सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप की समीक्षा करते हुए एक मामले में कहा है कि जब 2 वयस्क साथ रहना चाहते हैं तो इस में कौन सा अपराध है? इस कारण यह रिलेशनशिप उपरोक्त प्रकरण में व्याख्यायित शर्तों के अंतर्गत स्वीकार्य मानी जा सकती है.
उल्लेखनीय है कि हमारे देश में, विशेष रूप से महानगरों में ऐसा बड़े पैमाने पर हो रहा है. कई नामीगिरामी फिल्मी हस्तियां और प्रतिष्ठित लोग लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. इन के नाम गिनाए जाएं तो लंबी सूची बन सकती है. कुल मिला कर कहा जा सकता है कि महानगरीय संस्कृति में इस के प्रति लोगों के मन में किसी प्रकार की झिझक दिखाई नहीं देती और अन्य लोग भी उन के सहजीवन को स्वीकारने लगे हैं.
समाज पर असर
उपरोक्त दोनों उदाहरणों से एक बात स्पष्ट हो जाती है कि सहजीवन जहां विवाह से पूर्व का अनुभवपूर्ण प्रायोगिक परीक्षण है वहीं आज के युवाओं ने इसे टाइमपास का माध्यम भी बना लिया है. वे इसे पूरी तरह व्यक्तिगत मामला मानते हैं और हस्तक्षेप को मौलिक अधिकारों का हनन कहते हैं.
सामाजिक कार्यकर्ता अमिताभ बनर्जी कहते हैं कि सहजीवन से किसी को रोकना, व्यक्ति को मैत्री संबंधों से रोके जाने की भांति है, जिस का कोई औचित्य नहीं. लगे हाथों वे यह भी स्वीकार करते हैं कि इस के कारण समाज में जो परिवार नामक संस्था है वह अवश्य प्रभावित होती है और कदाचित इस दौरान युगल के बच्चे हो जाएं तो उन के टाइटल व उत्तराधिकार को ले कर विभिन्न समस्याएं पैदा हो सकती हैं.
क्यों है चलन में
सहजीवन की वकालत करने वाले इस के कई लाभ गिनाते हैं. उन का कहना है कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों में धोखा, बेवफाई व व्यभिचार की आशंका बहुत कम रहती है क्योंकि उन के संबंध परस्पर सहमति के आधार पर बने होते हैं और जब तक चाहें तब तक जारी रखने की स्वतंत्रता इन का मूल आधार होती है. जब भी उन्हें यह लगता है कि उन्हें विवाह कर लेना चाहिए, वे विवाह कर लेते हैं अन्यथा बंधनरहित दांपत्य सुख का आपसी समझ के अनुसार उपभोग करते हैं. इस तरह सहजीवन में साथ रहते हुए वे उन्मुक्त जीवन का लुत्फ उठाते हैं. वे उन असफल विवाहों की तुलना में, जिन में लंबी, उबाऊ कानूनी प्रक्रिया के बाद तलाक हो जाते हैं, से लिव इन रिलेशन को कई गुना बेहतर मानते हैं.
मुंबई में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में कार्यरत अंशुल, जो स्वयं 3 वर्षों से लिव इन रिलेशन में हैं, का कहना है कि ऐसा फैसला भली प्रकार विचारित व द्विपक्षीय होता है. इसलिए अकसर सही ही साबित होता है. देखने में आया है कि लोग शादी के बंधन में बंधने के बावजूद परस्पर समर्पण का भाव अधिक समय तक नहीं रख पाते और अलगाव व तलाक के शिकार बन जाते हैं. सहजीवन उन से कई गुना बेहतर है, जिस में कम से कम विवाह पूर्व पर्याप्त समझ बनाने की सुविधा है. अंशुल कहते हैं कि यह कोई अजूबा नहीं क्योंकि आज के युवाओं का जीवन के प्रति अपना नजरिया है. लिव इन रिलेशनशिप ऐसा ही मसाला है जिस में जब तक निभी, साथ रह लिए अन्यथा सम्मानपूर्वक अलग हो गए.
बौलीवुड ऐक्ट्रैस कश्मीरा शाह, जो विगत 7 सालों से कृष्णा के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रह रही हैं, कहती हैं, ‘‘हमें एकदूसरे से कोई परेशानी नहीं है. जहां तक बच्चों की बात है, तो बच्चा पैदा कर के हम क्या करेंगे? पता चला सारी उम्र उस की परवरिश में व्यतीत कर दी और बाद में जब हमें उस की जरूरत पड़ी, तब वही बच्चा हम से दूरी बना कर कहीं और चला गया.’’
गैरजिम्मेदारी को बढ़ावा
इस तरह सहजीवन में रह रहे ऐसे जोड़े न बच्चों को जन्म देना चाहते हैं और न ही उन की परवरिश के झमेलों में पड़ना चाहते हैं. इस कारण वे भावी जीवन में बच्चों को ले कर उत्पन्न होने वाले पारिवारिक, सामाजिक व कानूनी दायित्वों से भी बचे रहने का उपक्रम कर लेते हैं.
वहीं, आलोचक इसे उत्तरदायित्वविहीन गृहस्थ का विकृत स्वरूप मानते हैं जिस के कारण चाहेअनचाहे विभिन्न समस्याएं उत्पन्न होती हैं. वे पतिपत्नी नहीं होते बल्कि पार्टनर होते हैं. मान लीजिए, इस दौरान भावुकता भरे क्षणों या लापरवाहीवश उन के बच्चा हो जाए तो उस के जन्मदाता ‘पार्टनर’ होने के नाते, मातापिता नहीं कहला सकते. बेशक, ऐसे बच्चों को कितनी ही धनवैभव की सुविधाएं प्रदान कर दी जाएं या संरक्षण दे दिया जाए किंतु वे कभी उन को वैध संतति होने का अधिकार नहीं दे सकते.
न्यायालयों के कुछ फैसलों के अनुसार, उन्हें वैध संतति की भांति भरणपोषण के अधिकार तो अवश्य मिल जाते हैं किंतु अवैध संतति होने के नाते वैध उत्तराधिकार प्राप्त नहीं होता. जहां तक उन्हें मिलने वाले वात्सल्य का सवाल है, पता नहीं कब जन्मदाताओं की पार्टनरशिप टूट जाए और बच्चा मिल रहे प्यार से भी वंचित हो जाए.
कुछ लोगों का सोचना भिन्न है. वे लिव इन रिलेशनशिप को पुरुष मनमानियों का नया सुगरकोटेड संस्करण मानते हैं. अपनी बात दृढ़तापूर्वक रखते हुए वे कहते हैं कि महिलाओं के अस्तित्व व सम्मान को स्वीकार करना अब भी पुरुषों के लिए दुष्कर है. कदमकदम पर वे महिलाओं को उपभोग सामग्री समझते हैं. नारी सशक्तीकरण व स्त्री स्वतंत्रता की ओट में ‘रखैल व्यवस्था’ का पुनर्जीवन ही लिव इन रिलेशनशिप है. लेख के प्रारंभ में दिए गए दोनों उदाहरण इसी ओर इंगित करते हैं जिन में मुख्य रूप से स्त्री का शोषण ही दिखाई पड़ता है जो एक तरह से रखैल व्यवस्था का ही विस्तृत रूप है.
जो कुछ भी हो, आज के जीवन में लिव इन रिलेशनशिप अत्यधिक प्रचलित है जिसे नकार पाना संभव नहीं.
कुछ जोड़ों ने लिव इन रिलेशन को युवावस्था आने और विवाह होने के बीच वाले समय को ‘सैक्ससैक्स’ का खेल बना दिया है. इस खेल को भी सहज स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि इस के दौरान यदि कोई स्त्री गर्भवती हो जाए या कोई यौनजनित बीमारी लग जाए तो यह मनोरंजन भारी पड़ सकता है. दूसरी ओर भारतीय पुरुष आज भी सहज ही किसी अन्य के साथ पत्नीवत रही स्त्री के साथ विवाह करने से हिचकिचाते हैं. यदि विवाह के समय पूर्व सहजीवन का ज्ञान न हो और यह रहस्य भविष्य में खुले, तब संभव है वैवाहिक जीवन ही खतरे में पड़ जाए. पिछले दिनों जिस तरह से नारायण दत्त तिवारी उज्ज्वला को अनदेखा कर रहे थे उस से आजिज आ कर उज्ज्वला ने धरने पर बैठने की धमकी तक दे डाली. लिहाजा हार मान कर नारायण दत्त तिवारी उज्ज्वला के साथ लिव इन में रहने को राजी हो गए. फिर कुछ ही दिनों बाद उन्होंने उज्ज्वला से शादी कर ली.
इन सब के मद्देनजर जरूरी है कि लिव इन रिलेशनशिप को कानून के माध्यम से नियंत्रित किया जाए. टाइमपास या सैक्ससैक्स के उन्मुक्त खेल हेतु लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों पर प्रभावी रोक लगाई जाए ताकि सुनिश्चित हो सके कि जो लोग इस प्रकार रह रहे हैं वे सुप्रीम कोर्ट की शर्तों की अनुपालना कर रहे हैं या नहीं. वरना दोहरा वैवाहिक जीवन जीने वाले व यौनदुराचरण में प्रवृत्त लंपट लोग इस की ओट में ‘रखैल’ रखने लगेंगे. इस तरह तय है कि कानूनी अंकुश के बिना पश्चिमी देशों की तर्ज पर हमारे यहां भी अवैध संततियों की भरमार हो जाएगी और यौनदुराचरण के प्रकरण बढ़ने लगेंगे.