हौंगकौंग ऐंड शंघाई बैंकिंग कौर्पोरेशन यानी एचएसबीसी की भारत की प्रमुख ने फैडरेशन औफ इंडियन चैंबर्स औफ कौमर्स ऐंड इंडस्ट्री यानी फिक्की की अध्यक्ष की हैसियत से नैना लाल किदवई ने सरकार से सुधारों की मांग की है. अमीर खरबपति उद्योगपति जब भी सुधारों की बात करते हैं तो उन का मतलब ऐसे सुधारों से होता है जिन से उन का मुनाफा बढ़े. उन्हें सरकार के काम में सुधार नहीं चाहिए, यह स्पष्ट है उन मांगों से जो उन्होंने की हैं.

उन्होंने वर्ल्ड बैंक की विश्व के देशों में काम करने के माहौल पर जारी रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा है कि विदेशों में काम करने में विदेशियों को जो दिक्कतें आती हैं उन में भारत का स्थान 131 से गिर कर 134 हो गया है. यानी भारत की अपेक्षा 133 देशों में काम करना आसान है. चलिए यह मान लेते हैं, पर वे कौन सी दिक्कतें हैं जिन के बारे में नैना लाल किदवई शिकायतें कर रही हैं.

पहली शिकायत है कि भारत में बिजनैस करने में नियमों, अनुमतियों की भरमार है. ये नियम राज्यों व केंद्र के मंत्रालयों ने बनाए हैं. उन से अनुमति लेने के लिए सचिवालयों के बरामदों में बारबार जाना होता है और सचिव व अपर सचिव स्तर के अधिकारियों को पटाना होता है. नैना लाल किदवई किसी कसबे के दुकानदार की बात नहीं कर रहीं जिसे शौप ऐंड एस्टैबलिशमैंट कानून के अंतर्गत लाइसैंस लेने या बिक्री कर विभाग में पंजीकरण कराने के लिए जाना होता है.

वे शिकायत करती हैं कि भूमि अधिग्रहण मुश्किल हो गया है. उन्हें उन किसानों की चिंता नहीं जिन की जमीन को सरकार मैले कागज पर टाइप कर के, उन्हें नाममात्र का मुआवजा दे कर, उन से छीन लेती है जबकि किसान भी छोटा उद्योगपति है, उत्पादन करता है, 2-3 नौकर रखता है.

उन्हें पर्यावरण संबंधी कानूनों से शिकायत है पर उन उद्योगों से नहीं जो अपना गंदा पानी नदियों में डाल रहे हैं और गंदा वेस्ट खेतों में डाल देते हैं.

उन्हें शिकायत है कि औनलाइन पेमैंट की सुविधा अभी तक उपलब्ध नहीं हो रही पर उन्हें उन मंडियों और बाजारों के व्यापारियों की चिंता नहीं जहां बिक्री कर व आय कर के अधिकारी समूह बना कर डाकुओं की तरह छापे मार कर उगाही करते हैं.

असल में इस देश में उद्योगपति बनते ही इन नियमों के अंबार से हैं. जो लोग नेताओं और अफसरों के निकट होते हैं वे सफल हो जाते हैं. तभी तो नीरा राडिया टेपों में टाटा, अंबानी, बिड़ला घरानों द्वारा मनचाहे मंत्रियों की नियुक्तियों की बातें हैं. नैना लाल किदवई उद्योगों की कमजोरियों को सरकारी तंत्र के बहाने छिपा रही हैं जबकि सरकारी तंत्र व्यापारियों और कारखानेदारों को पनपने नहीं देना चाहते.

औद्योगिक कंपनियों की संस्था यानी फिक्की को पहले छोटे व्यापारियों की सुविधाओं का खयाल करना चाहिए ताकि उद्योगों का माहौल सुधरे. बड़े उद्योगपति ही अरबों का मुनाफा कमाएं, ऐसे सुधार देश को नहीं चाहिए, छोटे व्यापारी, छोटे उद्योगपति भी 2-4 लाख रुपए सालाना कमा लें, यह ज्यादा जरूरी है.

 

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