सरित प्रवाह, अगस्त (प्रथम) 2013
‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ एक उत्कृष्ट टिप्पणी है. यह अत्यंत रोचक, सामाजिक, सामयिक व ज्ञानवर्द्धक है. सुप्रीमकोर्ट का यह फैसला कि जिन जनप्रतिनिधियों को किसी आपराधिक मामले में 2 साल से ज्यादा की सजा किसी अदालत से मिल चुकी हो वह अपील के बावजूद जनप्रतिनिधि नहीं रहेंगे और उन की सीट खाली मानी जाएगी, अतिमहत्त्वपूर्ण फैसला है. राजनीति में पिछले वर्षों में बड़ी संख्या में अपराधी आए हैं. वे अपराध साबित होने पर अपील दाखिल कर देते थे और चूंकि अपीलें महीनों नहीं, सालों बाद सुनी जाती थीं, वे बारबार चुने जाते रहे हैं.
आप ने यह बिलकुल सत्य कहा है कि राजनीति से अपराधी गायब होने चाहिए क्योंकि उन्होंने ही अफसरशाही से मिल कर प्रशासन को खराब किया है. अफसरशाही उस तरह के नेताओं का स्वागत करती है जिन पर दाग लगे हों क्योंकि उन के साए में भ्रष्टाचार करने पर दोष दागियों को लगता है पर मलाई अफसरों को मिल जाती है. अफसरशाही नहीं चाहती कि शरीफ नेता आए क्योंकि तब उन्हें मनमानी करने का मौका नहीं मिलेगा.
आप का यह कहना कि जिस सरकारी अत्याचार व अनाचार से जनता कराह रही है वह नेताओं से ज्यादा अफसरशाही की देन है, सत्यता से ओतप्रोत है. अफसरशाही पर लगाम कसने के लिए जरूरी है कि नेता शरीफ, साफ छवि वाला हो जो निडर हो कर काम कर सके. सुप्रीमकोर्ट का फैसला नेताओं पर तो अंकुश लगाएगा ही, उस से ज्यादा यह अफसरशाही के पर कतरेगा. यह बहुत ही उत्कृष्ट फैसला है जो अब हर दल के लिए मानना अनिवार्य है.
कैलाश राम गुप्ता, इलाहाबाद (उ.प्र.)
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संपादकीय टिप्पणी ‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ अच्छी लगी. नेताओं ने इस देश की बागडोर संभालते वक्त इसे फिर से सोने की चिडि़या बनाने की झूठी कसमें खाई थीं. भारत सोने की चिडि़या तो नहीं बन सका अलबत्ता इस पर हुकूमत करने वाले जरूर मालामाल हो गए.
यह तो हाईकोर्ट व सुप्रीमकोर्ट ही हैं जिन की वजह से इन नेताओं पर लगाम लगी है. लेकिन राजनीतिक दल, जिन के कुछ नेता दागी हैं, चुप बैठने वाले नहीं हैं. वे मनमानी करने के लिए रास्ता बनाने में लगे हुए हैं.
बेबाक टिप्पणियों के लिए दिल्ली प्रैस प्रकाशन समूह बधाई का पात्र है जो पीतपत्रकारिता के बजाय समाज को जागरूक करने का मिशन ले कर आगे बढ़ता जा रहा है.
प्रदीप गुप्ता, बिलासपुर (हिमाचल प्रदेश)
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‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ टिप्पणी पढ़ने पर खुशी इस बात की हुई कि सर्वोच्च अदालत ने कानूनी हथौड़ा चला कर देश की राजनीतिक गरिमा और मर्यादा की रक्षा की है. संसद और विधानसभाओं में धन और जन के बल पर पहुंचे प्रतिनिधियों की बल, बुद्धि तथा सहमति पर सत्ता चलती रहेगी तो देश संपूर्ण रूप से भ्रष्टाचार के गड्ढे में ऐसा गिरेगा कि निकलना संभव नहीं होगा. हमें याद है आजादी की स्वर्ण जयंती, जब 1997 में मनाई गई थी, तब राजनीति के अपराधीकरण और अपराधियों के राजनीति में आने पर रोक लगाने का संकल्प लिया गया था, लेकिन वह संकल्प मात्र संकल्प ही रहा.
यह तो मानना ही होगा कि वर्षों से पतन के पथ पर चल रही राजनीति ने सब से पहले विश्वसनीयता को खोने का काम किया है. जनगण के अधिकारों के हनन के दोषी नेतागण को हर तरह की छूट मिल रही है, सुविधाओं के अतिरिक्त जहां तक मेरी जानकारी है मौजूदा लोकसभा में
162 सांसदों पर आपराधिक मुकदमे हैं जबकि पिछली लोकसभा में 125 सांसदों पर अपराध के मुकदमे थे. यानी आपराधिक पृष्ठभूमि वाले सांसदों की संख्या निरंतर बढ़ रही है. सर्वोच्च अदालत के फैसले के मद्देनजर उम्मीद की जा सकती है कि देश की राजनीतिक प्रणाली में सुधार होगा और देश व देश के लोगों का सम्मान सुरक्षित रहेगा.
बिर्ख खडका डुवर्सेली, दार्जिलिंग (प.बं.)
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सरित प्रवाह के अंतर्गत प्रकाशित टिप्पणी ‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ पढ़ कर लगा कि अपराधी प्रवृत्ति के नेताओं पर बहुत पहले ही प्रतिबंध लगा देना चाहिए था. इस से न तो नेता व नौकरशाहों की युगलबंदी चलती और न ही देश लूटा जाता.
आज जनता अपराधियों को वोट दे कर चुनाव जिता देती है. यह एक अबूझ पहेली है. मतदान के समय वोटरों की भी कुछ जवाबदेही बनती है. क्या लोग अपराधियों को चुन कर उन्हें सुधरने का मौका देते हैं या उन का खौफ लोगों का वोट छीन लेता है?
अपराधियों में सुधार तो आया नहीं, उलटे भ्रष्टाचार का जाल उन्होंने पूरे देश में फैला दिया. जो भी हो, अदालत ने हथौड़ा चला कर काबिलेतारीफ पहल की है. वैसे क्या सारी राजनीतिक पार्टियां इसे स्वीकारेंगी, इस पर प्रश्नचिह्न है.
आप की आशंका सही है कि इस से फर्जी मुकदमे भी होंगे. लेकिन झूठे इलजाम लगा, मुकदमा लड़ने वालों को कोर्ट दंडित कर, फर्जी मुकदमों को नियंत्रित कर सकती है.
माताचरण पासी, वाराणसी (उ.प्र.)
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संपादकीय टिप्पणी ‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ पढ़ी. आप का यह मानना सत्य है कि अफसरशाही नहीं चाहती कि शरीफ नेता आएं क्योंकि तब उन्हें मनमानी करने का मौका नहीं मिलेगा. लेकिन राजनीति के अपराधीकरण हेतु
फिर भी प्रमुख तौर पर हमारे धनलोलुप, सत्तालोलुप उन स्वार्थी तत्त्वों को ही माना जाएगा जिन का लक्ष्य येनकेनप्रकारेण सत्ता हथियाना और हराम की कमाई करना मात्र होता है.
बेशक इस के लिए किसी दल विशेष को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता. मगर कड़वी सचाई यह भी है कि हमाम में ये सभी नंगे नजर आते हैं. इस का सत्यापन संसद व विधानसभाओं में ऐसे आरोपियों के आंकड़े स्वयं ही कर रहे हैं.
ऐसे में अनायास ही जब कानूनी हथौड़ा ऐसे तत्त्वों पर या उन के संरक्षक दलों पर चलाया जाता है तो उन की बैसाखियों को पकड़ खड़े तत्त्वों को गिरते हुए देख दिल को सुकून मिलता है. देश के जनप्रतिनिधि कानून की धारा 8 (4) को निरस्त कर सुप्रीम कोर्ट ने मानो अपराधी तत्त्वों की
नाक में नकेल डाल कर एक नया इतिहास लिख दिया है.
टी सी डी गाडेगावलिया, करोलबाग (न.दि.)
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‘नेताओं पर अदालती हथौड़ा’ शीर्षक से आप की संपादकीय टिप्पणी बेहद सटीक रही. वास्तव में आज ऐसे कानूनी प्रावधानों की सख्त आवश्यकता है जो किसी भी तरह से राजनीति से अपराधियों को बाहर कर सकने में सहायक हों. देश में अकसर छोटेबड़े अपराधों के पीछे कहीं न कहीं तथाकथित नेता, मंत्री या उन के अनुयायियों का हाथ रहता है. यह बात अलग है कि सत्ता की खनक में कुछ समय के लिए मामला दबा दिया जाता है. सचाई यही है कि अफसरशाही से मिल कर ये बेलगाम नेता देश में प्रशासनिक व्यवस्था को पंगु बनाते हैं. जेलों में से ही चुनाव जीतने वाले ये तथाकथित जनप्रतिनिधि वास्तव में कैसे चरित्र के हैं यह सब जानते हैं.
पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से ग्रसित अपने देश में वृक्षारोपण, बागबानी का शौक लोगों में हालांकि बहुत कम प्रतिशत है फिर भी जो लोग प्रकृति की महत्ता और उपयोगिता से भलीभांति परिचित हैं उन के लिए आप वर्ष में एक बार बागबानी विशेषांक निकाल कर न केवल अपना नैतिक दायित्व निभा रहे हैं बल्कि लोगों को पर्यावरण की सुरक्षा के वास्ते इस प्राकृतिक शौक के प्रति जागरूक भी कर रहे हैं.
छैल बिहारी शर्मा ‘इंद्र’, छाता (उ.प्र.)
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निष्पक्ष सरिता
किसी में भी हिम्मत नहीं कि वह सत्य बात कहे, सत्य स्वीकारे. महीनेभर से ‘भाग मिलखा भाग’ फिल्म की हर न्यूजपेपर व हर मैगजीन ऐसी तारीफें कर रहे थे कि बस पूछिए मत. कुछ लोगों को कुछ खास लोगों की तारीफ करने की आदत होती है. सरिता के अगस्त (प्रथम) अंक के पृष्ठ संख्या 170 पर आप ने फिल्म की गलतियां दिखा कर सत्य बात कहने का जज्बा प्रकट किया है.
दस लोगों को खुश करने, दस लोगों की हां में हां मिलाने की आदत तो
100 में 99 की होती है. वे विरोध तभी करते हैं जब उन के स्वार्थ को झटका लगता है. लेकिन आप सच्ची पत्रकारिता करते हैं. मेरा अभिनंदन स्वीकारें.
प्रीति तोर, रायपुर (छ.ग.)
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क्या जवाब मिलेगा?
यों तो सभी धर्माचार्य, पंडेपुजारी व आस्तिक लोग यानी अंधभक्त एकमत से स्वीकारते हैं कि भगवान तो हर जगह मसलन, हर इंसान में, यहां तक कि कणकण में पाए जाते हैं. मगर उत्तराखंड सरीखी प्राकृतिक आपदा में फंसे भक्तजनों की रक्षा पर उठाए गए आप के सवाल ‘जब भक्त मर रहे थे तो देव कहां थे’ का जवाब शायद ही कोई दे पाए.
यों भी ऐसी भयानक त्रासदी पर उठाया गया यह सवाल नाजायज भी नहीं है, क्योंकि ये ही लोग यह भी कहते नहीं अघाते कि प्रभु इच्छा बिना तो पत्ता तक नहीं हिल पाता है. ऐसे में जब प्रभु इच्छानुसार ही उस के असंख्य भक्त उस के ही दर्शनों के लिए जा कर ऐसी विपदा में फंस जाएं, तो यह सवाल न केवल अहम बन जाता है बल्कि विचारणीय भी हो जाता है कि अगर ऐसे में नहीं तो भगवान फिर कब प्रकट होंगे? क्या उन के चमत्कार के लिए भक्तगणों की यों ही बलि ली जाती रहेगी? इन सवालों का जवाब, शायद ही कभी मिल पाए.
ताराचंद देव रैगर, श्रीनिवासपुरी (न.दि.)
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सरिता एक आंदोलन
निसंदेह सरिता समाज को प्रशस्ति मार्ग दिखाने वाली एक अग्रणीय पत्रिका है. मैं तो इस पत्रिका को पत्रिका न मान कर एक जनआंदोलन, क्रांति और समाज में इंकलाब उत्पन्न करने वाली एक चिंगारी मानता हूं.
तांत्रिकों, सेठों, नेताओं और भ्रष्टाचार व भ्रष्टाचारियों के खिलाफ यह पत्रिका अरसे से आवाज उठा रही है. इस के लिए संपादकीय टीम को अभिवादन के साथ हार्दिक बधाई. अगस्त (प्रथम) का बागबानी विशेषांक बहुत पसंद आया. आप को बता दूं कि मैं सरिता का 1975 से नियमित पाठक हूं.
सरिता उत्तम नहीं सर्वोत्तम है. लेकिन अब इस के अधिकांश पाठक कुछ परिवर्तन भी चाहते हैं, कृपया ध्यान दें. सामाजिक समस्याओं की कहानियों को प्राथमिकता के आधार पर छापा जाए व सामान्य लेखकों को भी वरीयता दी जाए.
उमाशंकर मिश्र, वाराणसी (उ.प्र.)
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स्वार्थ की राजनीति
अगस्त (प्रथम) अंक में ‘मोदी का खेल, कांगे्रसी पटेल’ लेख में नरेंद्र मोदी की सियासी चाल की बारीकियों को सही ढंग से प्रस्तुत किया गया है. राजनीति की बिसात पर जिस चिंगारी से मोदी खेल रहे हैं, शायद उन को अभी यह आभास नहीं है कि अंततोगत्वा हाथ और घर उन का ही जलेगा. सरदार पटेल ने देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए सदैव राजधर्म का पालन किया. उन्होंने उन तमाम रियासतों को देश के एकसूत्र में बांधने का सफल प्रयास किया जो भारत के गणराज्य से छिटक कर अपना अलग अस्तित्व बनाए रखना चाहती थीं. साथ ही, देश के साथ खिलवाड़ करने वाले धार्मिक पाखंडियों को कड़ाई से सबक सिखाने का कार्य किया.
जबकि मोदी इस धारा के विपरीत चल रहे हैं. जिस घृणा और कुटिलता के सहारे गुजरात में उन्होंने अपना परचम लहराया है, उस का प्रयोग वे पूरे देश में करना चाहते हैं. आश्चर्य की बात है कि वे पूरे देश को गुजरात के थर्मामीटर से नाप रहे हैं.
आज जबकि दुनिया के मानचित्र पर हमारा देश एक मजबूत, आधुनिक व उभरते हुए विकसित राष्ट्र के रूप में जाना जा रहा है तब धार्मिक उन्माद फैला कर मोदी देश को पीछे धकेलने का प्रयास कर रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के महान विचारकों, देशभक्तों व कद्दावर नेताओं से अनुरोध है कि समय रहते मोदी जैसे धार्मिक कट्टर व सीमित सोच वाले व्यक्ति को आगे आने से अविलंब रोकें अन्यथा सिवा हाथ मलने के कुछ भी हासिल नहीं होगा.
सूर्य प्रकाश, वाराणसी (उ.प्र.)