Dalit Youth Issues: फसाद की जड़ यह नहीं है कि ब्राह्मण खुद को जाति की बिना पर श्रेष्ठ बताते रहे हैं फसाद की जड़ यह है कि जड़ हो चले गैर ब्राह्मणों ने भी उन्हें श्रेष्ठ मान रखा है. खासतौर से उन दलितों ने जिन्हें लतियाए जाने के स्पष्ट निर्देश धर्म ग्रंथों में हैं.

 

जातिगत बराबरी की लड़ाई और इसे दूर करने की कोशिशें हर दौर में होती रही हैं आज भी हो रही हैं. लेकिन तरीका हर बार की तरह गलत है जिस में शिक्षा, हुनर और काबिलियत नहीं बल्कि रोटीबेटी के संबंधों की दुहाई कुंठा की शक्ल में दी जा रही है. इस में से भी रोटी के कोई माने अब नहीं रहे क्योंकि हर कभी ऊंची जाति वाले दलितों के साथ भोज करते नजर आ जाते हैं. लेकिन बेटी का हाथ दलित युवा के हाथ में दे कर सात फेरे लगवाते कभी कोई नहीं दिखता.

यह दुहाई इस बार मध्यप्रदेश के एक प्रमोटी आईएस अधिकारी संतोष वर्मा ने भोपाल में 25 नवंबर को दी है. दलित कर्मचारी अधिकारी वर्ग के संगठन अजाक्स के प्रांतीय अधिवेशन में बोलते उन्होंने कहा, जबतक कोई ब्राह्मण अपनी बेटी मेरे बेटे को दान नहीं कर देता या उस के साथ संबंध नहीं बनाता तब तक आरक्षण जारी रहना चाहिए.

कितना और कैसा बवाल इस बयान पर ब्राह्मणों उन के संगठनों ने मचाया इस का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. लेकिन इस बात का अंदाजा हर कोई नहीं लगा पाया कि क्यों कोई ब्राह्मण अपनी बेटी का रिश्ता किसी दलित के दर पर जाएगा. दलित युवाओं में ऐसा कौन सा हरा रंग लगा है जो ब्राह्मण उन्हें अपना दामाद बनाएंगे. यह तो युवाओं पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वे किस से प्यार और किस से शादी करना पसंद करेंगे.

दलित युवा खुद को इस काबिल बनाएं कि कोई ब्राह्मण युवती उन से प्यार और शादी करे तो किसी संतोष वर्मा और किसी ब्राह्मण संगठन का कोई रोल नहीं रह जाएगा. लेकिन यहां जो बात की गई उस से कोई समानता या समरसता जन्म नहीं लेने वाली न ही शादी का आरक्षण से दूरदूर तक कोई लेनादेना है. हां फौरी तौर पर यह हर किसी को समझ आ गया कि फर्जीवाड़े के मामले में फंसे संतोष वर्मा दलित युवाओं को मोहरा बना कर राजनीति में एंट्री की तैयारी कर रहे हैं.

इस फसाद में किसी का ध्यान इस तरफ नहीं गया कि दलित युवा आखिर कर क्या रहा है. इस सवाल को दो टूक जवाब यह मिलता है कि वह किसी संतोष वर्मा की तरह आईएस अफसर नहीं बन गया है. बल्कि डिलिवरी बौय बन कर घरघर में ग्रौसरी वगैरह सप्लाई कर रहा है या फिर ओला या उबर बाइक और टैक्सी का ड्राइवर बन सवर्ण सवारियां ढो रहा है.

ठीक वैसे ही जैसे इन के पूर्वज ऊंची जाति वालों की पालकी कंधों पर उठा कर या नाव खे कर उन्हें पार लगाते थे. और जो दलित युवा इस काम के काबिल भी पढ़ लिख नहीं पाए वे किसी निर्माणाधीन बिल्डिंग या अपार्टमेंट में इटगारा ढोते दिहाड़ी पर जिंदगी बसर कर रहे हैं. जो शहर भी नहीं आ पाए वे गांवदेहात में दबंगों की खेतीकिसानी के काम खेतखलिहान में कर रहे हैं.

लेकिन ये सभी एक मूर्खता जरूर कर रहे हैं वह है ब्रांडेड बाजारू बाबाओं के दरबार में हाजिरी लगाने के अलावा कांवड़ यात्रा में शामिल होने की और अपनी अलग झांकियां लगाने की. भंडारे भी दलित बस्तियों में आम हैं फिर व्रत उपवास का तो कहना ही क्या.

यह भक्ति कम सामाजिक पहचान की कवायद ज्यादा है. धर्म के चक्कर ने दलित युवाओं को भी भाग्यवादी बना दिया है दूसरे बड़ी तादाद में दलित युवा भी रीलवादी हो गए हैं जो दिन रात अपने मोबाइल फोन पर वीडियों देखने में मशरूफ रहते हैं. इसलिए दलित युवा अब खुद से कुछ नहीं करते. उन्होंने खुद को भगवान भरोसे छोड़ दिया है. ऐसे दलित युवाओं से यह उम्मीद करना बेकार है कि वे ऐसा कोई हुनर खुद में पैदा कर पैसा बना पाएंगे.

दलित युवाओं को बड़ा तबका विरोधाभासी जिंदगी जी रहा है वह अपने पूजा घर में अंबेडकर की फोटो के साथसाथ शंकर और हनुमान की तस्वीर भी रखता है. जाहिर है इस का उसे एहसास ही नहीं कि आंबेडकर ने दलितों की बदहाली की सब से अहम वजह हिंदू धर्म और उस के धर्म ग्रन्थों को बताते खुद बौद्ध धर्म अपना लिया था. यह ब्राह्मणवादी सत्ता के लिए बड़ा खतरा था इसलिए उन्होंने एक और साजिश रचते आंबेडकर का ही पूजापाठ शुरू करवा दिया जिस का नजारा देश भर में आंबेडकर जयंती और पुण्यतिथि पर देखा जा सकता है.

इन ब्राह्मणों को सोचना बेहद सपाट है कि जिस कौम या तबके को बर्बाद करना हो उसे पूजापाठ का आदी बना दो इस के बाद वर्णव्यवस्था थोपे रखने के लिए ज्यादा एक्सरसाइज नहीं करना पड़ेगी. और ये मासूम आईएस साहब अपने बेटे के लिए ब्राह्मणों से टेंडर आमंत्रित करने की मूर्खता कर रहे हैं. इस से साफ समझ आता है कि दलितों की दौड़ जब तक ब्राह्मणों से शुरू हो कर ब्राह्मणों पर खत्म होती रहेगी तब तब उन का कुछ नहीं होना जाना. उन्हें अगर ब्राह्मण लड़कियों में कुछ अलग हट कर बात दिखती है तो वे जाने क्यों अपनी बहूबेटियों को उन की तरह बनाने की कोशिश करते.

ज्यादातर ब्राह्मण युवतियां बीटेक एमटेक और मैनेजमैंट के कोर्स कर लाखों के पैकेज पर कम्प्यूटर और आईटी सेक्टर में नौकरियां कर रही हैं उलट इस के दलित युवतियां बमुश्किल मिडिल के बाद हाई स्कूल जा पा रही हैं. यह वह दौर है जब दलित बच्चों को प्राइमरी कक्षाओं से ही स्कौलरशिप कौपीकिताबें और दूसरी सहूलियतें मुफ्त मिल रहे हैं इसलिए आर्थिक परेशानियों को रोना रोने का हक उन्हें नहीं. हां, सामाजिक स्तर पर जरूर उन से भेदभाव और प्रताड़ना वगैरह होते हैं लेकिन इन ज्यादतियों से अब खुद उन्हें लड़ना होगा. बारबार कोई आंबेडकर पैदा नहीं होगा क्योंकि वह कोई विष्णु की तरह देवता या भगवान नहीं जो हर कभी अवतार लेगा.

जिस आरक्षण का संतोष वर्मा जिक्र बड़े फक्र से कर रहे हैं उस के हाल उन से या किसी से छिपे नहीं हैं कि सरकार कितनी धूर्तता से इसे कम कर रही है. बहुत कम बची सरकारी नौकरी हासिल करने दलित युवा पढ़लिख जरूर रहे हैं लेकिन एक चौथोई भी पक्की सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर पा रहे और जो कर भी लेते हैं वे सरकारी दामाद के ख़िताब से नवाजे जा कर बेइज्ज्त किए जाते हैं.

लेकिन भोपाल में दलित युवाओं को सपना दिखाया गया ब्राह्मण पत्नी का मानो वह मोक्ष की गारंटी हो इस में कोई शक नहीं कि नरेंद्र मोदी सरकार के रहते वर्ण व्यवस्था की पुनर्स्थापना की कोशिशें शबाब पर हैं और जातिवाद भी फलफूल रहा है जिसे ढके रखने जम कर हिंदूमुसलिम किया जा रहा है.

थोड़ी देर को मान भी लिया जाए कि दलित युवा को ब्राह्मण बीवी मिल गई तो कहां का चमत्कार हो जाएगा. क्या विरासत में मिला उस का दलितपना खत्म हो जाएगा. तय है नहीं बल्कि और बढ़ जाएगा क्योंकि श्रेष्ठि वर्ग उस का रहना दुश्वार कर देगा. गिनाने को ढेरों हैं लेकिन सब से ताजा उदाहरण ग्वालियर के नजदीक हरसी गांव का है.

यहां के एक दलित युवक ओम प्रकाश बाथम को एक ब्राह्मण युवती शिवानी झा से प्यार हो गया. जनवरी 2025 में दोनों ने कोर्ट में जा कर शादी कर ली. उम्मीद के मुताबिक विरोध हुआ पंचायत बैठी जिस ने ओम प्रकाश पर न केवल 51 हजार रुपए का जुर्माना लगाया बल्कि उस के परिवार को समाज से बहिष्कृत भी कर डाला. गांववालों को समझाइश दे दी गई कि वे इस जोड़े को गांव में दाखिल न होने दें. आठ महीने यहां वहां भटकने के बाद ओमप्रकाश अगस्त के महीने में शिवानी सहित गांव वापस आया तो दबंगों ने उसे लाठीडंडों से पीटपीट कर मार डाला.

अब भला कौन दलित युवक मरने की शर्त पर ब्राह्मण युवती से प्यार और शादी करने की रिस्क लेगा. ब्राह्मण दलित शादी बहुत दुर्लभ हैं उन में भी कपल चैन से रह रहा हो इस का तो ढूंढे से उदाहरण नहीं मिलेगा. चूंकि ऐसा होना नामुमकिन है इसलिए संतोष वर्मा जैसों को आरक्षण के बाबत बेफिक्र रहना चाहिए. जो एक गलत काम के लिए अपने ही समुदाय के युवकों को उकसाते मोहरा बना रहे हैं जिस से कि दलित राजनीति के तवे पर अपनी रोटियां सेक सकें. Dalit Youth Issues.

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