Gold Jewellery: भारतीय महिलाओं को अब सोने के प्रति अपनी सोच को भावनात्मकता के स्तर से उठा कर निवेश के स्तर पर लाने की आवश्यकता है. निवेश, जिसे अभी तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र समझा जाता रहा है, को अब औरतों का भी कार्यक्षेत्र माना जाना चाहिए. वहीं, बात जब गहनों को बिस्कुट या छड़ में बदलने की हो तो इस क्षेत्र के बारे में उन को अपनी जानकारी बढ़ाए जाने की जरूरत भी है.
‘’बूढ़ी काकी कभी गहनों से लदी-फंदी रहती थीं. हाथों में सोने की मोटी कंगनियां, कानों में झूमर, गले में हार और कमर में करधनी. घर में उन के गहनों की धूम थी. परंतु आज वो गहने कहीं दिखाई न देते थे. सबकुछ बहू ने धीरे-धीरे बेच डाला था. काकी के पास अब न ओढ़ने को अच्छी साड़ी थी, न खाने को भरपेट रोटी. गहनों की चमक तो चली गई, अब उन के चेहरे पर केवल वृद्धावस्था और उपेक्षा की रेखाएं चमकती थीं.”
मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘बूढ़ी काकी’ का यह अंश इतना बताने के लिए काफी है कि औरत की जिंदगी में उस के गहनों का कितना महत्व है. औरत चाहे नौकरीपेशा हो या गृहिणी, उस की अलमारी या उस के लॉकर में रखे उस के गहने उस की असली संपदा है. इस संपदा पर गोल्ड लोन देने वाले बैंकों की नजर तो लगी ही हुई है, अब घर के मर्द भी उसकी इस संपत्ति को हथियाने का रास्ता तलाशने लगे हैं.
दो दशकों पहले तक औरत के गहनों पर पुरुष नजर भी नहीं डालता था, बल्कि तीजत्योहार के मौके पर या अपनी वैडिंग एनिवर्सरी पर खुद उस के लिए कोई न कोई सोने का जेवर खरीद कर उसे गिफ्ट करता था, मगर अब वह पत्नी के जेवर उस की अलमारी से निकलवा कर उस के बदले में सोने के बिस्कुट या छड़ें खरीद कर अपने लौकर में जमा कर रहा है.
इस साल दीवाली और धनतेरस के मौके पर सोने के गहनों से पांचगुना ज्यादा सोने के बिस्कुट और छड़ों की बिक्री हुई है और ज्यादातर गोल्ड बुलियन औरतों के गहनों को बदल कर लिया गया है. औरतों से कहा जा रहा है कि आज के जमाने में इतनी हैवी ज्वैलरी पहनता कौन है, फिर आए दिन चोर-उचक्के महिलाओं के पीछे लग जाते हैं. इस से तो अच्छा है कि इन को बेच कर बिस्कुट खरीद लिए जाएं. औरतें भी इन बातों में आसानी से आ जाती हैं और गहने निकाल कर पति को सौंप देती हैं.
ज्यादातर औरतों की अपने गहनों के प्रति तो एक आसक्ति होती है मगर सोने के बिस्कुट या छड़ों का वे क्या करें? उन से उन का कोई मोह नहीं होता. लिहाजा, भोली-भाली औरतें अपने गहनों के बदले घर में आए गोल्ड बुलियन पति के हाथों में ही दे देती हैं कि तुम ही संभालो. इस तरह औरत की एकमात्र संपत्ति उस के हाथों से निकलती दिखाई दे रही है.
यह बात सच है कि आजकल हैवी ज्वेलरी पहनने का समय नहीं है. शादी-ब्याह के मौके पर भी अब औरतें मोटे-मोटे सोने के कंगन, मांग टीका, कान और गले में सोने का हैवी सेट, करधनी, पायल जैसे जेवर नहीं पहनतीं. अब तो एलिगेंट टाइप के स्टाइलिश डायमंड बेस्ड ज्वैलरी को ज्यादा पसंद किया जा रहा है. आजकल दुलहनें भी हैवी गोल्ड के बजाय डायमंड सेट्स को चुन रही हैं. हलके डायमंड सेट्स को दैनिक उपयोग में पहनना भी आसान है और ये सभी प्रकार के आउटफिट्स के साथ मैच कर जाते हैं.
मगर इस का मतलब यह नहीं है कि औरतें अपना स्त्रीधन यानी अपने सोने के भारी जेवर, जो उन को अपने मायके और ससुराल से मिले हैं और खानदानी हैं, उन को यों ही उठा कर पति के हाथ में दे दें इसलिए कि वे उस को सोने के बिस्कुट या छड़ों में कन्वर्ट कर अपनी अलमारी में रख लें. अब छोटेछोटे घर होने के कारण अगर भारी ज्वैलरी को संभालना और सुरक्षित रखना मुश्किल लग रहा है तो बेशक वे उन्हें बिस्कुट या छड़ों में कन्वर्ट कर लें मगर उन्हें अपने पास ही रखें क्योंकि यह उन का स्त्रीधन है, जिस पर किसी अन्य का कोई हक नहीं.
बहुत जरूरी है कि गहनों के प्रति इमोशनल रवैया रखने वाली महिलाओं का सोने के बिस्कुट और छड़ों के प्रति भी लगाव पैदा हो. इस के लिए छड़ों और बिस्कुट की पूरी जानकारी उन्हें होनी जरूरी है.
भारत में सदियों से सोना न केवल गहनों के रूप में पहना जाता रहा है, बल्कि इसे सुरक्षा, समृद्धि और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक भी माना जाता है. शादी-ब्याह से लेकर त्योहारों तक, सोने के जेवरात भारतीय जीवन का हिस्सा रहे हैं. लेकिन पिछले कुछ वर्षों में एक दिलचस्प परिवर्तन देखने को मिला है. लोग गहनों की जगह सोने के बिस्कुट (गोल्ड बार) और छड़ें (गोल्ड बुलियन) खरीदने लगे हैं. यह बदलाव सिर्फ फैशन या परंपरा का मुद्दा नहीं है, बल्कि बदलती अर्थव्यवस्था और निवेश मानसिकता का संकेत देता है.
इस के चलते सोने के जेवरों की खरीद घटती जा रही है. इस का मुख्य कारण है गहनों का बढ़ता मेकिंग चार्ज और जीएसटी. गौरतलब है कि सोने के गहनों पर 3 फीसदी जीएसटी के अलावा मेकिंग चार्ज 7–25 फीसदी तक होते हैं. यानी, खरीदार को उस की शुद्ध कीमत से कहीं अधिक भुगतान करना पड़ता है. इस के विपरीत, सोने की छड़ें और बिस्कुट लगभग शुद्ध सोना होते हैं और इन में मेकिंग चार्ज नहीं के बराबर होता है.
गहनों का डिजाइन समय के साथ पुराना पड़ जाता है. वापस बेचने पर डिजाइन चार्ज, वेस्टेज और रिपेयर कटौती के कारण मूल्य कम मिलता है. इसलिए निवेशक सुरक्षित और बिना डिजाइन वाले विकल्प की ओर झुक रहे हैं. बीते वर्षों में बाजार में उतार-चढ़ाव, महंगाई और वैश्विक तनावों के चलते लोग सुरक्षित निवेश की तलाश में हैं. गोल्ड बुलियन (बार/बिस्कुट) अंतर्राष्ट्रीय मानकों के अनुसार होते हैं और उन की रीसेल वैल्यू भी ज्वैलरी से बेहतर रहती है.
बिस्कुट और छड़ों की खरीद इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि उन की शुद्धता पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं होता. सोने के बिस्कुट 24 कैरेट (999 purity) में आते हैं. वहीं ज्यादातर गहने 18–22 कैरेट तक होते हैं. ऐसे में निवेशक गहनों की शुद्धता पर भले संदेह करे मगर गोल्ड बुलियन की शुद्धता पर कोई संदेह नहीं करता.
गोल्ड बार या बिस्कुट को बेचना भी बहुत आसान है. ये बैंक, गोल्ड कंपनियां, बुलियन मार्केट और ज्वैलर्स सभी आसानी से खरीद लेते हैं. और इन को बेचने पर कोई वेस्टेज कट भी नहीं लगता. बेचने-खरीदने पर कोई डिजाइन चार्ज नहीं लगता. शुद्धता की जांच का कोई झंझट नहीं होता और यह खरीदते ही निवेश के रूप में मान्य होता है. ये सभी बातें बिस्कुट को निवेश के लिए आदर्श बनाती हैं. लोग कैश फ्लो प्रबंधन के लिए सोने की छड़ें रखना ज्यादा पसंद करते हैं. कभी एक जगह से दूसरी जगह बहुत ज्यादा पैसा ले कर जाना हो तो बड़ेबड़े सूटकेस में करोड़ों रुपयों की गड्डियां भर कर ले जाने से बेहतर है, चार गोल्ड स्टिक्स किसी छोटी सी थैली में डाल कर आसानी से ले जाएं. कम मेकिंग चार्ज, बेहतर शुद्धता, उच्च रिटर्न और आसान लिक्विडिटी, इन सब कारणों से आने वाले वर्षों में सोने के बुलियन की मांग और बढ़ती दिख रही है.
भारतीय महिलाओं को अब सोने के प्रति अपनी सोच को भावनात्मकता के स्तर से उठा कर निवेश के स्तर पर लाने की आवश्यकता है. निवेश, जिसे अभी तक पुरुषों का कार्यक्षेत्र समझा जाता रहा है, को अब औरतों का भी कार्यक्षेत्र माना जाना चाहिए. वहीं, बात जब गहनों को बिस्कुट या छड़ में बदलने की हो तो इस क्षेत्र के बारे में उन को अपनी जानकारी बढ़ाए जाने की जरूरत भी है.
हालांकि शिक्षित और कार्यरत महिलाओं में निवेश की समझ बढ़ रही है. वे डिजिटल गोल्ड और सॉवरेन गोल्ड के बारे में भी जानकारियां जुटा रही हैं. मगर गृहस्थ महिलाएं फाइनेंस, हॉलमार्क, कैरट, बारकोड जैसे शब्द सुन कर ही डर जाती हैं. उन के गहने निवेश के काम भी आ सकते हैं, इस की वे कल्पना भी नहीं करतीं. जरूरत है उन्हें शिक्षित करने की. खासतौर से इस बात के लिए कि सोना उन का है और वे उसे गहनों के रूप में रखें या छड़ों व बिस्कुट के रूप में, मगर रखें अपने ही पास.
औरत के गहने मर्द के लॉकर में रखने का मतलब है स्वामित्व की परिभाषा का बदलना. बढ़ती महंगाई और दिखावे की वजह से आज औरतें अपने जेवर बेचने का बड़ा दबाव महसूस कर रही हैं. यह गोल्ड लोन के रूप में भी है और गोल्ड बुलियन के रूप में भी. सबसे ज्यादा डर सुरक्षा का दिखाया जा रहा है. तो ठीक है सुरक्षा के लिहाज से अगर आप अपने गहनों को छड़ों या बिस्कुट का रूप देना चाहती हैं तो दीजिए मगर उन को रखिए अपनी ही अलमारी में. ऐसा न हो कि आप की संपत्ति का मालिक कोई और हो जाए.
सोना आप की सुरक्षा, सम्मान और व्यक्तिगत अधिकार का प्रतीक होता है. कठिन समय में औरत का सोना ही उस के काम आता है. यह उस की अपनी आर्थिक स्वतंत्रता की पहली सीढ़ी भी है. लेकिन जब पति अपनी पत्नी के गहनों को निकाल कर सोने के बिस्कुट या बुलियन बना कर अपने लॉकर में जमा करता है तब स्वामित्व का अर्थ बदल जाता है.
प्रॉपर्टी और सेफ डिपॉजिट में बदलने के साथ निर्णय लेने का अधिकार भी पुरुष के हाथ में चला जाता है. सोने पर निर्णय कौन ले रहा है और यह किस की संपत्ति है, यह बात मुख्य है. इस से औरत को नहीं हटना है. जहां वह इन दो बातों से हटी वहीं पितृसत्ता के आगे भिखारी बनने से उसे कोई नहीं बचा पाएगा. Gold Jewellery.





