Gen Z Special: जेन जी युवाओं के पास कई चैलेंजेस हैं. यह पीढ़ी पिछली पीढि़यों की तरह सिद्धांतवादी या आदर्शवादी नहीं रही. यह प्रैक्टिकल बातों में यकीन रखती है मगर समस्याएं जस की तस हैं जो पहले के युवाओं ने फेस कीं. दुनियाभर में बेरोजगारी एक बहुत बड़ा मुद्दा है. नेपाल का जेन जी आंदोलन बहुतकुछ कहता है. भारत के विभिन्न राज्यों में आजकल युवा आंदोलनरत हैं. इस के पीछे बेरोजगारी, परीक्षाओं में पेपर लीक, महिलाओं से दुर्व्यवहार और हत्या जैसे कई अलगअलग कारण हैं. बीते वर्षों में देश में बेरोजगारी की दर बहुत अधिक बढ़ी है? यों तो अर्थव्यवस्था के मजबूत होने की बात कही जाती है लेकिन युवाओं में फैली बेरोजगारी से हम आंखें नहीं चुरा सकते.

सरकारी नौकरियों में पदों की संख्या बहुत कम है. रिटायर होने वाले कर्मचारियों के स्थान पर नई भरतियां बंद हैं. लाखों पद खाली हैं पर उन जगहों संविदा या आउटसोर्स से ही काम चलाया जा रहा है, जिस से विभागों की कार्यप्रणाली पर बहुत असर पड़ा है. वहीं, प्राइवेट सैक्टर में तो हाल बहुत ही बुरा है. कोरोना के समय लाखों लोगों ने अपनी नौकरियां गंवाईं. आज भी कंपनियां कर्मचारियों की छंटनी कर रही हैं.

2024 को जैमिनी युग का नाम दिया गया था. गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई के अनुसार यह आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस तकनीकी पर आधारित लैंग्वेज मौडल है. विभिन्न संस्थाओं में इंजीनियरिंग के छात्रों की परीक्षाएं लगभग हो चुकी हैं. 15 लाख के लगभग छात्र हर साल होते हैं पर नौकरी एक से डेढ़ फीसदी छात्रों को ही मिलती है. आईआईएम के छात्रों को नौकरी नसीब नहीं हो रही. विश्वविद्यालय से पासआउट होने वाले छात्रों का भी यही हाल है. अर्थव्यवस्था बढ़ती तो रोजगार के द्वार अवश्य खुलते.

इकोनौमिक टाइम्स के अनुसार 26 सालों में नौकरियों में सब से ज्यादा कटौती हुई. रेलवे, पुलिस, पोस्टऔफिस में ढेरों पद खाली हैं. ईपीएफ में जुड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या बहुत कम है. कर्मचारियों पर काम का बो झ बहुत है, सो वे दूसरी नौकरी की तलाश में हैं. काम के घंटे बढ़ रहे हैं जबकि मनोवैज्ञानिक काम के घंटों के बीच आराम की वकालत करते हैं. अंतर्राष्ट्रीय संगठन और मानव विकास संस्थान की नई रिपोर्ट ‘इंडिया अपौंइंटमैंट रिपोर्ट 2024’ के अनुसार देश में नियमित वेतन पाने वाले और स्वरोजगार में लगे लोगों की वास्तविक कमाई में पिछले एक दशक के दौरान गिरावट आई है. यह आंकलन मुद्रा स्फीति की दर के आधार पर आधारित है.

आईआईटी मुंबई के 36 प्रतिशत पासआउट हुए छात्रों को पिछले साल नौकरी नहीं मिली. द टाइम्स औफ इंडिया समेत कई प्रतिष्ठित समाचारपत्रों में यह रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी.

भारत ने वैश्विक परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले देश के रूप में अपनी स्थिति बना ली है. आप्रवासी भारतीयों ने वर्ष 2022 में लगभग एक अरब अमेरिकी डौलर भारत में भेजे. यह राशि 2021 में भेजी गई राशि की तुलना में 12 फीसदी अधिक थी. एच1बी वीजा शुरू होने के बाद हमारे युवाओं के लिए अमेरिका जाना एक सपना हो गया है. वहां की नस्लभेदी नीति भी युवाओं को सोचने को मजबूर कर रही है.

2-3 वर्षों पहले कोरोना के दंश से जू झती चीन की अर्थव्यवस्था को पछाड़ने की बात भी आई. हमें यह नहीं भूलना है कि चीन एक साम्यवादी राष्ट्र है. इस व्यवस्था में आर्थिक वर्चस्व के निजी प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व माना जाता है. चीन के साम्यवाद के उलट भारत एक लोकतांत्रिक देश है, यहां हर आदमी को आगे बढ़ने की स्वतंत्रता और अपनी योग्यता के अनुसार व्यवसाय चुनने की आजादी है लेकिन स्याह पक्ष यह है कि आजादी के 75 वर्षों बाद भी आज सभी को समान शिक्षा और रोजगार के अवसर नहीं मिल पाए हैं.

हमारे मध्य और उच्चमध्य वर्ग के युवाओं के लिए देश में रोजगार एक बहुत बड़ा मसला है. बैंकिंग, फाइनैंशियल सर्विस और इंश्योरैंस सैक्टर में जेन जी की संख्या बीते 2 सालों में लगभग दोगुनी हो गई है.

2023 में अगर यह 12 फीसदी थी तो 2025 में 23 प्रतिशत हो गई है. यह वर्कप्लेस कलर के प्रति दृष्टिकोण में आए बदलाव को दिखाता है लेकिन इस के पीछे एक गौर करने वाली बात यह है कि बीटैक किए हुए छात्र, जिन्होंने 4 साल का डिग्री कोर्स किया है, भी इन क्षेत्रों में जा रहे हैं क्योंकि नौकरी की मारामारी है और आईटी सैक्टर में अनिश्चितता है. भारत की अधिकतर पीढ़ी बुढ़ापे की ओर अग्रसर है, इसलिए जेन जी उम्मीद और चुनौतियों की पीढ़ी बन कर उभर रही है. आज समाज, राजनीति, शिक्षा, रोजगार और संस्कृति को प्रभावित करने में यह वर्ग निर्णायक भूमिका अदा कर रहा है.

रोजगार की चुनौती

डिजिटल युग में जन्मी इस पीढ़ी को स्काइप, व्हाट्सऐप, वीडियो कौल या दूसरे डिजिटल चमत्कार कोई आश्चर्य नहीं लगते. इन का अधिकतर समय मोबाइल और लैपटौप में बीतता है.

इन की जेब में नोट और सिक्के नहीं होते. ये डिजिटल पेमैंट पर भरोसा रखते हैं. आर्टिफिशियल इंटैलिजैंस, मेटावर्स जैसी तकनीकी इन्हें लुभा रही है. बेरोजगारी का इतना बुरा हाल तब है जब यह पीढ़ी सरकारी नौकरी की तरफ नहीं ताकती है. यह अपना स्टार्टअप खड़ा करने में यकीन रखती है. इस की तकनीकी कौशल और दक्षता अद्भुत है. कोडिंग, ग्राफिक डिजाइनिंग, एडिटिंग, डिजिटल मार्केटिंग इन के लिए बड़ा आसान है. ये युवा अच्छे सौफ्टवेयर डैवलपर हैं पर रोजगार की चुनौती कदमकदम पर इन्हें बेबस करती है. अवसर की कमी, प्रतिस्पर्धा की चुनौती, इंग्लिश की अनिवार्यता इन सब पर दबाव बना रही है.

अगर अवसर मिले तो यह पीढ़ी नेतृत्व करना और फैसला लेना भी जानती है. यह टीवी डिबेट के दौरान नेताओं से खरेखरे प्रश्न पूछने का माद्दा रखती है. जहां पिछली पीढ़ी रील्स और मीम्स बना कर अपनी प्रतिभा का भौंडा प्रदर्शन करती है, वहीं युवा इन तकनीकों के माध्यम से गंभीर संदेश देने का इरादा लिए हुए हैं. ये नौकरी के दौरान लर्निंग को भी महत्त्व देते हैं.

आज के युवा सिद्धांत की जगह व्यावहारिक अनुभव पर ज्यादा टिकते हैं. शिक्षा की गुणवत्ता ने इन्हें निराश किया है. ये मात्र औपचारिक डिग्री के खिलाफ हैं. वर्कप्लेस में उन की खुशी और सुरक्षा को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है. सुरक्षा शारीरिक ही नहीं बल्कि आर्थिक और मानसिक भी होती है.

आज भारत दुनिया के सब से युवा देशों में गिना जाता है. हमारी आधी आबादी 35 साल से कम उम्र के लोगों की है. विश्व की बड़ी आईटी कंपनियों का नेतृत्व भारतीय युवा कर रहे हैं लेकिन बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अवसरों की असमानता जैसे कारण भारत समेत पड़ोसी देशों में असंतोष पैदा कर रहे हैं.

इन की मांगों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. अगर भारत की बात करें तो आने वाले समय में इन युवाओं का प्रतिशत सब से अधिक होगा, इन्हें उच्च स्थान दिलाना जरूरी है. ये अर्थव्यवस्था का चेहरा बदल कर भारत को वैश्विक बाजार में अव्वल लाने की कूवत रखते हैं. ट्रंप लाख पहरे लगा दें, अपने देश में सुविधा मिले तो ये यहीं से दुनिया को नचा देंगे. Gen Z Special.

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