Education : आज डिजिटल टैकनोलौजी भले ही चारों तरफ हावी हो गई हो पर जो किताबों या पत्रिकाओं से जुड़ा रहता है उस में एक स्पष्ट अंतर देखने को मिलता है. वह बाकियों से ज्यादा धैर्यवान और समझदार जान पड़ता है.
आज के दौर में पेरैंट्स को सब से बड़ी शिकायत यह होती है कि उन के बच्चे मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर से बाहर निकल ही नहीं रहे हैं. उन का सारा समय इसी पर बीत रहा है. बच्चे किताबे पढ़ना ही नहीं चाहते हैं. इस से उन की सेहत खराब हो रही है. आंखों में दर्द रहता है. चश्मा जल्दी लग जा रहा है. हर उम्र के बच्चों से पेरैंट्स यह एक कौमन शिकायत होती है. कई पेरैंट्स इस के समाधान के लिए मनोविज्ञानियों के पास जाते हैं. कई पेरैंट्स जल्दी चले जाते हैं तो कई बच्चों से लड़ते झगड़ते गुस्सा करने के बाद तब जाते हैं जब बच्चे उन की बात सुनने से इंकार करने लगते हैं.
मनोविज्ञानी डाक्टर मधुबाला यादव बाल मनोविज्ञान में स्पैशलिस्ट है, उन का कहना है ‘पेरैंट्स टीनएज बच्चों को ले कर ज्यादा परेशान होते हैं. इस के पीछे की वजह यह है कि इंटरनेट पर वह बहुत कुछ उपलब्ध है जो बच्चों के मन पर बुरा असर डालता है. इस में हिंसा और सैक्स भी शामिल होता है. मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर के जरीये बच्चे इंटरनेट द्वारा घर के अंदर एक कमरे में रहते हुए भी पूरी दुनिया से जुड जाते हैं. बाल मन बड़ा उत्सुक होता है सब कुछ जानने के लिए. पैरेंटस इस बात को ले कर परेशान होते हैं कि पता नहीं बंद कमरे में बच्चा क्या देख सीख रहा है.’
दूसरी तरफ बच्चे अपने बचाव में तर्क देते हैं कि उन की पढ़ाई के लिए इंटरनेट, मोबाइल, लैपटौप या कंप्यूटर समय की जरूरत हो गए हैं. यह बात आंशिक रूप से सत्य हो सकती है. इस के लिए सरकार भी दोषी है. कोविड के समय औनलाइन पढ़ाई के नाम पर जिस तरह का काम किया गया उस के परिणाम सामने आ रहे हैं. यह कमजोर वर्ग के साथ एक साजिश है. कमजोर वर्ग के बच्चे जब किताबें नहीं पढेंगे तो न उन को तर्क करना आएगा न ही वह लिखना सीख पाएंगे. जब पढ़नालिखना नहीं आएगा तो वह आगे भी नहीं बढ़ पाएंगे. अमीरों के बच्चे कोचिंग कर के पढ़नालिखना सीख भी लेते हैं जबकि गरीबों के बच्चे पिछड़ते जा रहे हैं.
अभी भी डाक्टर, इंजीनियर और वकील बनने वाले युवाओं को मोटीमोटी किताबें पढ़नी पढ़ती हैं. हाईस्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा में लिखना पड़ता है. नीट और जेईई जैसे कंपटीशन वाली परीक्षाओं में सवाल के जवाब चार में से सही पर केवल टिक लगाना पड़ता है. इस के बाद जब वह डाक्टर, इंजीनियर और वकील बनने की पढ़ाई करते हैं तो किताबें ही उन की साथी होती हैं. बात केवल यहीं तक सीमित नहीं है. युवा अगर राजनीति में भी जाना चाहते हैं या अपना बिजनेस करना चाहते हैं तो भी अपना काम संभालने के लिए पढ़नालिखना और समझना जरूरी होता है. इस के बिना दूसरे पर निर्भर रहना पड़ता है जो युवाओं को आगे बढ़ने से रोकता है.
बचपन से ही सिखाए लिखना पढ़ना
मनोविज्ञानी डाक्टर मधुबाला यादव कहती हैं ‘बचपन में सीखने की अदभुत ताकत होती है. इस समय जिस तरह की आदत पेरैंट्स अपने बच्चों की डालते हैं वही आगे चलती है. मोबाइल की आदत बच्चों में अपने मातापिता को देख कर ही पड़ती है. जब बच्चों के सामने पेरैंट्स लगातार मोबाइल चलाते रहते हैं तो बच्चे भी उस को लेना चाहते हैं. वह रोने लगते हैं तो 5-6 माह के बच्चों को मोबाइल पकड़ा दिया जाता है. जिस से बच्चा चुप हो जाता है. यही आदत लग जाती है. बच्चा मोबाइल ले कर अकेले रहना पंसद करने लगता है. यही आदत तब शिकायत में बदल जाती है जब बच्चा टीनएज का होता है. अगर पेरैंट्स बचपन से ही सावधान रहे तो परेशानी कम होगी.’
डाक्टर मधुबाला यादव ने इस के कुछ टिप्स दिए हैं- घर पर किताबों से कराए पढ़ाई
बचपन से ही बच्चे के साथ रोजाना किताबों से पढ़ने का लक्ष्य रखना चाहिए. सप्ताह में चार बार उन्हें पढ़ कर सुनाने की कोशिश करें. उन से भी पढ़ कर सुनाने को कहे. यह किताबें उन की स्कूल बुक्स न भी हो तो कोई दिक्कत नहीं है. आज के समय में उम्र के हिसाब की किताबें और पत्रिकाएं बाजार में मिल रही है. जैसे चंपक पत्रिका को कक्षा 3 से 8 तक के बच्चों के हिसाब से तैयार किया जाता है. अक्षर थोड़ा बड़े होते हैं. बौक्स सरल होते हैं जिन को पढ़ना आसान होता है. कहानियों के अलावा भी रोचक सामाग्री इस में होती है.
बच्चों को चुनने दें मनपंसद किताबें
कई बार देखा गया है कि पेरैंट्स अपनी पंसद की किताबें ले आते हैं. जो बच्चों को पसंद नहीं आती और वह नहीं पढ़ते हैं. पेरैंट्स जब भी किताबें खरीदने जाए बच्चों किताबें चुनने में शामिल करें. इस से उन्हें अपनी रुचि की किताबें चुनने का मौका मिलेगा और उन्हें पढ़ने के समय का बेसब्री से इंतजार रहेगा. उन की आदत किताबें पढ़ने की होने लगेगी.
बच्चों को सिखाएं नए शब्दों
पढ़ने के लिए नए नए शब्दों को जानना जरूरी होता है. विभिन्न प्रकार की किताबें पढ़ने या नियमित बातचीत में नए शब्दों को शामिल करने से आप के बच्चे की शब्दावली विकसित करने में मदद मिलेगी. स्कूल शुरू होने से पहले वे जितने ज्यादा शब्द जानेंगे, उतनी ही आसानी से वे स्कूल स्तर की किताबें पढ़ पाएंगे. इस को सिखाने का आधार रोचक होना चाहिए जिस से बच्चों का मन लग सके.
लिखने की आदत डालें
पढ़ना तब तक अधूरा है जब तक कि लिखना न सीख लें. बच्चे को लिखना सिखाने के लिए एक बेहतरीन गतिविधि है बिंदीदार रेखाओं पर अक्षरों का आकार बनाना. इस से उन्हें अक्षर बनाना सीखने में मदद मिलती है. लिखने के लिए जरूरी है कि पेंसिल पकड़ने का सही तरीका उन को सिखाएं. इस का सही तरीका अंगूठे, तर्जनी और मध्यमा उंगलियों से पेंसिल पकड़ना है, जिसे ‘ट्राइपोड ग्रैस्प’ कहते हैं. इस तरह पेंसिल पकड़ने से पेंसिल की गति बेहतर होती है और हाथ स्थिर रहता है.
शब्दों और वाक्यों को लिखना शुरू करते समय, छोटे बच्चों के लिए शब्दों की वर्तनी का अंदाजा लगाना कोई असामान्य बात नहीं है. अकसर बच्चे शब्दों की वर्तनी उन के उच्चारण के अनुसार ही लिखते हैं. यह प्रयोग पूरी तरह से सामान्य है और लिखना सीखने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. कई बच्चों को लिखने में दिक्कत होती है क्योंकि वे बहुत जल्दीजल्दी लिखने की कोशिश करते हैं. बच्चे को अक्षर लिखने में समय लेने के लिए प्रोत्साहित करें और उन्हें समझाए कि गलतियां करना ठीक है. यानी उन्हें रबड़ का इस्तेमाल करना भी सिखाएं. वह शब्द को पूरा पूरा लिखें. बीच में अधूरा छोड़ने की आदत राइटिंग को बिगाड़ने का काम करती है.
घर में पुस्तकालय
जिन बच्चों में बचपन से ही पढ़नेलिखने की आदत पड़ जाती है वह युवा होने पर भी किताबें पढ़ने में रूचि रखते हैं. ऐसे में जरूरी है कि घर में मंदिर की जगह पुस्तकालय बनाएं. उन में अच्छीअच्छी खूबसूरत किताबें रखें. उन का सही रखरखाव करें. इस से देखने वाले पर प्रभाव तो पड़ता ही है न चाहते हुए भी किताबें पढ़ने का मन होने लगता है. पहले घर में किताबें रखने के लिए केवल लोहे या लकड़ी की अलमारी ही होती थी. बदलते दौर में इंटीरियर ने किताबों को रखने के लिए खूबसूरत प्रयोग करने शुरू कर दिए हैं. यह हल्के, टिकाऊ और देखने में सुदंर होते हैं. देखने वाले पर प्रभाव डालते हैं. सही लाइट और चेयर का प्रयोग इस अंदाज को और बेहतरीन बनाता है. एक छोटा घर किताबों के बिना घर जैसा नहीं लगता है. घर में किताबें रखने की जगह बनाए. इंटीरियर डिजाइनर रश्मि गुप्ता ने इस के लिए कुछ टिप्स दिए हैं.
• हर घर गलियारे आमतौर पर बनाये ही जाते हैं. इन का प्रयोग एक जगह से दूसरी जगह जाने में ही होता है. इस गलियारे की दीवारों पर अलमारियां लगा कर इस को पुस्तकालयों में बदला जा सकता है. जिस से जगह का अधिकतम उपयोग होगा पुस्तकालय भी बन जाएगा. किताबों की अलमारियों का दीवार से दीवार, फर्श से छत तक होना जरूरी नहीं है. इन को बीच में भी बनाया जा सकता है. जिस से उपर नीचे की खाली जगह को खाली रखा जा सकता है. नीचे गमलों में पौधे रखे जा सकते हैं. जो अलग लुक देंगे.
• किताबों को रखने के लिए कई तरह के बुककेस, हेडबोर्ड बाजार में उपलब्ध हैं. जिन का प्रयोग वहां पर कर सकते हैं जहां पर आप बैठ कर पढ़ना चाहते हैं. अपार्टमेंट में बालकनी का प्रयोग चाय पीने के लिए करते हैं वहीं बैठ कर किताबों का भी आनंद ले सकते हैं. इन को रखने के बने बनाए रैक जरूरत और जगह के अनुसार से खरीद सकते हैं. कुछ लोग अपने बिस्तर के नीचे किताबें रखना पंसद करते हैं. ऐसे में नया बिस्तर खरीदने की जरूरत नहीं है. कोई भी छोटी और चैड़ी बुकशेल्फ या बेंच इस काम को कर सकती है.
• आप किताबों को सीढ़ियों में रखें या फिर फ्रेम में बनी अलमारियों में, जगह बचाने वाले बिस्तर किताबों के भंडारण के लिए एक बेहतरीन समाधान हो सकते हैं. घर अपार्टमेंट में कुछ न कुछ बेकार जगह होती है. चाहे वह दीवार का कोई कोना हो जहां कुर्सी नहीं रखी जा सकती या कोई दूर-दराज का कोना, एक बुकशेल्फ उस जगह का अच्छा इस्तेमाल कर सकती है. पुस्तक अलमारियों की खूबसूरती यह है कि वे विभिन्न आकारों और आकारों में आती हैं.
किताबें घर के इंटीरियर का हिस्सा हो सकती हैं. अलमारी या बुकसेल्फ में करीने से लगी किताबें बेहद खूबसूरत दिखती हैं. यह देखने वाले पर प्रभाव डालती हैं. किताबों का देख कर वह आप के बारे में अपनी धारणा बदलने को मजबूर हो जाता है. बड़े नेता, वकील और डाक्टरों के घरों में किताबों से सजी जगह देखने को जरूर मिल जाती है. यह न केवल पढ़ने की आदत डालती है किताबों की महक माहौल को जीवंत बनाए रखने का काम करती है. सुकून के साथ किताबें पढ़ने से जानकारी ही नहीं मानसिक शांति भी मिलती है. ऐसे में अपने घर में किताबों की जगह बनाए और उन को रखिए. देखिए आप के और परिवार के जीवन में कैसा बदलाव आता है.