Congress MP : कांग्रेस के केरल से सांसद शशि थरूर अब लगता है भाजपा में जाने का मन बना चुके हैं. उन्हें नरेंद्र मोदी ने सांसदों के उस दल का नेतृत्व दिया था जिन्हें विदेशों में औपरेशन सिंदूर के बाद डिप्लोमैसी के लिए भेजा गया था ताकि पाकिस्तानी प्रचार का मुकाबला किया जा सके. विदेशों में बहुत देशों की राय शायद यह है कि पहलगाम में आतंकवादियों के हाथों 26 लोगों की निर्मम हत्या के पीछे हाथ को ले कर भारत की वायुसेना का आक्रमण पाकिस्तानी ठिकानों पर कुछ गलत है.

शशि थरूर, जो चाहे नेता हों या न हों, इंग्लिश बढ़िया बोलते हैं. भारत का पक्ष जिस भी देश में उन्होंने रखा वहां नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की प्रशंसा में खूब पुल बांधे. कांग्रेस को इस पर कोई बड़ा आश्चर्य नहीं था क्योंकि शशि थरूर हमेशा ही अपनी चलाने में लगे रहते रहे हैं. हालांकि, उन्हें ऐसी सीटें मिलती रही हैं जहां पार्टी की बदौलत उन का जीतना आसान रहा है. वे कम मेहनत से कांग्रेस के भरोसे जीतते रहे हैं.

इंग्लिश में महारत के साथ उन्हें ब्राह्मणवादी प्रचार में भी महारत है. इस दृष्टि से वे 1947 के बाद की कांग्रेस के वल्लभभाई पटेल, सी राजगोपालाचारी, श्यामाचरण शुक्ल, डा. संपूर्णानंद, राजेंद्र प्रसाद और उस के बाद के जगन्नाथ मिश्र, विद्याचरण शुक्ल, हेमवती नंदन बहुगुणा के जैसे पौराणिक धर्म के हिमायती हैं. उन की किताब ‘व्हाई आई एम अ हिंदू’ हिंदू धर्म का ढिंढोरा पीटने का वह काम करती है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लोग भी नहीं कर पाते क्योंकि भाषा पर उन की थरूर जैसी पकड़ नहीं है.

इतने सालों से वे कांग्रेस में इसलिए हैं क्योंकि उन्हें वहां अपनी इंग्लिश के कारण कुछ भाव मिलता रहा है. उन के समर्थकों की बड़ी जमात चाहे न हो पर कांग्रेसी नेता उन से डरेसहमे रहते हैं कि कहीं वे ऐसी इंग्लिश न बोल दें कि उन का इंग्लिश अल्पज्ञान धराशायी हो जाए.

अब वे नरेंद्र मोदी का गुणगान ज्यादा कर रहे हैं जबकि ये वही मोदी हैं जिन्होंने शशि थरूर की पत्नी सुनंदा पुष्कर, जिन की संदिग्ध हालत में मृत्यु हुई थी, को 50 करोड़ की गर्लफ्रैंड कहा था.

केरल के बाहर और संसद के अलावा थरूर को कोई राजनेता मानता हो, इस में संदेह ही है. एक तरह से वे कांग्रेस पर बोझ हैं पर जब तक भाजपा उन्हें कोई पद ज्योतिरादित्य सिंधिया, हेमंत बिसवा सरमा की तरह या एकनाथ शिंदे की तरह नहीं देती वे कांग्रेसियों को अपनी इंग्लिश से हड़काते रहेंगे. गांधी जोड़ा (प्रियंका व राहुल) शायद सही मौका ढूंढ़ रहा है कि जब शशि थरूर से मुक्ति पाई जाए. उन्हें पार्टी से निकालने का मलतब होगा तिरुअनंतपुरम में लोकसभा सीट का उपचुनाव कराना और यह जोखिम कांग्रेस फिलहाल नहीं लेना चाहती.

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