Government of India : कुछ सालों से कोर्ट्स लगातार कह रही हैं कि सरकारी जमीन पर घर बनाने वालों को सिर्फ इसलिए परमानैंट रहने का अधिकार नहीं मिल जाता कि वे वहां वर्षों से रह रहे हैं, उन के पास बिजली के कनैक्शन हैं, बस्ती में पानी का नल है, आधारकार्ड या पैनकार्ड हैं, बच्चों के स्कूल पास में हैं आदि. दिल्ली की सत्ता में नई आई भारतीय जनता पार्टी, चूंकि अगले चुनाव होने में काफी समय है इसलिए, भयंकर तोड़फोड़ कर रही है. वह मुख्यतया मुसलिम बस्तियों को नष्ट कर रही है हालांकि साथसाथ हिंदुओं की भी कुछ बस्तियों का सफाया हो रहा है. इसी कारण मामले कोर्ट में दायर किए जा रहे हैं.
हर शहर में बनी स्लम बस्ती असल में शहर का लेती कम है, शहरियों को देती ज्यादा है. सरकारी मुफ्त की जमीन पर बनी झुग्गियों को शुरू में सिर्फ तिरपाल बांध कर बसाया जाता है. धीरेधीरे हर घर 50 फुट से बढ़ कर 500 फुट तक का ही नहीं हो जाता बल्कि कुछ 2-3 मंजिलों तक हो जाते हैं. पास का कोई नाला इन लोगों का सीवर बन जाता है. चूंकि इन्हें मकान का किराया कम देना होता है, ये लोग शहरियों को सस्ते में सेवाएं देते रहते हैं. शहरी इन स्लमों को देख कर नाकभौं चढ़ाते हैं पर अगर यहां के कामगार उन शहरियों जैसे पक्के मकानों का किराया देने लगें तो उन के वेतन तीनगुना बढ़ जाएंगे.
शहरों के विकास में स्लमों का बड़ा योगदान है और ऐसा दुनिया के हर बड़े शहर में हुआ है. हर शहर में स्लम हैं जो सरकारी जमीन पर ही बनाए गए हैं.
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