Judicial System : अलगअलग धार्मिक ग्रंथों में लिखी न्यायिक व्यस्था और इंसानों द्वारा तैयार की गई संविधानरूपी न्यायिक व्यवस्था में जमीन आसमान का अंतर है. लोग भले अपनेअपने धर्मों को मानते हों मगर हकीकत यह है कि वे भी उस में लिखी न्यायिक व्यवस्था पर यकीन नहीं करते. क्या कारण है कि धर्म न्याय दुनियाभर में फेल साबित हुआ?
ईश्वरवादियों का विरोधाभाषी चरित्र
2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 33,120 लोग ही नास्तिक हैं. तकरीबन डेढ़ सौ करोड़ की आबादी वाले देश में इन मुट्ठीभर नास्तिकों को छोड़ कर बाकी लोग ईश्वर के कानून को मानते हैं. मुसलमान अपने खुदा के कानून पर यकीन रखते हैं तो हिंदू को अपने ईश्वर के विधान पर भरोसा होता है. ईसाई, सिख, पारसी और बाकी के सभी धर्म को मानने वाले लोग भी अपनेअपने ईश्वर के न्याय पर विश्वास करते हैं. इन सभी धर्मों की किताबों में, मान्यताओं में या कर्मकांडों में सिरफुटौव्वल की हद तक विवाद होता है. इस बात पर सभी में कोई मतभेद नहीं है कि धरती पर होने वाले हर पाप की सजा ईश्वर ही देता है लेकिन अदालतों में मुकदमों की भरमार देख कर धार्मिक लोगों के विरोधभाषी चरित्र की पोल खुल जाती है. धर्म का दावा है कि ईश्वर न्याय करेगा. भागवत कथाओं में और धर्मगुरुओं के सत्संगों में भगवान के न्याय की कहानियों पर भक्त लोग खूब तालियां पीटते नजर आते हैं लेकिन जब खुद के साथ अन्याय होता है तो ईश्वर के न्याय की धज्जियां उड़ाते हुए कोर्ट कचहरी का द्वार खटखटाते हैं. राष्ट्रीय अपराध रिकौर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश की राजधानी दिल्ली में ही हर साल लगभग 3 लाख मामले दर्ज होते हैं. देश भर में सवा 5 करोड़ से ज्यादा मुकदमे निचली अदालतों से ले कर सुप्रीम कोर्ट तक में लंबित पड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट में 60 हजार, हाई कोर्ट्स में 58 लाख और निचली अदालतों में तकरीबन 4 करोड़ मुकदमे चल रहे हैं. इन सभी मुकदमों में पीड़ित और आरोपी दोनों ही ईश्वरवादी होते हैं लेकिन न्याय के लिए मरने का इंतजार नहीं करते और धरती की अदालतों से ही न्याय की उम्मीद रखते हैं.
इस्लाम में न्याय की बातें
दुनिया का हर मुसलमान आख़िरत में होने वाले अल्लाह के इंसाफ पर यकीन रखता है. मुसलमानों को यकीन होता है कि हर गुनाह के लिए अल्लाह ने आख़िरत में सजा मुकर्रर कर रखी है. धरती पर जो व्यक्ति जैसा कर्म करेगा उस के हिसाब से आख़िरत में उसे सजा मिलेगी लेकिन यहां भी विरोधाभाष देखिए कि दुनिया का एक भी मुसलिम देश ऐसा नहीं है जहां अदालतें न हों. छोटे बड़े मामलों में भी मुसलमान आख़िरत के इंसाफ को दरकिनार कर सीधे थाने पहुंचते हैं और मुकदमा दर्ज करवा देते हैं. इंडोनेशिया, तुर्की, सऊदी अरब और दुबई जैसे देशों में अगर अपराधों में कमी आई है तो इस का कारण यह नहीं कि यहां के मुसलमान आख़िरत के इंसाफ के भरोसे बैठे हैं बल्कि इस की वजह यह है कि ये देश अपनी कानून व्यवस्था पर ज्यादा भरोसा करते हैं. पाकिस्तान जैसे मुसलिम देश की अदालतों में 90 लाख से ज्यादा मुकदमे चल रहे हैं क्योंकि अल्लाह का न्याय सिर्फ एक कल्पना है और अदालतों का न्याय एक हकीकत है. जब लोगों को न्याय की जरूरत होती है तब वे कल्पनाओं के भरोसे नहीं बैठते.
मुसलमानों का खुदा कहता है, “हम ने क़यामत के दिन के लिए न्याय का तराजू रख दिया है, किसी प्राणी पर अन्याय न होगा.” (सूरा अल-अनबीया 21 आयत 47)
जंगल मे एक शेर अपनी भूख मिटाने के लिए हिरनी के बच्चे को अपना शिकार बनाता है. हिरनी के सामने ही उस के छोटे से बच्चे को शेर चीर और चबा डालता है. हिरनी असहाय है. वो दूर खड़ी इस अन्याय को देखती रहती है. सवाल यह है कि क्या उस हिरनी के साथ आख़िरत में न्याय होगा? शेर ने तो अपनी भूख मिटाने की खातिर हिरनी के बच्चे को निवाला बनाया. क्या उस ने गुनाह किया? क्या इस गुनाह के लिए शेर को नरक की आग में जलना होगा?
सुरः आले इमरान आयत नम्बर 39 में अल्लाह कहता है, “हम जिसे चाहे सीधे मार्ग पर ले आएं और जिसे चाहे मार्ग से भटका दें.”
भटका हुआ आदमी ही गुनाह करता है. जिसे अल्लाह ने ही भटका दिया हो वह धरती पर कोई अपराध करे तो जिम्मेदारी किस की है? एक भटके हुए आदमी ने चोरी की इस के बदले में उस के दोनों हाथ काट दिए गए. इस के बाद वह आदमी मर गया और आख़िरत में उसे उस के गुनाह के लिए जहन्नम की आग में भी जलना पड़ा. क्या इसे इंसाफ माना जा सकता है? क्या इस घटना में भटकाने वाले का दोष नहीं है? अगर दोष है तो फिर उसे दंड कौन देगा?
हिंदू धर्म की न्यायव्यवस्था
हिंदू धर्म में मनुष्य द्वारा धरती पर किए गए पाप का फल अगले जन्म में भुगतना पड़ता है. इस जन्म में अच्छे कर्म करने वाले अगले जन्म में श्रेष्ठ जाती में पैदा होते हैं और बुरे कर्म करने वाले निकृष्ट जाती में जन्म लेते हैं. मनुष्य जाति में पैदा होना इतना दुर्लभ है कि चौरासी लाख योनियों के बाद ही मनुष्य जाति में जन्म होता है हालांकि पुनर्जन्म की इस मान्यता से अलग स्वर्ग नरक का कौन्सेप्ट भी हिंदू धर्म में मौजूद है.
गरुड़ पुराण में अलग अलग पापों के लिए लगभग 28 प्रकार के नरकों का उल्लेख है.
जो लोग ब्राह्मणों की इज्जत नहीं करते ब्राह्मणों के घर चोरी करते हैं, उन्हें तामिस्रम नामक नरक में जाना पड़ता है, एक ऐसी जगह जहां उन्हें यमराज के लोग तब तक कोड़े मारते और पीटते हैं जब तक कि वे अपने पापों का पश्चाताप नहीं कर लेते. तामिस्रम नरक में आत्माओं को बांध कर कोड़े मारे जाते हैं.
धोखा देने वाले पापी को ‘रौरवम’ में ले जाएगा जहां पापी को सर्प द्वारा दंडित किया जाता है.
जो लोग पृथ्वी पर अपने जीवन में जानवरों को मारते हैं और खाते हैं उन्हें ‘कुंभीपाकम’ में भेजा जाएगा, एक नरक जहां उन्हें उसी तरह दंडित किया जाएगा जैसे उन्होंने निर्दोष जानवरों को दंडित किया था पापियों को गरम तेल में वैसे ही उबाला जाएगा जैसे उन्होंने जानवरों के साथ किया था.
अगर आपने अपने बुजुर्गों का अनादर किया है और आप उन के खिलाफ कठोर शब्दों का उपयोग करते हैं, तो आप को कालसूत्रम भेजा जाएगा. कालसूत्रम एक बेहद गरम जगह है जहां पापी को बारबार चिलचिलाती गर्मी में इधरउधर दौड़ाया जाता है.
अंधकूपम उन लोगों के लिए नरक है जो अपनी शक्ति का दुरुपयोग करते हैं और दान नहीं देते. अंधकूप में उन्हें जंगली जानवरों, कीड़ों और सरीसृपों द्वारा सताया जाता है जो लगातार उन पर हमला करते हैं.
सवाल यह है कि धरती पर जिंदा रहते हुए किए गए पाप के लिए मरने के बाद सजा क्यों? नरक का इतना तामझाम खड़ा करने की बजाय ईश्वर धरती से पापों को ही क्यों नहीं मिटा देता? पापियों के मन को क्यों नहीं बदल सकता ताकि वह धरती पर कोई पाप ही न करे?
पापियों को परलोक में दंड देने के इस तरह के डरावने प्रावधानों के बावजूद पाप और पापियों की संख्या में कोई कमी नहीं आई तब न्याय के नाम पर मनुस्मृति जैसे ग्रन्थ बनाए गए. जिस में न्याय का प्रावधान वर्ण आधारित होता था. एक ही अपराध के लिए ब्राह्मण को अलग और शूद्र को अलग सजा दी जाती थी.
आज जो कानून की नजर में अपराध हैं, धर्म में वह पुण्य हैं.
99 प्रतिशत धार्मिक लोग अपने धर्मग्रंथों को कभी नहीं पढ़ते. आम आदमी की धर्म में आस्था बनी रहे इस के लिए धर्म के पुरोहित धर्मग्रंथों की अच्छीअच्छी बातें निकाल कर सुनाते हैं. यही वजह है कि आम लोग अपने धर्मग्रंथों में वर्णित पाप और पुण्य की फिलौसफी को नहीं समझ पाते. तार्किक दृष्टिकोण से समझें तो सारे धर्मग्रंथ इतिहास के चालाक इंसानों ने ही लिखे हैं और इन चालाक लोगों ने ही अपने लाभ और परिस्थितियों के हिसाब से पाप और पुण्य की व्याख्या की है. यही वजह है कि जो धर्मग्रंथ जितना पुराना है वह आज उतना ही आउट डेटेड है और उस में लिखी बातें उतनी ही अप्रासंगिक हैं. धर्मग्रंथों में जो पाप और पुण्य की बातें हैं उन में ज्यादातर आज की परिस्थितियों में फिट नहीं बैठ पातीं. कई बातें जो धर्म के अनुसार पाप या गुनाह है वह आज की न्याय व्यवस्था में जायज हैं और कई ऐसी बातें जो धर्म के अनुसार पुण्य या सबाब के काम हैं वो आज की न्यायव्यवस्था में अपराध घोषित किए गए हैं.
भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्राप्त है और किसी भी नागरिक के साथ उस की जाति के आधार पर भेदभाव अपराध है लेकिन जाती के आधार पर भेदभाव या छुआछूत हिंदुधर्म का अभिन्न हिस्सा है.
संसार की समस्त धन संपत्ति का मालिक ब्राह्मण के सिवा कोई दुसरा नहीं है. (मनु.1/100)
ब्राह्मण शूद्र की संपत्ति को जबरन छीन सकता है क्योंकि शूद्र का अपना कुछ भी नहीं है. (मनु.8/417)
शूद्र को संपत्ति इकट्ठा नहीं करना चाहिए इस से ब्राह्मण को दुख होता है. (मनु.10/129)
जो शूद्र अपने प्राण, धन और स्त्री ब्राह्मण को अर्पित कर दे, उस शूद्र का भोजन ग्रहण करने योग्य है. (विष्णु पुराण 5/11)
मनुष्यों में ब्राह्मण तेजी में सूर्य और संपूर्ण शरीर में मष्तिष्क के समान सब धर्मों में श्रेष्ठ है. (मनु.8/82)
मूर्ख ब्राह्मण का भी श्रेष्ठता में उच्च स्थान है. (मनु.9/317)
पूजिय विप्र सकल गुण हीना, शूद्र न गुनगन ज्ञान प्रवीना. (रामचरित मानस अरण्य कांड)
जो वरणाधम तेलि कुम्हारा, स्वपच किरात कोल कलवारा तथा अभीर यमन किरात खस, स्वपचादि अति अघरुप जे
अर्थात : तेली, कुम्हार, भंगी, आदिवासी, कलवार, अहीर, मुसलमान और खटिक नीच और पापी जातियां होती हैं. (रामचरित मानस उत्तर कांड)
ब्राह्मण दुश्चरित्र हो तब भी पूजनीय है और शूद्र जितेन्द्रिय होने पर भी नहीं. (पराशर स्मृति 8/33)
ब्राह्मण की किसी बात पर शंका नहीं करना चाहिए क्योंकि यह वेद की आज्ञा है. (ऋग्वेद8/4/10)
जिन ब्राम्हणों ने क्रुद्ध हो कर अग्नि को सर्वभक्षी बना दिया, समुद्र का जल खारा कर दिया तथा चंद्रमा को तपेदिक का रोगी बना दिया, उन को कुपित कर के कौन ऐसा है जो नष्ट नहीं हो जाएगा? (मनु.9/314)
ब्राह्मण यदि शूद्र को गाली दे तो कोई दंड न दे परंतु यदि शूद्र ब्राह्मण को गाली दे तो प्राणदंड दिया जाए. (गौतम धर्म शूत्र 12/8/31 तथा मनु.8/268)
ब्राह्मण यदि दूसरे के धन को चोरी करे या किसी का बलात्कार भी करे तो राजा उसे कोई दंड न दे. (मनु.11/9)
भले बुरे किसी भी कर्म को करते हुए ब्राह्मण का तिरस्कार नहीं करना चाहिए. (महाभारत आदि पर्व199/13)
यदि कोई शूद्र किसी द्विज को गाली देता है अथवा मारता है तो उस का वह अंग काट देना चाहिए, झूठा दोष लगाने पर उस की जीभ के टुकड़ेटुकड़े कर के उसे सूली पर चढ़ा दें, अपमान करने पर उस की जीभ काट दें, उच्च वर्ण का नाम घृणा से ले तो 10 अंगुल की कील गरम कर के जीभ में ठोक दी जाए, ब्राह्मण को धर्म सिखाने पर मुख तथा कान में गरम तेल भरवा दिया जाए. (नारद स्मृति412/414)
शूद्र द्वारा अपने को ब्राह्मण कहने पर उस की आंखों में तेजाब डाल कर उन्हें फोड़ देना चाहिए, किसी राजा के राज्य में शूद्र यदि मुकदमा करता है तो उस का राज्य कीचड़ में फंसी गाय की तरह दुखित होता है. (मनु.2/11)
बिल्ली, नेवला, नीलकंठ, मेंढक, कुत्ता, गोहू, उल्लू कौआ इनमें से किसी एक को मार कर शूद्र हत्या का प्रायश्चित करें. (मनु.11/131)
ब्राह्मण विहीन क्षत्रिय कभी वृद्धि नहीं कर सकता और ब्राह्मण भी क्षत्रिय के बिना वृद्धि नहीं पा सकता. ब्राह्मण और क्षत्रिय यदि मिलकर रहते हैं तो इस लोक परलोक दोनों में अपार सुख पाते हैं. (मनु.9/322)
राजा को चाहिए कि वैश्यों और शूद्रों से अपना अपना कार्य करवाता रहे क्योंकि वे अपने कार्यों को छोड़ देंगे तो ये दुनिया तबाह कर देंगे. (मनु.8/418
आज औरतों को जो अधिकार कौन्स्टिट्यूशन से हासिल हुए हैं वो कभी औरतों के लिए पाप की श्रेणी में आते थे. नाबालिग लड़कियों की शादी कर देना धर्म के अनुसार पुण्य का काम है लेकिन कौन्स्टिट्यूशन के अनुसार बाल विवाह जुर्म है.
घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005
यह कानून महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा प्रदान करता है और घरेलू हिंसा के मामलों में मदद के लिए विभिन्न प्रावधान करता है लेकिन धर्म में तो घरेलू हिंसा जायज है. कुरान के सुरह निशा की आयत नम्बर 34 के अनुसार मर्द अपनी औरतों को पीट सकता है. मनुस्मृति अध्याय 18 श्लोक 370 में लिखा है कि जो औरत अपने पति के घर को छोड़ कर पिता के घर को श्रेष्ठ समझे उसे बीच चौराहे पर कुत्तों से नोचवा देना चाहिए.
दहेज निषेध अधिनियम, 1961
यह कानून दहेज प्रथा को गैरकानूनी घोषित करता है और दहेज मांगने या देने पर सजा का प्रावधान करता है लेकिन धार्मिक कहानियों में दहेज प्रथा को खूब महिमामंडित किया गया है. कई भगवानों ने अपनी शादियों में दहेज लिया तो पैगम्बरों ने भी ऐसा किया. यही कारण है कि भारतीय समाज में आज भी कन्या, दान की वस्तु ही मानी जाती है.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 महिलाओं को समानता, भेदभाव से मुक्ति, सार्वजनिक पद पर रहने और जीवन जीने के अधिकार प्रदान करते हैं लेकिन किसी भी धर्म में नारी को समानता हासिल नहीं है. हर कदम पर भेदभाव है.
मनु स्मृति के अनुसार नारी स्वतंत्रता की अधिकारी नही है. (अध्याय-9 श्लोक-45)
नारी पत्नी, पुत्री, माता सभी रूपों में सिर्फ एक दासी है. (अध्याय-9 श्लोक-416)
नारी हर रूप में अपवित्र है, उस को पढने, लिखने या ज्ञान प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है. (अध्याय-2 श्लोक-66 और अध्याय-9 श्लोक-17)
नारी नरक का द्वार है. (अध्याय-11 श्लोक-36 और 37)
पढ़नेलिखने वाली नारी अपवित्र है, पढ़ीलिखी नारी के हाथ का भोजन नहीं करना चाहिए. (अध्याय-4 श्लोक-205 और 206)
भारतीय न्याय संहिता की जरूरत क्यों ?
1857 के भारतीय विद्रोह के बाद ब्रिटिश राज में मैकाले के आपराधिक कानून के प्रस्ताव को पास किया गया और 1860 में भारतीय दंड संहिता, 1872 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता और 1908 में सिविल प्रक्रिया संहिता लागू हुई. इंडियन पीनल कोड भारत के साथ ब्रिटिश शाशन में आने वाले तमाम देशों में भी लागू की गई और आज तक इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत आने वाले कई कानून पाकिस्तान, मलेशिया, म्यांमार, बांग्लादेश, श्रीलंका, नाइजीरिया और जिम्बाब्वे तक में लागू हैं. भारत में न्याय की स्थापना के लिए मैकाले ने जो किया था वह गलत था पर वह तो विदेशी था. धर्मप्रिय सरकार ऐसा कैसे कर सकती है?
भारतीय न्याय संहिता 2023 बना कर धर्मप्रिय सरकार ने साबित कर दिया है कि धर्म से न्याय सम्भव नहीं है. आज की राजनीति धर्म की बैसाखी के सहारे चल रही है. धर्म की किताबें फिर से प्रासंगिक की जा रही हैं तो फिर धर्म पर आधारित न्याय व्यवस्था से परहेज क्यों?