Union Territories : फुटपाथ आम लोगों के चलने के लिए बनाई जाती हैं मगर खुमचे, रेहड़ी, पटरी वालों के चलते ये पूरे जाम रहते हैं. होता यह है कि लोगों को सड़क पर चलते हुए परेशानी होती है और कभीकभार दुर्घटनाएं भी हो जाती हैं. अगर स्मार्ट सिटी की चाह है तो सिटी प्लान होना जरूरी है.
पैदल यात्रियों की सुरक्षा को ले कर चिंता जताने वाली एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 14 मई को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को पैदल यात्रियों के लिए उचित फुटपाथ सुनिश्चित करने के लिए गाइडलाइन तैयार करने का निर्देश दिया है. जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने कहा कि फुटपाथों की गैरमौजूदगी में पैदल यात्रियों को सड़कों पर चलने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिस से वे हादसों और जोखिमों के शिकार होते हैं. अतिक्रमण मुक्त फुटपाथ लोगों के जीवन और स्वतन्त्रता का हिस्सा है.
बेंच ने कहा कि नागरिकों के लिए सही फुटपाथ होना बहुत जरूरी है. ये इस तरह बने होने चाहिए कि दिव्यांग व्यक्तियों के चलने के लिए भी सुलभ हों. इसलिए फुटपाथों पर हुए अतिक्रमण को हटाना जरूरी है. फुटपाथ पैदल यात्रियों के लिए उन का संवैधानिक अधिकार है. फुटपाथ का इस्तेमाल करने का पैदल यात्रियों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद-21 के तहत संरक्षित है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को 2 महीने के भीतर पैदल यात्रियों के अधिकारों की रक्षा के लिए अपनी गाइडलाइंस रिकौर्ड पर लाने का निर्देश देते हुए कहा है कि पैदल यात्रियों की सुरक्षा बेहद अहम है. आएदिन लोग सड़कों पर हादसों का शिकार हो रहे हैं क्योंकि उन के चलने के लिए फुटपाथ पर जगह नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट की चिंता जायज है. एक आंकड़े के अनुसार देश में प्रतिदिन औसतन 46 पैदल यात्रियों की जान सिर्फ इस वजह से जा रही है क्योंकि फुटपाथों पर अतिक्रमण के कारण वे सड़क पर चलने के लिए मजबूर हैं. दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों के अनुसार 2025 में सिर्फ 4 महीने में ही दिल्ली में पैदल चलने वाले 184 लोगों की सड़क हादसे में मौत हो गई.
दिल्ली में लगभग 80 प्रतिशत से अधिक फुटपाथों पर रेहड़ी-पटरी, ठेलों, दुकानदारों और गाड़ी वालों ने अतिक्रमण कर रखा है. ऐसे में लोग मजबूरी में सड़क पर चलने के लिए मजबूर हैं. अतिक्रमण का शिकार सिर्फ दिल्ली ही नहीं है, बल्कि तमाम छोटेबड़े शहर के फुटपाथ ऐसे अतिक्रमण से भरे पड़े हैं.
दिल्ली की बात करें तो यहां लुटियंस दिल्ली और एयरपोर्ट को कनेक्ट करने वाली द्वारका सब सिटी रोड नंबर-201 के फुटपाथ पर इस कदर अतिक्रमण है कि कोई इस पर पैदल नहीं चल सकता. लोग फुटपाथ से नीचे सड़क पर ही चलते हैं. मधु विहार बस टर्मिनल से ले कर आकाश हौस्पिटल तक रोड नंबर-201 पर करीब एक किमी दूरी तक फुटपाथ और सर्विस लेन दोनों में अतिक्रमण है. बस टर्मिनल से आकाश हौस्पिटल तक दोनों तरफ के फुटपाथ पर रेहड़ी-पटरी और खोमचे वालों ने कब्जा कर रखा है.
सर्विस लेन के ठीक सामने ही गाड़ियों के कई शोरूम हैं. वहां फुटपाथ और सर्विस लेन दोनों पर अवैध कब्जा है. सर्विस लेन में गाड़ियों की अवैध पार्किंग है. फुटपाथ पर ही बिजली कंपनी ने ट्रांसफार्मर लगा रखा है. एक जगह फुटपाथ पर पुलिस बूथ भी बना हुआ है. इसी रोड पर जहां पेट्रोल पंप है, वहां सर्विस लेन में लोगों ने झुग्गियां बना रखी हैं, इन में रहने वाली औरतें और बच्चे फुटपाथ पर ही चारपाइयां डाल कर लेटते बैठते हैं. ऐसे में पैदल यात्री इस फुटपाथ पर चढ़ता ही नहीं है. फुटपाथ पर ही उन्होंने खाना पकाने का इंतजाम भी कर रखा है. जगहजगह उन के चूल्हे जल रहे होते हैं.
मजे की बात है कि सर्विस लेन में जहां झुग्गियां बनी हैं, ठीक उसी के बगल में एमसीडी के मेंटेनेंस विभाग का औफिस है. रोड नंबर-201 के फुटपाथ का सौंदर्यीकरण करते हुए कुछ साल पहले ही डीडीए ने 60-70 लाख रुपए की लागत से उस पर बढ़िया टाइल्स लगाई थी. मगर अतिक्रमण के चलते अब टाइल्स टूट कर बिखर चुकी हैं. फुटपाथ पर ग्रीनरी के लिए जितने पेड़ लगाए गए थे वे भी अब सूख कर खत्म हो चुके हैं.
जहांगीरपुरी मेट्रो स्टेशन के बाहर आधे फुटपाथ पर स्ट्रीट वेंडर्स का कब्जा है. अतिक्रमण करने में पुलिस भी पीछे नहीं है. मेट्रो स्टेशन के गेट के लगभग 50 मीटर की दूरी पर दिल्ली पुलिस ने अपना बूथ बना लिया है, जो पूरे फुटपाथ को घेरे हुए हैं. यहां अतिक्रमण के खिलाफ लंबे समय से लोग शिकायत करते आ रहे हैं, लेकिन संबंधित विभाग कोई एक्शन नहीं लेता है. जहांगीरपुरी मेट्रो स्टेशन के चारों गेट पर कहीं लोगों ने अवैध पार्किंग की हुई है, तो कहीं पर स्ट्रीट वेंडर्स और रेहड़ी पटरी वालों ने अतिक्रमण किया हुआ है. यहां तो दिव्यांग भी सड़क पर चलने को मजबूर हैं, जिस से हर पल हादसे का डर बना रहता है.
आजादपुर टर्मिनल के बाहर फुटपाथ पर भी ऐसा ही हाल है. मौडल टाउन की तरफ जाने वाली सड़क पर सालों से फुटपाथ पर कपड़े की दुकानें लगती हैं. दुकानदारों ने सड़क को इस कदर घेर लिया है कि कोई वहां से पैदल निकल ही नहीं सकता है. इतना ही नहीं, अतिक्रमण कर रहे लोग अपना आधा सामान सड़क पर फैला देते हैं, जिस के कारण लोगों को पता ही नहीं चलता कि यहां फुटपाथ भी है. इस के अलावा मेट्रो स्टेशन के आगे इसी सड़क पर फुटपाथ पर वाटर एटीएम भी लगा दिया गया है. आदर्श नगर में भी ऐसी ही स्थिति देखने को मिलती है.
आईएसबीटी कश्मीरी गेट बस अड्डे के बाहर सड़क पर चौबीसों घंटे पैदल चलने वालों की भीड़ रहती है. चाहे रिंग रोड हो या उस के अपोजिट जीटी करनाल रोड और उस से सटी लोठियान रोड, इन तीनों सड़कों से दिनभर बस अड्डे में आनेजाने वाले लोग सामान ले कर पैदल गुजरते हैं. इस के अलावा कश्मीरी गेट मेट्रो स्टेशन से आनेजाने वाले लोगों की भीड़ भी यहां होती है. ऐसे में कायदे से यहां सड़क के दोनों तरफ के फुटपाथ बहुत अच्छी हालत में होने चाहिए, लेकिन इस के उलट यहां स्थिति अत्यंत खराब है. रेहड़ी पटरी वालों ने फुटपाथ पर इतनी अधिक जगह घेर रखी है कि लोगों को लाइन बना कर निकलना पड़ता है. कुछ लोगों ने तो यहां फुटपाथ पर ही ढाबे खोल रखे हैं. फुटपाथ के बीचों-बीच बिजली के खंभे और साइनेज लगा दिए गए हैं. रही सही कसर नालों की सफाई के बाद निकाली गई गाद ने पूरा कर दिया है. जो फुटपाथ पर जम जम कर जगहजगह उभरे हुए टीलों सदृश्य लगती है.
जगतपुरी चौक और मेट्रो स्टेशन को पार कर के थोड़ा आगे बढ़ने पर फुट ओवरब्रिज दिखता है. इसी पोइंट से एक सड़क कृष्णा नगर की ओर जाती है. इसे हंसराज मार्ग कहते हैं. यहां फुटपाथ के साथसाथ सड़क के एक बड़े हिस्से पर कार गैराज जैसा माहौल देखने को मिलता है. इस वजह से न केवल सड़क पर चलने वाली गाड़ियों बल्कि पैदल चलने वालों के लिए भी सुरक्षित जगह नहीं मिलती.
दक्षिण दिल्ली की तरफ निकल जाएं तो दिल्ली का यह क्षेत्र कुछ साफ सुथरा तो है मगर फुटपाथों पर अतिक्रमण यहां भी हैं. अधिकांश जगह तो अब फुटपाथ गायब ही हो चुके हैं. तमाम बड़ी कोठियों ने सामने फुटपाथ वाली जगह पर कब्ज़ा कर के लोगों ने अपने छोटेछोटे गार्डन बना लिए हैं. कई जगह जहां पहले घरों के सामने फुटपाथ थे वहां लोगों ने अपने घरों के आगे सीमेंट के चबूतरे बना लिए हैं. जिस की वजह से नीचे पानी की निकासी के लिए बनाई गई नालियां भी बंद हो गई हैं. नतीजा ज़रा सी बारिश में सड़कें तालाब बन जाती हैं. खाने पीने की दुकानों के आगे जहां फुटपाथ बचे हैं वहां दुकानदारों ने कुर्सियां डाल कर ग्राहकों को बैठ कर खाने की सुविधा दे दी है. अब उन के बीच से पैदल यात्री कैसे गुजरे?
पूर्वी दिल्ली के तमाम क्षेत्र अतिक्रमण से त्रस्त हैं. यहां फुटपाथों पर फलों के ठेले, कपड़ों के ठेले, खोमचे वाले, मोची, नकली जेवर बेचने वालों ने अपने पक्के ठिकाने बना लिए हैं. झंडेवालान के फुटपाथ स्ट्रीट फ़ूड के ठेलों से भरे पड़े हैं. बाकी जगह साइकिल और मोटर ठीक करने वालों ने हथिया रखी है. यहां तो कहीं फुटपाथ के दर्शन ही नहीं होते. पैदल चलने वाले लोग सड़क पर गाड़ी-मोटर-टेम्पो-रिक्शा के बीच बचते बचाते चलते हैं. किसी को किसी गाड़ी ने टच कर लिया तो होहल्ला-गालीगलौच मचता है और भीड़ जुटने से ट्रैफिक जाम हो जाता है.
कमोबेश ऐसी हालत से पूरा देश जूझ रहा है. मगर करें क्या. हम हैं भी तो 140 करोड़. लोग ज्यादा हैं जगह कम है. अतिक्रमण से सड़कों को मुक्त करने की जिम्मेदारी जिन अधिकारियों और जिन विभागों पर है वे अदालतों की फटकार खा लेते हैं मगर करते कुछ भी नहीं हैं. करें भी क्या? इतनी बड़ी संख्या में सड़कों पर जो लोग अपना धंधा कर रहे हैं, दो जून की रोटी कमा रहे है, किसी तरह अपना परिवार पाल रहे हैं, उन का धंधा भी बंद नहीं किया जा सकता है. क्योंकि यही लोग वोटर भी हैं. सरकार बनाते गिराते हैं. इन का ख़याल भी रखना होगा. फिर हर किसी को तो सरकार नौकरी दे नहीं सकती. लोग छोटेमोटे धंधे नहीं करेंगे तो परिवार कैसे पालेंगे? दुकानें खरीदने की सबकी औकात नहीं है. लिहाजा ठेला ही लगाना पड़ता है. जमीन पर ही चादर बिछा कर सामान बेचना पड़ता है. अब नगर निगम या पुलिस ऐसे मजबूर और गरीब लोगों के पेट पर लात मारे, यह भी सुप्रीम कोर्ट नहीं चाहेगा. फिर नगर निगम और पुलिस की जेबखर्ची भी इन्ही लोगों से निकलती है.
फुटपाथों पर सामान बेचने वालों से नगर निगम के कर्मचारियों और पुलिस के सिपाहियों को प्रतिदिन बंधी बंधाई रकम मिलती है. यदि एक फुटपाथ पर सौ वेंडर्स अपना सामान बेच रहे हैं और हर दिन उन्हें वहां बैठने के 100 रूपए उस बीट के कांस्टेबल को देने पड़ रहे हैं तो उन की आमदनी का अंदाजा लगा लीजिए. यह पैसा थाने तक पहुंचता है. और यह कोई ढकी छुपी बात नहीं है. कोई भी वेंडर बता देगा कि उक्त स्थान पर बैठ कर अपना सामान बेचने के लिए वह कितना पैसा पुलिस को और कितना नगर निगम के आदमी को देता है.
हां, कभी कभी जब स्थिति ज्यादा बिगड़ती है या कोई वीवीआईपी मूवमेंट होना होता है, तब जरूर नगर निगम की गाड़ियां इन ठेलेवालों को उजाड़ने पहुंच जाती हैं. उन के ठेले जब्त कर ले जाती हैं मगर कुछ दिन बाद जुर्माना भर कर वे अपने ठेले छुड़वा लेते हैं और फिर अपनी पुरानी जगह पर आबाद हो जाते हैं.
इन ठेले वालों के बिना आम जनता का काम भी नहीं चल सकता है. देश की 70 प्रतिशत आबादी की आमदनी इतनी नहीं है कि वह हर दिन होटल का खाना अफोर्ड कर सके. घर छोड़ कर दूसरे शहरों में रह कर पढ़ने वाले बच्चे, मजदूर तबका, छोटेछोटे दफ्तरों में काम करने वाले लोग, अकेले जीवन बसर करने वाले अनेकानेक लोग अपने भोजन के लिए इन्हीं ठेले वालों, खोमचे वालों, फल वालों, ढाबे वालों पर निर्भर हैं. गरीब तबका तो पूरी तरह से इन्हीं पर निर्भर है. वे किसी बड़े शोरूम में नहीं जा सकते, तो फुटपाथ पर लगने वाले कपड़े के ठेलों से तन ढंकने के लिए सस्ता कपड़ा खरीदते हैं. खाने-पीने के लिए स्ट्रीट फ़ूड पर निर्भर होते हैं. जहां 20 रूपए में उन को रोटी सब्जी नसीब हो जाती है. 50 रुपये में छोले भठूरे की दावत हो जाती है. यही नहीं बल्कि छोटे बड़े तमाम औफिस के लोग भी लंच के वक़्त इन्हीं खोमचे वालों, ढाबे वालों, चाय वालों, फल वालों के इर्दगिर्द ही नजर आते हैं. मेट्रो स्टेशनों के नीचे, बस अड्डों पर, रेलवे स्टेशनों पर यदि रेहड़ी वाले-ठेले वाले ना हों तो भारी मुसीबत खड़ी हो जाए. आखिर लोग खाने के लिए हर दिन तो होटल नहीं जा सकते. सस्ता खाना, सस्ती चाय, सस्ता कपड़ा सभी की जरूरत है. ऐसे में स्ट्रीट वेंडर्स तो चाहिए ही.
फुटपाथों पर सस्ता सामान बेचने वालों को सरकार हटा कर किसी अन्य स्थान पर शिफ्ट भी नहीं कर सकती है. क्योंकि वे तो वहीं अपना धंधा करेंगे जहां उनकी बिक्री होगी. जहां उन के ग्राहक होंगे. ऐसे में जब भी सरकार वेंडर्स के लिए कोई ऐसी योजना लाती है जिस में उन को किसी बड़े मैदान में जगह दे दी जाए तो ऐसी योजनाएं फ्लॉप हो जाती हैं. आम जनता को भी अपनी जरूरत की चीज बस दो कदम की दूरी पर ही चाहिए, न कि किसी दूरदराज के मैदान में. तो अगर यह ठेलेवाले फुटपाथों को घेर कर बैठे हैं तो इस का जिम्मेदार कोई और नहीं, बल्कि सिर्फ और सिर्फ उपभोक्ता है. अब उपभोक्ता को सस्ता सामान भी दो कदम की दूरी पर चाहिए और वह स्मार्ट सिटी का सपना भी देखे, तो ऐसा संभव नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के कहने पर सरकार फुटपाथ पर धंधा करने वालों के लिए क्या गाइडलाइन तय करेगी और वह कितनी कारगर साबित होगी, यह देखना दिलचस्प होगा.