Rights : रेप के झूठे मामले एक गंभीर समस्या है, जिन में निर्दोष पुरुषों का जीवन तबाह होता है. विष्णु तिवारी जैसे मामले, जहां 19 साल बाद निर्दोष साबित हुए, चौंकाने वाले हैं. लेकिन क्या ये केस महिला अधिकारों के खिलाफ साजिश का हिस्सा हैं? एनसीआरबी के अनुसार, 65% मामलों में आरोपी बरी होते हैं, पर क्या इस का मतलब यह है कि ज्यादातर शिकायतें झूठी हैं? या फिर यह न्याय प्रणाली और सामाजिक पूर्वाग्रहों की विफलता है? क्या इन्हें महिलाओं के खिलाफ हथियार बनाना उचित है?
ललितपुर के थाना महरौनी के गांव सिलावन निवासी विष्णु तिवारी की उम्र इस वक्त 46 साल है और वो 19 वर्षों से जेल में बंद थे. विष्णु को दुष्कर्म के झूठे आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई थी. विष्णु के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी इसलिए वो लोग हाईकोर्ट में अपील न कर सके. विधिक सेवा प्राधिकरण ने विष्णु के मामले की पैरवी हाईकोर्ट में की और 19 साल बाद हाईकोर्ट ने विष्णु को निर्दोष करार देते हुए रिहा करने के आदेश दिए. इस तरह जिंदगी के 19 साल जेल में गुजारने के बाद विष्णु ने बाहर की दुनिया देखी लेकिन इस बीच विष्णु ने बहुत कुछ खो दिया था. जेल में रहने के दौरान विष्णु के दो भाई, मां और पिता गुजर चुके थे और विष्णु इन में से किसी के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए थे.
बीते कुछ सालों में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के बहुत से ऐसे मुकदमे सामने आए जो कोर्ट में झूठे साबित हुए. ऐसे मामलों को देख कर लगता है कि औरतों के हित में बनाए गए कानून मर्दों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. बदले की भावना या लालच में पड़ कर कई औरतें कानूनों का मिस यूज करती हैं और इस का खामियाजा बेकसूर मर्दों को भुगतना पड़ता है.
चंडीगढ़ का यह मामला और भी गंभीर है. यह मामला 2007 का है लेकिन इस में फाइनल जजमेंट अब आया है. चंडीगढ़ की स्पैशल सीबीआई कोर्ट ने मोगा सैक्स स्कैंडल में पंजाब पुलिस के 4 पूर्व अधिकारियों को दोषी ठहराया है. इन में एक आईपीएस अफसर का भी नाम है. ये लोग अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अमीर मर्दों को रेप के झूठे केस में फंसाते थे और फिर लड़की से समझौता और केस खत्म करने के नाम पर उन से मोटी रकम ऐंठते थे. इन लोगों ने मिल कर तकरीबन 50 लोगों को फर्जी रेप केस में फंसाया और उन से जम कर उगाही की. इस साजिश में मनप्रीत कौर नाम की एक महिला शामिल थी जिस के माध्यम से अमीरों को फंसाया जाता था.
दिसंबर 2021 में गुरुग्राम में एक 22 साल की लड़की को गिरफ्तार किया गया था. उस पर आरोप था कि उस ने सितंबर 2020 से नवंबर 2021 के बीच 8 लड़कों के खिलाफ रेप का झूठा केस दर्ज करवाया था. लड़की पहले लड़कों से बात करती थी, फिर मिलने बुलाती थी और फिर रेप के झूठे मामले में फंसाने का डर दिखा कर ब्लैकमेल कर के पैसे ऐंठती थी और पैसे नहीं देने पर केस दर्ज करवा देती थी.
4 अप्रैल 2025 को लाइव हिंदुस्तान की वेबसाइट पर प्रकाशित खबर में दिल्ली की एक अदालत ने रेप का झूठा केस दर्ज कराने और झूठी गवाही देने वाली महिला के खिलाफ कार्यवाही करने का आदेश दिया.
बलात्कार के एक केस में एडिशनल सेशंस जज अनुज अग्रवाल आरोपी के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहे थे. इस केस के आरोपी पर रेप, धमकी, महिला को निर्वस्त्र करने के इरादे से हमला करने, महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने और यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे. 1 अप्रैल को जारी अपने आदेश में जज ने पेश किए गए सबूतों पर गौर किया और कहा, “इस मामले में अभियोक्ता की गवाही न केवल विरोधाभास पूर्ण है, बल्कि यह स्वाभाविक रूप से असंगत और मनगढ़ंत है.”
आरोपी को बरी करते हुए अदालत ने कहा कि “यह साफ है कि अभियोक्ता ने अदालत के सामने झूठा बयान दिया था, और उस ने रेप/छेड़छाड़ की झूठी कहानी गढ़ी थी इसलिए केवल बरी कर देने से आरोपी की पीड़ा की भरपाई नहीं हो सकती, क्योंकि झूठे आरोप से उस की प्रतिष्ठा धूमिल हो सकती है और उस की आत्मा नष्ट हो सकती है.”
मार्च में सुर्खियों में रही इस खबर पर गौर कीजिए. महाकुंभ से वायरल हुई खूबसूरत आंखों वाली मोनालिसा को फिल्म औफर करने वाले निर्देशक सनोज मिश्रा पर दुष्कर्म का मामला दर्ज हुआ और पुलिस ने सनोज मिश्रा को 31 मार्च को दिल्ली से गिरफ्तार कर लिया.
एफआईआर में नेहा (बदला हुआ नाम) ने कहा कि सनोज ने उस की मर्जी के खिलाफ उस से संबंध बनाए. कई बार उसे अबोर्शन करवाना पड़ा. सनोज की गिरफ्तारी के कुछ ही दिनों बाद 2 अप्रैल को नेहा ने केस वापस ले लिया और कहा कि ऐसा उस ने किसी और के उकसावे में किया. निर्देशक सनोज मिश्रा पर दुष्कर्म के आरोप लगाने वाली नेहा पहले भी एक बार सनोज मिश्रा के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने के बाद उसे वापस ले चुकी हैं. तब भी उन्होंने सनोज पर दुष्कर्म के आरोप लगाए थे और फिर केस वापस ले लिया था. अब एक बार फिर नेहा ने सनोज पर रेप के आरोप लगाए और गिरफ्तारी होने के बाद नेहा ने बयान दिया कि सनोज के साथ उस ने अपनी मर्जी से संबंध बनाए वो सनोज के साथ लिवइन में थी सनोज ने कोई जबरदस्ती नहीं की.
यदि नेहा अब सच बोल रही है कि किसी के उकसाने में उस ने सनोज मिश्रा पर झूठे रेप का मुकदमा किया तो क्या यह एक गम्भीर समस्या नहीं है? अगर नेहा अपने बयान से न पलटती तो सनोज को क्याक्या नहीं झेलना पड़ता.
मर्जी से बने रिश्ते बन जाते हैं पुरुषों के लिए अभिशाप
कई मामलों में लड़की अपनी मर्जी से किसी मर्द के साथ रिलेशनशिप में जाती है और लंबे वक्त तक संबंध बनाए रखने के बाद बात बिगड़ने पर मर्द पर रेप का आरोप लगा कर उसे सलाखों तक पहुंचा देती है. कई मामलों में औरतें कानून का डर दिखा कर मर्दों को ब्लैकमेल भी करती हैं क्योंकि रेप के मामलों में कानून बहुत सख्त हैं और जब तक मर्द अपने को बेगुनाह साबित करता है तब तक वह बरबाद हो चुका होता है. ऐसे मर्दों को कानून का ही सामना नहीं करना पड़ता बल्कि समाज की नजर में भी वह कहीं का नहीं रहता.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर चिंता जताई है कि सहमति से बने रिश्तों में जब खटास आ जाती है तो रेप केस दर्ज करवा दिया जाता है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे चिंता बढ़ाने वाला ट्रेंड बताया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिला के विरोध के बिना लंबे समय तक बने शारीरिक संबंध इस ओर इशारा करते हैं कि ये संबंध शादी के झूठे वादे की बजाय सहमति से बनाए गए थे.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि रेप के 65% से ज्यादा मामलों में आरोपी बरी हो जाते हैं. रेप के मामलों में कन्विक्शन रेट 30% से भी कम है.
2022 में रेप के 18,517 मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था. इस में 5,067 मामलों में आरोपी को सजा मिली थी. इसी तरह महिलाओं के खिलाफ अपराध के 1,50 लाख से ज्यादा मामलों का ट्रायल पूरा हुआ था, जिस में 38,136 मामलों में ही आरोपी दोषी साबित हुआ. महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में कन्विक्शन रेट 25 फीसदी है. यानी हर 4 में से 3 आरोपी बरी हो जाते हैं.
आंकड़ों के मुताबिक, 2018 से 2022 के बीच 5 साल में रेप के 74 हजार से ज्यादा मामलों का ट्रायल पूरा हुआ. इन में से 46,973 मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया. यानी, 5 साल में रेप के 10 में से 6 मामलों में आरोपी बरी हो गए. ये आंकड़े बताते हैं कि रेप के ज्यादातर मामले या तो अदालत में साबित नहीं हो पाते या फिर ये झूठे होते हैं.
16 दिसंबर 2012 को हुए निर्भया कांड के बाद देश में रेप का कानून और सख्त कर दिया गया था. इस के बाद रेप के मामलों में अगर आरोपी की उम्र 16 से 18 साल के बीच है तो उसे वयस्क मान कर ही मुकदमा चलाया जाएगा. ये बदलाव इसलिए किया गया था क्योंकि निर्भया कांड का एक आरोपी नाबालिग था और 3 साल में ही छूट गया था.
इस के बाद पोक्सो यानी प्रोटेक्शन औफ चिल्ड्रन फ्रोम सैक्सुअल औफेंस एक्ट लाया गया था. ये बच्चों के खिलाफ होने वाले यौन शोषण को अपराध बनाता है. लेकिन इस में भी कन्विक्शन रेट कम ही है. 2022 में पोक्सो केस में कन्विक्शन रेट 32% के आसपास था.
एक पुलिस अफसर ने बताया ‘अगर कोई मातापिता हमारे पास आते हैं और कहते हैं कि उन की बेटी पड़ोस के किसी लड़के के साथ भाग गई है तो हम अपहरण का केस दर्ज करते हैं. फिर जब वो लड़की कहती है कि संबंध भी बने थे, तो हम रेप की धारा भी जोड़ते हैं. फिर कोर्ट तय करती है कि रेप हुआ था या नहीं? रेप के 40% से ज्यादा मामले ऐसे होते हैं जिन में संबंध सहमति से होती है, लेकिन जब बात लड़की के मातापिता तक पहुंची तो वे लड़के पर रेप का केस दर्ज करवा देते हैं.
2017 में जयपुर के एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने बताया था कि रेप के 43% मामले जांच में फर्जी मिले हैं. ये झूठे केस पैसे ऐंठने के लिए दर्ज कराए गए थे.
इस के अलावा रेप के ज्यादातर मामले ऐसे भी होते हैं, जिन में लड़कालड़की पहले तो साथ रहते हैं और जब लड़का शादी से इनकार कर देता है तो उस के खिलाफ रेप का केस दर्ज करवा दिया जाता है. कुछ सालों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं. एनसीआरबी से मिले आंकड़े बताते हैं कि 2021 में रेप के 31,516 मामले दर्ज हुए थे, जिन में से 14,582 यानी 46% से ज्यादा मामले ऐसे थे जिन में लड़की ने दावा किया था कि उस के साथ शादी का झांसा दे कर रेप किया गया था.
2018 में बेंगलुरु की नैशनल ला यूनिवर्सिटी ने एक स्टडी की थी. इस में सामने आया था कि 16 से 18 साल की ज्यादातर लड़कियां आरोपी के खिलाफ गवाही देने से मुकर जाती हैं.
पूरे मामले पर “सरिता” का निष्पक्ष विश्लेषण
सरिता मैगजीन किसी भी मुद्दे पर प्रचलित ट्रेंड से अलग राय रखती है. सरिता ने हमेशा से नारी की गरिमा और न्याय को केंद्र में रखा है. यही वजह है कि नारी से जुड़े हर मुद्दे पर सरिता का विश्लेषण तार्किक और निष्पक्ष होता है.
रेप के ऐसे मामलों के आधार पर जो कोर्ट में झूठे साबित होते हैं महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानूनों पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया जाता है. शोशल मीडिया, प्रिंट मीडिया, न्यूज चैनल्स और धर्मगुरुओं की पूरी लोबी एकजुट हो जाती है और यह सभी मिल कर यह नैरेटिव बिठाने में लग जाते हैं कि महिलाओं की सुरक्षा से जुड़े कानून मर्दों के साथ अन्याय हैं. महिलाओं की आजादी पर सवाल खड़े किए जाते हैं और उन्हें संस्कारों में बांधने की बातें होने लगती हैं.
इस में कोई दो राय नहीं कि रेप के लगभग आधे मामले झूठे साबित होते हैं और कई मामलों में महिलाएं लालच या बदले की भावना से मर्दों पर रेप का झूठा मुकदमा करती हैं लेकिन ऐसे मामलों को ले कर महिला अधिकारों और कानूनों पर प्रश्नचिन्ह लगाना कहां तक उचित है.
दहेज के मामलों में भी यही पैटर्न नजर आता है. कोर्ट में दहेज के कुछ मामले झूठे साबित होते हैं इसे खूब प्रचारित किया जाता है और दहेज के खिलाफ बने कानूनों की आलोचना की जाती है. ऐसे चंद मामलों को ले कर पुरुषों को विक्टिम दिखाने की कोशिश होने लगती है. इस में भी कोई दो राय नहीं कि दहेज के मामलों में भी झूठे मुकदमे दर्ज होते हैं और कई मामलों में बेकसूर मर्दों को सजा काटनी पड़ती है लेकिन इस से दहेज के नाम पर होने वाली मानसिकता तो खत्म नहीं हो जाती.
कड़वी सच्चाई यह है कि दहेज के नाम पर देश में प्रतिदिन 18 महिलाओं को मार दिया जाता है. दहेज हत्या में उत्तर प्रदेश 11,874 मौतों के साथ पहले नंबर पर है. वही, बिहार में 5,354, मध्य प्रदेश में 2,859, पश्चिम बंगाल में 2,389 और राजस्थान में 2,244 मौतें दर्ज की गईं.
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 से 2021 के बीच देशभर में 35,493 महिलाओं की मौत दहेज हत्या के कारण हुई, जो प्रतिदिन लगभग 20 मौतों के बराबर है.
महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामलों में कन्विक्शन रेट 25 फीसदी है. यानी हर चार में से तीन आरोपी बरी हो जाते हैं. इस का मतलब यह नहीं है कि कोर्ट की नजर में दोषमुक्त होने वाले सभी आरोपी सच में निर्दोष ही होते हैं. कई मामलों में लड़कियां अपना केस किसी दबाव में वापस ले लेती हैं कई मामलों में धमकी के डर से भी लड़की समझौता कर लेती है और कई बार पैसों के लालच में भी वो ऐसा करती है.
लड़कियों के लिए रेप केस का सामना करना आसान नहीं होता. इज्जत के डर से तो कई बार लड़की थाने तक भी नहीं पहुंच पाती. कई मामलों में रेप के बाद लड़की के घरवाले ही कोर्ट जाने की हिम्मत नहीं कर पाते. रेप के मामलों में यदि कन्विक्शन रेट 25 परसेंट है तो इस का मतलब यह नहीं कि 75 परसेंट मामले झूठे हैं.
पुरुषवादी मानसिकता से कोर्ट भी अछूते नहीं है. महिलाओं से जुड़े अपराधों के मामले में जजों की अनर्गल टिप्पणियों में यह मानसिकता झलक जाती है. दिल्ली हाईकोर्ट ने रेप के झूठे मामलों पर चिंता जताते हुए कहा था, ‘रेप के झूठे मामले आरोपी व्यक्ति के जीवन और कैरियर को तबाह कर देते हैं. आरोपी का सम्मान खत्म हो जाता है. वो अपने परिवार का सामना नहीं कर पाता और उस का जीवन कलंकित हो जाता है. इस तरह के आरोप इसलिए लगाए जाते हैं ताकि दूसरा पक्ष डर या शर्म के मारे उन की सारे मांगें मान लेगा. हाईकोर्ट ने सुझाव दिया कि जब तक ऐसे झूठे मुकदमे करने वालों को सजा नहीं होगी, तब तक झूठे केस बंद नहीं होंगे.
रेप के झूठे मामलों में आरोपी की जिंदगी तबाह हो जाती है लेकिन रेप के सच्चे मामलों में क्या लड़की की जिंदगी बरबाद नहीं होती? क्या लड़कियों का कैरियर और उस की सामाजिक स्थिति पर प्रभाव नहीं पड़ता? निर्दोष मर्दों के सम्मान की चिंता वाजिब है लेकिन क्या इसी वेदना के साथ जजों को पीड़ित लड़कियों के सम्मान की चिंता होती है?
17 मार्च को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज ने अपने एक फैसले में कहा था कि ‘पीड़िता के प्राइवेट पार्ट को छूना और पायजामे की डोरी तोड़ने को रेप या रेप की कोशिश के मामले में नहीं गिना जा सकता है.”
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की बेंच ने कहा कि “इलाहाबाद कोर्ट का यह फैसला पूरी तरह से असंवेदनशील और अमानवीय नजरिए को दिखाता है. हमें यह कहते हुए दुख हो रहा है कि यह निर्णय जज की ओर से संवेदनशीलता की कमी को दर्शाता है इसलिए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाना जरूरी है”
10 अप्रैल 2025 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज संजय कुमार ने रेप के एक आरोपी की जमानत मंजूर करते हुए कहा कि “भले ही पीड़िता का आरोप सही है कि उस के साथ रेप हुआ, तो भी यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि उस ने खुद ही मुसीबत मोल ली और इस के लिए वह खुद जिम्मेदार है”
पीड़िता के प्रति जजों की यह मानसिकता दर्शाती है कि ऐसे जज पुरुषवादी सोच से ऊपर नहीं उठ पाएं. यह भी एक सच्चाई है कि सत्ता जिस विचारधारा की होती है सत्ता के विभिन्न प्रतिष्ठान भी उसी विचारधारा का हिस्सा बन जाते हैं. 50 और 60 के दशक में जब सत्ता में कम्युनिस्ट विचारधारा का प्रभाव था तब विभिन्न अदालतों के फैसलों में इस का असर भी साफ नजर आता था. उस दौर में कम्युनिस्ट विचारधारा के जजों ने ज्यादातर फैसले वर्कर्स के पक्ष मे दिए जिस से मालिकों को खासा नुकसान हुआ. नतीजा यह हुआ कि आगे चल कर समाजवादी व्यवस्था पूरी तरह ध्वस्त हो कर गिर गई. आज दक्षिणपंथी सत्ता में हैं इसलिए सत्ता के सभी प्रतिष्ठानों में इन की विचारधारा का प्रभाव साफ दिखाई दे रहा है. दक्षिणपंथी चाहे किसी भी देश की सत्ता में हों वो सब से पहले महिलाओं की आजादी पर लगाम लगाते हैं. आज न्यायपालिका, विधायिका, कार्यपालिका और मीडिया सत्ता के यह चारों स्तम्भ पूरी तरह सत्ता के रंग में रंग चुके हैं.
यही वजह है कि महिलाओं से जुड़े जघन्यतम अपराधों में संलिप्त लोगों को बचाने के लिए सत्ता के विभिन्न प्रतिष्ठानों में पुरुषवादी लोबी एकजुट नजर आती है.
नवी मुंबई का एक पुलिस इंस्पेक्टर अभय कुरुंदकर, जो अपनी सहायक पुलिस निरीक्षक अश्विनी बिदरे के साथ इश्क में था उस ने अप्रैल 2016 में किसी बात पर विवाद होने पर अपनी सहायक अश्विनी बिदरे की हत्या कर दी, कुरुन्दर ने अश्विनी के शरीर को टुकड़ों में काट दिया, उसे एक ट्रंक और बोरी में भर दिया और वसई क्रीक में फेंक दिया जिस के अवशेष कभी नहीं मिले. पुलिस अधिकारी अश्विनी बिदरे के लापता होने के 9 साल बाद पनवेल सेशन कोर्ट ने शनिवार को उन के सहकर्मी इंस्पेक्टर अभय कुरुंदकर को हत्या का दोषी ठहराया शव को ठिकाने लगाने में कुरुंदकर की मदद करने वाले दो अन्य लोगों को भी सबूतों को गायब करने का दोषी ठहराया.
इस केस में सब से हैरानी की बात यह थी कि अपनी सहायक इंस्पेक्टर के हत्यारे कुरुंदकर को 2017 में वीरता के लिए राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया गया था.
इस केस के जज केजी पालदेवर ने कहा कि “यह हैरान करने वाला है कि अभय कुरुंदकर, जिस ने अप्रैल 2016 में अश्विनी बिदरे का अपहरण कर हत्या कर दी थी उस को गणतंत्र दिवस पर वीरता के लिए राष्ट्रपति पदक दिया गया इसलिए यह सवाल उठता है कि पुलिस विभाग की समिति ने इस बात की जानकारी होने के बावजूद कि वह एक हत्या के मामले में आरोपी था, पुरस्कार के लिए उस के नाम की सिफारिश कैसे की?”
महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले में, भारत को दुनिया के सब से खतरनाक देशों में गिना जाता है. भारत में प्रतिदिन तकरीबन 90 रेप के केसेस दर्ज होते हैं देश की राजधानी दिल्ली में (2022 के डाटा अनुसार) हर घंटे औसतन तीन बलात्कार की घटनाएं दर्ज हुईं.
नैशनल क्राइम रिकौर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सब से ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे. साल 2022 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 65743 मामले दर्ज हुए. यह देश के किसी भी राज्य की तुलना में सब से अधिक है, साथ ही साल दर साल यह आंकड़ा बढ़ा भी है.
भारतीय समाज अपराध और अपराधियों के प्रति सिलेक्टिव नजरिया अपनाता है. अपराधियों को नस्ल और धर्म के आधार पर आंका जाता है. अगर अपराधी कोई औरत है तो इस से पूरी औरत जात को कटघरे में खड़ा करना आसान हो जाता है. इस में कोई शक नहीं कि झूठे रेप केस एक गम्भीर समस्या है लेकिन इस मामले में कन्विक्शन रेट के आधार पर यह मान लेना सही नहीं होगा कि ज्यादातर मामले झूठे होते हैं.
अपराधी प्रवित्ति के लोग हर समाज मे होते हैं. अपराधों में महिलाएं भी शामिल होती हैं लेकिन यह न्याय व्यवस्था का मामला है. झूठे रेप का आरोप लगाकर मर्दों को परेशान करने वाली लड़कियों को सख्त सजा मिलनी ही चाहिए लेकिन इस तरह की घटनाओं की आड़ में नारी जाति के खिलाफ नैरेटिव गढ़ने की मानसिकता और इस मानसिकता के पीछे छिपी मर्दवादी चालाकियों को भी समझना चाहिए.