Rights : रेप के झूठे मामले एक गंभीर समस्या है, जिन में निर्दोष पुरुषों का जीवन तबाह होता है. विष्णु तिवारी जैसे मामले, जहां 19 साल बाद निर्दोष साबित हुए, चौंकाने वाले हैं. लेकिन क्या ये केस महिला अधिकारों के खिलाफ साजिश का हिस्सा हैं? एनसीआरबी के अनुसार, 65% मामलों में आरोपी बरी होते हैं, पर क्या इस का मतलब यह है कि ज्यादातर शिकायतें झूठी हैं? या फिर यह न्याय प्रणाली और सामाजिक पूर्वाग्रहों की विफलता है? क्या इन्हें महिलाओं के खिलाफ हथियार बनाना उचित है?
ललितपुर के थाना महरौनी के गांव सिलावन निवासी विष्णु तिवारी की उम्र इस वक्त 46 साल है और वो 19 वर्षों से जेल में बंद थे. विष्णु को दुष्कर्म के झूठे आरोप में आजीवन कारावास की सजा हुई थी. विष्णु के परिवार की आर्थिक स्थिति खराब थी इसलिए वो लोग हाईकोर्ट में अपील न कर सके. विधिक सेवा प्राधिकरण ने विष्णु के मामले की पैरवी हाईकोर्ट में की और 19 साल बाद हाईकोर्ट ने विष्णु को निर्दोष करार देते हुए रिहा करने के आदेश दिए. इस तरह जिंदगी के 19 साल जेल में गुजारने के बाद विष्णु ने बाहर की दुनिया देखी लेकिन इस बीच विष्णु ने बहुत कुछ खो दिया था. जेल में रहने के दौरान विष्णु के दो भाई, मां और पिता गुजर चुके थे और विष्णु इन में से किसी के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए थे.
बीते कुछ सालों में बलात्कार और यौन उत्पीड़न के बहुत से ऐसे मुकदमे सामने आए जो कोर्ट में झूठे साबित हुए. ऐसे मामलों को देख कर लगता है कि औरतों के हित में बनाए गए कानून मर्दों के खिलाफ हथियार के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे हैं. बदले की भावना या लालच में पड़ कर कई औरतें कानूनों का मिस यूज करती हैं और इस का खामियाजा बेकसूर मर्दों को भुगतना पड़ता है.
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