Indian Penal Code 1860 : भारतीय जनता पार्टी ने बहुत ढोल पीटे हैं कि उस ने भारतीय न्याय संहिता बना कर गुलामी के दिनों के इंडियन पीनल कोड 1860 को हटा दिया. पर सिर्फ नाम बदलने में माहिर भाजपा सरकार ने इंडियन पीनल कोड 1860 की भाषा को, अपराधों को, सजाओं को, धाराओं को इधर से उधर कर के नई बोतल में पुराना शरबत ही रखा है, सिर्फ ढक्कन पर नया रंग लगाया है.

मई 2024 में दिए गए एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने यह बात पीनल कोड 1860 की धारा 498 ए के संदर्भ में कही. यह मामला हरियाणा के अचिन गुप्ता का था जो दिल्ली का रहने वाला है जिस का सांस्कारिक हिंदू विधियों से 2008 में विवाह हुआ.

2021 में तनु गुप्ता ने एक आपराधिक मामला हिसार में दर्ज कराया कि वह हरीश मनोचा की बेटी है जो अर्बन एस्टेट, हिसार में रहते हैं. उस के पति व सास उसे शादी के बाद ताने कसते थे, दहेज मांगते थे, पति शराब पीता था. पत्नी ने 498 ए के तहत मुकदमा चलाने की मांग की.

मुकदमे में 5 जनों के नाम दर्ज करवाए गए लेकिन पुलिस ने सिर्फ पति अचिन गुप्ता के नाम चार्जशीट दायर की. पति ने हाईकोर्ट से मुकदमा खारिज करने की प्रार्थना की. लेकिन हरियाणा पंजाब हाईकोर्ट ने मामला खारिज नहीं किया तो अचिन गुप्ता सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

सुप्रीम कोर्ट ने अचिन गुप्ता को राहत दे दी और हिसार में मजिस्ट्रेट के पास चल रहे मुकदमे को खारिज कर दिया पर इसी मुकदमे में यह भी कहा कि भारतीय न्याय संहिता की धारा 85 व 86 हूबहू गुलामी के दिनों के बने कानून इंडियन पीनल कोड की धारा 498 ए की नकल है.

वैसे, 498 ए स्वतंत्र भारत में कांग्रेस सरकार द्वारा औरतों को पतियों के अत्याचारों से बचाव के लिए जोड़ी गई थी लेकिन भारतीय जनता पार्टी के नीतिनिर्धारक और कानून बनाने वाले इतने अनपढ़ या अधूरे ज्ञान वाले हैं कि उन्होंने जरा सा बदलाव ही किया.

वर्ष 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में कहा भी था कि धारा 498 ए का बहुत बुरी तरह से पत्नियों द्वारा दुरुपयोग किया जा रहा है. लेकिन अपनी योग्यता का दम भरने वाली भाजपा सरकार के मंत्री व विधि विशेषज्ञों ने न 2010 की सलाह मानी, न कांग्रेसी सरकार के इस समाज सुधार संशोधन में कोई बदलाव किया.

कानून बनाने का काम निरंतर चलता रहे, यही लोकतंत्र की खासीयत है जो इसे धर्मतंत्र से कहीं ज्यादा श्रेष्ठ बनाती है. धर्म को सर्वोपरि मानने वाली भारतीय जनता पार्टी के पास, अफसोस, इतने योग्य व्यक्ति नहीं हैं कि वे सही कानून बना सकें, तभी तो 2024 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट को ढोल पीटपीट कर बनाए गए भारतीय न्याय संहिता 2023 की पोल खोलनी पड़ी.

भाजपा चाहती तो 2010 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को सम झ लेती पर लगता है कि उस में पढ़ेलिखे लोगों की कमी है, उस में वे ही लोग भरे हैं जो एक ही मंत्र, एक ही भजन, एक ही आरती को रोजाना, बारबार, लगातार बिना बदले दोहराने के ‘एक्सपर्ट’ हैं.

भाषण देना एक बात है, कानून बनाना, नई खोज करना दूसरी.

भाजपा को ऐसा कानून बनाना चाहिए था जो पतिपत्नी विवादों को आसानी से हल करने में सहायक हो और या तो विवाद हल कराए या संबंध तुड़वा दे लेकिन बिना कष्ट के.

अचिन गुप्ता के मामले से साफ है कि इस धारा का दुरुपयोग हो रहा है और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने के बाद भी अचिन गुप्ता को तनु गुप्ता के लगाए आरोपों से सिर्फ मुक्ति मिली है लेकिन तलाक नहीं मिला. वह प्रक्रिया अभी भी किसी अदालत में चल रही हो तो बड़ी बात नहीं. वर्ष 2024 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले से अचिन गुप्ता सिर्फ जेल जाने से बचा, पत्नी तो तनु गुप्ता कानूनन बनी ही हुई है.

मजेदार बात यह है कि तनु गुप्ता ने माना था कि विवाह पूरे हिंदू रीतिरिवाजों के साथ हुआ. जब देवता विवाह में मौजूद थे तो विवाह में खटास क्यों हुई? क्या देवता अपने एजेंटों की मारफत सिर्फ पैसा लेने को विवाह में पधारते हैं, यह सवाल तो है.

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