JNUSU Elections 2025 : दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के चुनाव इस बार काफी उत्सुकता से लड़े गए क्योंकि वामपंथी खेमे में विभाजन हो गया था और भगवा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को जीत की पूरी उम्मीद थी. हालांकि उन्हें वाम गुट की गुटबाजी का लाभ हुआ लेकिन अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और सचिव के पद वामपंथियों का एक गुट बटोर ले ही गया.

यह बात इसलिए थोड़ी महत्त्व की हो जाती है क्योंकि इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वहां के हारवर्ड समेत दूसरे विश्वविद्यालयों पर दबाव डाल रहे हैं कि वे लोकतंत्र समर्थक, गर्भपात समर्थक, पैलेस्टाइन समर्थक, पर्यावरण समर्थक, रंगभेद विरोधियों, धर्म विरोधियों और तानाशाही विरोधियों पर लगाम लगाएं और छात्रों से कहें कि वे विश्वविद्यालयों में पढ़ने आए हैं, राजनीति करने नहीं.

ऐसी ही बात भारत के राजनीतिबाज कहते हैं जब सत्ता में होते हैं. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय देश में अरसे से सत्ताविरोधी विचारों का केंद्र बना हुआ है और वहां निरंतर तानाशाही सोच व तानाशाहों के फैसलों पर चर्चा होती रहती है.

2014 के बाद से यह विश्वविद्यालय हारवर्ड विश्वविद्यालय की तरह सत्ता की आंखों में किरकिरी बना हुआ है, खासतौर पर इसलिए कि दोनों ही विश्वविद्यालयों को केंद्र सरकारों से सहायता मिलती है. अमेरिका में ट्रंप ने 2 अरब डौलर की सहायता बंद कर दी है पर भारत में भाजपा सरकार अभी सहायता तो बंद नहीं कर पाई लेकिन उस ने अपनी मरजी की नियुक्तियां करनी शुरू कर दी हैं ताकि सारी फैकल्टीज भगवा हो जाएं, चाहे माथे पर तिलक न लगा हो.

शिक्षा संस्थान में राजनीति पर खुली चर्चा किया जाना जरूरी है. यह वह जगह है जहां विचारों को आसानी से सम झा जा सकता है.

एक बार पढ़ाई खत्म की नहीं कि हर जना अपनी रोजीरोटी में इतना व्यस्त हो जाता है कि उस के पास किसी भी पनपते छोटे जहरीले अफीम के पौधे की ओर ध्यान देने का समय नहीं होता. जब तक वे छात्र रहते हैं, किताबों को पढ़ सकते हैं, तर्क कर सकते हैं, हर बात की मीनमेख निकालने में दक्ष होते हैं, उन के साथ सशक्त विज्ञान होता है और वे हर समस्या के हर पहलू पर विचार कर पाते हैं.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय इस मामले में काफी अग्रणी रहा है. अब उस पर सरकार की नजर है कि वहां केवल पोंगापंथी छात्र ही दाखिला ले सकें लेकिन हर वर्ग, जाति, वर्ण व धर्म के छात्र दाखिला लेते जा रहे हैं.

देश के अनेक विश्वविद्यालय हैं जो कट्टरवादियों को पैदा करने की फैक्ट्रियां हैं. वहां उन्हें एक ही पाठ पढ़ाया जाता है जिस में धर्मगुरु और राजा दोनों को सर्वोपरि माना जाता है. वे सरकारों के सब से बड़े सिपाही साबित होते हैं और वे ही क्रूर और निर्दयी शासक, प्रशासक, प्रबंधक, नेता बनते हैं. देशों में विवाद उन्हीं से पैदा होता है.

हारवर्ड और जेएनयू जैसे विश्वविद्यालय विविधता और भौतिक अधिकारों के पाठ पढ़ाते हैं जिन से धर्म और राजसत्ता दोनों चिढ़ते हैं. समाज में हरकोई उपयोगी हो, हरकोई उत्पादक हो, तभी प्रगति होती है और ये विश्वविद्यालय इसी के बीज अपने छात्रों में रोपित करते हैं. हारवर्ड विश्वविद्यालय के प्रबंधकों और जेएनयू के छात्रों ने पैसे देने वाले कट्टरपंथियों से दुश्मनी मोल ले रखी है लेकिन फिर भी चल रहे हैं और कामयाब भी हैं, यही आवश्यक भी है.

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