Hindi Kavita : जब मैं छोटी थी
बहुत हंसती थी
खिलखिलाती थी
इठलाती थी
मां के आंचल से बंधी
मेरी वह छोटी सी दुनिया
आज की ग्लोबल दुनिया से
बिलकुल अलग थी

वहां केवल खुशियां थीं
उम्मीदें थीं
हंसीठिठोली के साथ
कुछ डांट और फटकार भी थी
ममता में सराबोर
मां के धीमे तमाचे
मुझे सही और गलत का एहसास करा देते थे
मेरी निर्बाध उद्दंडता पर लगाम लगा देते थे

जब मैं बड़ी हुई
मेरी सोचसमझ और सपने भी बड़े हुए
साथ ही,
मेरे लिए
मेरी मां की चिंताएं भी बड़ी हो गईं
मां का आंचल छूटा
और मेरे लिए
खींची गई अनगिनत रेखाएं
मेरे सामने खड़ी हो गईं
ये अनगिनत रेखाएं अदृश्य थीं
लेकिन,
थीं बहुत कठोर

जल्द ही,
इन रेखाओं के साथ
मैं ने एडजस्ट करना सीख लिया
वैसे ही जैसे
बचपन में
मां के आंचल के साथ
मैं एडजस्ट हो गई थी

इन अनगिनत रेखाओं के साथ
अनगिनत चिंताएं भी थीं
जो अब मेरी मां से ज्यादा
मुझे सता रही थीं
फिर जल्द ही
इन चिंताओं के साथ
मैं ने एडजस्ट करना सीख लिया

मैं चाहती थी
मैं भी डाक्टर बनूं
मुफ्त में सब का इलाज करूं
मैं भी ड्राइवर बनूं
देश की सैर करूं
मैं भी पायलट बनूं
दुनिया को ऊंचाइयों से देखूं
मैं भी कल्पना और सुनीता बनूं
अंतरिक्ष की सैर करूं
लेकिन, जल्द ही
मुझे पता चला कि मुझे क्या बनना है?

मेरी शादी तय कर दी गई
मैं डाक्टर नहीं दुलहन बन गई
पायलट की जगह
किसी की पत्नी बना दी गई
वक्त ने मुझे
बहुतकुछ बना दिया

किसी की भाभी बनी
किसी की बहू
किसी की देवरानी बनी
तो किसी की जेठानी
तरक्की हुई तो जल्द ही
मां भी बन गई

अब मेरी गोद में मेरी एक बेटी है
जो धीरेधीरे बड़ी हो रही है
अभी वह छोटी है
बहुत हंसती है
खिलखिलाती है
इठलाती भी है
मेरे आंचल से बंधी
मेरी बेटी की यह छोटी सी दुनिया
आज की ग्लोबल दुनिया से
बिलकुल अलग है
यहां केवल खुशियां हैं
उम्मीदें हैं
हंसीठिठोली के साथ
कुछ डांट और फटकार भी है
उस की पीठ पर पड़ने वाले
ममता में सराबोर
मेरे धीमे तमाचे
उसे सही और गलत का एहसास करा देते हैं
और उस की निर्बाध उद्दंडता पर लगाम लगा देते हैं

अब वह बड़ी हो रही है
उस की सोचसमझ, सपने भी बड़े हो रहे हैं
साथ ही,
उस के लिए
मेरी चिंताएं भी बड़ी हो रही हैं
सोचती हूं,
जब मेरा आंचल छूटेगा
और अनगिनत अदृश्य कठोर रेखाएं
उस के सामने खड़ी होंगी
तब वह
क्या बन पाएगी?

लेखक : शकील प्रेम

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