Orissa High Court : ओडिशा हाईकोर्ट ने 24 फरवरी को एक मामले में बड़ा फैसला सुनाया है जिस में एक महिला ने 2021 में एक पुरुष पर 9 साल लंबे चले रिश्ते के बाद शादी के झूठे वादे के आरोप में बलात्कार का केस दर्ज कराया था. महिला का कहना था की उस ने शादी के वादे पर उक्त पुरुष के साथ शारीरिक संबंध बनाए.

हाईकोर्ट की सिंगल बैंच के जज संजीव कुमार पाणिग्रही ने कहा कि शादी का झूठा वादा करना नैतिक रूप से गलत हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं है. जस्टिस संजीव कुमार पाणिग्रही ने कहा कि दोनों पक्ष 2012 में वयस्क और सहमति से रिश्ते में थे. रिश्ते का शादी में न बदलना व्यक्तिगत निराशा का कारण हो सकता है, लेकिन यह अपराध नहीं है.

इस मामले पर पीठ ने दिलचस्प बातें कहीं कि “यौन स्वायत्तता की अवधारणा, एक महिला का अपने शरीर, कामुकता और रिश्तों के बारे में स्वतंत्र फैसले लेने का अधिकार, नारीवादी दर्शन के भीतर निरंतर विवाद का विषय रहा है. पितृसत्तात्मक समाज में विवाह को महज एक औपचारिक कार्य बना दिया गया है, जिस से यह धारणा मजबूत हुई है कि महिला की कामुकता को पुरुष की प्रतिबद्धता से बांधा जाना चाहिए. शादी मंजिल नहीं है, न ही अंतरंगता का पूर्व निर्धारित परिणाम है. दोनों को मिलाना मानवीय रिश्तों को पुरातन अपेक्षाओं में कैद करना है.”

कोर्ट ने आगे कहा, “नारीवादी दर्शन ने अपेक्षाओं के अत्याचार के खिलाफ लंबे समय से लड़ाई लड़ी है. यह गलत धारणा है कि एक महिला की भावनाएं केवल तभी वैध हैं जब वह विवाह से बंधी हो.” कोर्ट ने इस दौरान एक किताब का भी जिक्र किया. कोर्ट ने कहा, “सिमोन डी ब्यूवोइर ने अपनी किताब द सैकंड सैक्स में इस अपेक्षा में निहित अधीनता का जिक्र किया है. यह अनुमान कि एक महिला केवल विवाह की प्रस्तावना के रूप में अंतरंगता में संलग्न होती है, कि एक कार्य के लिए उस की सहमति दूसरे के लिए एक मौन प्रतिज्ञा है, पितृसत्तात्मक विचार का अवशेष है, न्याय का सिद्धांत नहीं.”

इस मामले में कोर्ट का दो टूक मानना है:

“कानून हर टूटे वादे की सुरक्षा नहीं करता.”
“प्यार का असफल होना अपराध नहीं है और निराशा को धोखाधड़ी में नहीं बदला जा सकता.”

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