Indian Youth : रिपोर्ट चौंकाने वाली कम चिंतित करने वाली ज्यादा है जिस में यह तो बताया गया है कि भारतीय युवा बड़े पैमाने पर राजनीति से दूर हो रहे हैं. लेकिन इस बात का जिक्र या फिक्र रिपोर्ट में नहीं है कि ऐसा किस या किन वजहों के चलते हो रहा है. वाइव यानि वौइस फोर इन्क्लूजन बिलान्गिंग एंड एमपवार्मेंट और प्रोजैक्ट पोटेंशियल की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक 29 फीसदी युवा राजनीति से पूरी तरह दूरी बनाए हुए हैं. 26 फीसदी किसी राजनीतिक दल से जुड़े बिना राजनीतिक चर्चाओं में हिस्सा लेते हैं सिर्फ 11 फीसदी ही किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के मेम्बर हैं.

रिपोर्ट में जोर दे कर यह बात कही गई है कि 81 फीसदी युवाओं में देश भक्ति की जज्बा है.

युवा अगर राजनीति से दूर और नाउम्मीद हो रहे हैं तो इस की एक बड़ी वजह वे धर्मपंथी हैं जो राजनीति को अपने कमंडल में कैद किए हुए हैं. जहां सवाल पूछने और तर्क करने की न तो गुंजाइश होती और न ही इजाजत होती. जबकि ये दोनों ही बातें युवावस्था की पहचान हैं. देश अभीअभी अरबोंखरबों के महाकुम्भ की डुबकियों से फारिग हुआ है. लेकिन इस के बाद जो सामाजिक अवसाद देश भर में पसरा है उस के सब से ज्यादा शिकार वे युवा हो रहे हैं जिन के सामने रोजगार का संकट और अनिश्चित भविष्य मुंह बाए खड़ा है.

कोई युवा यह नहीं पूछ पा रहा कि इस भव्य खर्चीले धार्मिक आयोजन से किसे क्या मिला. हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद से इस जिज्ञासा का समाधान किया है लेकिन वह उतना ही बेदम है जितना यह भ्रम कि कुम्भ की डुबकी से मोक्ष मिलता है. किसी भी देश का युवा विपक्ष से ज्यादा सरकार से उम्मीदें रखता है कि वह उन के आने वाले कल के लिए ठोस नीतियां बनाए, रोजगार सृजित करे न कि धर्म कर्म से लबरेज जुमले परोसते ध्यान असल मुद्दों से भटकाए पर बदकिस्मती से हो यही रहा है.

तो ऐसे माहौल में जिस में कब्र पर विवाद और फसाद होते हों, जिस में अदालत बलात्कार की तैयारी की व्याख्या में सर खपा रही हो, ऐसे माहौल में जहां जज के यहां से करोड़ों का केश बरामद होता हो उस में युवाओं से क्या खा कर उम्मीद की जाए कि वे उस राजनीति में दिलचस्पी रखेंगे जो पूरी तरह धर्मपंथियों के शिकंजे में है और उन के लिए कुछ नहीं कर रही. दिक्कत तो यह भी कि विपक्ष भी कोई आश्वासन युवाओं को नहीं दे पा रहा.

देश का युवा हताश और निराश है और डिलेवरीबौय बन कर रात के 2 – 3 बजे तक आंखें फोड़ कर सपने तोड़ कर सामान घरों में डिलीवर कर रहा है.

भोपाल के रानी कमलापति रेलवे स्टेशन के बाहर रात 4 बजे एक उबर ड्राइवर केशव से इस बारे में सवाल किया गया तो उस ने बेहद तल्ख़ लहजे में कहा, “माफ करें भाईसाहब, मेरा सर ऐसी बातों से फटता है मेरी चिंता और परेशानी ये हैं कि आज बुकिंग कम मिलीं.”

कितना सिमट गया है देश का युवा यह केशव के जवाब से समझ आता है कि वाइव के सर्वे में नया कुछ नहीं है. युवा अब किसी जयप्रकाश नारायण का इंतजार नहीं करता, वह अन्ना हजारे के आंदोलन मंथन से निकले रत्नों का हश्र देख चुका है कि इन धर्मपंथियों ने चालाकी दिखाते हुए उन्हें भी खोटा सिक्का साबित कर दिया. तो क्या युवा वर्ग यह स्वीकार और मान चुका है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी कुछ नहीं करेंगे सिवाय राजनीति के, इसलिए भरोसा उस भगवान पर ही क्यों न रखा जाए जिस के कहीं अतेपते नहीं.

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