Public Relations : बौलीवुड कलाकार हों, क्रिकेटर हों या फिर हों सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर्स, सभी की चकाचौंधभरी दुनिया के बारे में जानने के लिए सभी उत्सुक रहते हैं, खासकर इन की पर्सनल लाइफ के बारे में. बाहर खबरों में क्या जाए, इस के लिए ये पीआर रखते हैं. जहां इस से कुछ का फायदा होता है, वहीं कुछ को भारी नुकसान उठाने पड़ते हैं.

जब किसी फिल्म के प्रमोशन की योजना बनाई जाती है तो पीआर (पब्लिक रिलेशंस) एजेंसी यह सुनिश्चित करती है कि विभिन्न प्लेटफौर्म्स पर उसे कवरेज मिले. फिल्म में नजर आने वाले सितारों के इंटरव्यू की योजना बनाने से ले कर उन के बारे में खबरें छपवाने तक, सब पीआर एजेंसी का काम होता है.

इस दौरान सितारों की छवि को विशेष रूप से ध्यान में रखा जाता है. पीआर एजेंटों का काम फिल्म के निर्माण के दौरान से ही शुरू हो जाता है. पीआर एजेंट फिल्म की रिलीज से पहले और बाद में दर्शकों का ध्यान खींचने के लिए प्रचार स्टंट करते हैं. पीआर एजेंसी का मकसद सिर्फ इतना होता है कि जो ऐक्टर अपनी पहली फिल्म में काम करने वाले हैं, उन के बारे में पब्लिक पहले से कुछ जानती हो या उन की ब्रैंडिंग इस तरह की जाए कि फिल्म हिट होने से पहले ही पब्लिक की नजर में वह ऐक्टर हिट हो जाए.

क्रिकेटर्स के लिए क्या काम करती है पीआर एजेंसी

क्रिकेटर अकसर अपनी सार्वजनिक छवि, विज्ञापन, सोशल मीडिया उपस्थिति और मीडिया इंटरैक्शन को मैनेज करने के लिए पीआर एजेंसियों के साथ कोलैबोरेट (साथ मिल कर काम) करते हैं. पीआर एजेंसियां क्रिकेटरों को एक साफसुथरी पब्लिक इमेज बनाए रखने में मदद करती हैं, उन की मार्केट वैल्यू को बढ़ाती हैं और उन्हें शीर्ष ब्रैंडों से जोड़ कर आकर्षक विज्ञापन सौदों पर बातचीत करती हैं, जिस से क्रिकेटरों की कमाई के साधन बढ़ जाते हैं.

पीआर एजेंसी को एक व्यक्ति या बहुत से व्यक्ति मिल कर चलाते हैं, जिसे क्लाइंट को फेमस करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है, जनता को अपने क्लाइंट से रूबरू कराना, ताकि वे पब्लिक के लिए अनजान न रहें बल्कि उन का चेहरा ही उन की मूवी की पहचान बने. ये पीआर एजेंसी चलाने वाले अपने क्लाइंट की अच्छी बातों को बड़ाचढ़ा कर जनता के सामने पेश करते हैं और उन की पब्लिसिटी करते हैं.

जैसे नवाजुद्दीन सिद्दीकी की बात करें तो वे अपनी फिल्म के लिए बहुत कम पीआर का सहारा लेते हैं. यही वजह है कि उन की फिल्म कब आई, इस के बारे में लोगों को कम ही जानकारी होती है, जैसा हाल ही में उन की फिल्म ‘अफवाह’ के साथ हुआ. वह फिल्म कब आई और चली गई, किसी को पता न चला. लेकिन वे अपनी पीआर जरूर करवाते हैं. उन्हें ग्राउंडेड पर्सन, साधारण और गरीब दिखाने की खूब रील्स चलाई जाती हैं, उन के स्ट्रगल के किस्से खूब उछाले जाते हैं, जैसे पंकज त्रिपाठी अकसर अपने लिए पब्लिसिटी करवाते हैं.

दूसरी ओर शाहरुख खान की ‘पठान’ का पीआर कुछ इस तरह से किया गया कि लोगों के मुंह पर इस फिल्म के आने से पहले ही इस का नाम चढ़ गया. इसी का नतीजा था कि इस फिल्म ने काफी अच्छा बिजनैस किया.

पीआर एजेंसी वाले किस तरह अपने क्लाइंट को फेमस करते हैं?

हम सभी को यह लगता है कि जब फिल्म बन जाती है तो रिलीज डेट से कुछ दिनों पहले ही फिल्म के ऐक्टर अपनी फिल्म का प्रमोशन करने के लिए कई प्लेटफौर्म पर जाते हैं. लेकिन सच यह है कि यह काम फिल्म बनने के बाद नहीं बल्कि कलाकारों की कास्टिंग होने से पहले ही प्रीप्रोडक्शन के दौरान शुरू कर दिया जाता है. फिल्म के ऐक्टर की हर छोटीबड़ी बात को जनता के बीच लाया जाता है, ताकि वह ऐक्टर पहले ही जनता के बीच लोकप्रिय हो जाए.

जब प्रोडक्शन और पोस्ट-प्रोडक्शन की बारी आती है तो फिल्म के सेट से सितारों की तसवीरें सामने लाई जाती हैं. उन के वीडियो पीआर एजेंसी वाले हर सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर डाल देते हैं, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उन की जानकारी पहुंच सके, ताकि उन की फिल्म में कहानी में दम हो या न वह फिल्म ऐक्टर के नाम पर चल जाए. सितारों के सोशल मीडिया अकाउंट पर जानकारी साझा की जाती है जिस से ज्यादा दर्शकों तक आसानी से पहुंचा जा सके.

इस के अलावा, जानबूझ कर ये पीआर एजेंसी वाले अपने क्लाइंट से कई तरह के सोशल वर्क करवाते हैं और इस का प्रचार बढ़चढ़ कर किया जाता है. जैसे अगर उन्होंने किसी गरीब बच्चे की छोटीसी मदद की हो, तो वे उसे पूरी कवरेज देते हैं और हाईलाइट करते हैं.

पहले और आज के पीआर कल्चर में काफी बदलाव

पीआर कल्चर बढ़ता जा रहा है. यह इतने खराब तरीके से बढ़ रहा है कि यह इंसान का पूरा कैरेक्टर ही चेंज कर देता है. पीआर कल्चर पहले भी था. पीआर के जरिए सैलिब्रिटीज केवल अपनी बात जनता तक पहुंचाते थे. वे खुद ओपन इंटरव्यू देते थे, लोगों से मिलते थे, ताकि लोग सीधे उन से जुड़ सकें. लेकिन अब उस में काफी बदलाव आ गया है. पीआर पब्लिसिटी में आधे से ज्यादा झूठ होता है, फेक होता है, क्योंकि अब यह मात्र पैसा कमाने का आसान जरिया बन गया है. क्रिकेट खेलना और फिल्मों में काम करने के अलावा यह सैलिब्रिटीज का एक साइड बिजनैस बन गया है, जिस के लिए वे खुद और पीआर एजेंसी किसी भी हद तक जा सकते हैं.

सैलिब्रिटीज अपनी मार्केट बनाए रखने के लिए पीआर का सहारा लेते हैं. वे एकदूसरे को गिराने की फ़िराक में रहते हैं. क्रिकेटर विराट कोहली का अपना पीआर है और रोहित शर्मा का अपना. ये स्टार पीआर के सहारे ट्वीट करवाते हैं, सोशल मीडिया पर बज बनवाते हैं. ये ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इन से इन की मार्केट जुड़ी हुई है. रोहित शर्मा की जब तक मार्केट में बात रहेगी, उस का हल्ला रहेगा, तब तक उसे मार्केट यानी बिसनैस मिलता रहेगा, एड मिलते रहेंगे. ये सब इंटरकनैक्ट होता है. ये सब पब्लिसिटी का गेम है. जो क्रिकेटर या ऐक्टर फ्लौप हैं, चल नहीं पा रहे मगर उन का पीआर अच्छा है, तो उन का नाम मार्केट में बना रहता है.

जैसे विराट कोहली चल ही नहीं रहा है. साल में एक मैच में चल जाता है, तो बहुत हल्ला हो जाता है. लेकिन उस की पीआर इतनी स्ट्रौंग है कि उस का ग्राउंड में रहना ही खबर है, उस का चलनाफिरना, हंसनाबोलना खबर है. इस तरह की मार्केटिंग इन्हें रिटायर होने नहीं दे रही और नए प्लेयर्स को आने नहीं दे रही. अगर रिटायर हो गए तो इन की मार्केट वैल्यू डाउन हो जाएगी. जब ये ग्राउंड में नहीं होंगे, खेलने नहीं जाएंगे, तो लोग इन के बारे में बात क्यों करेंगे. इन्हें देखने भी नहीं जाएंगे. इस तरह ये पीआर स्पोर्ट्समैनशिप को खराब कर रहे हैं. इन सब के पीआर हैं.

पूर्व भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धौनी का अपना पीआर है. धौनी रिटायर हो चुके हैं लेकिन आईपीएल से रिटायर नहीं हुए हैं. वे पीआर का सहारा ले कर खुद के सिम्प्लिसिटी होने का बखान करवाते हैं. दिक्कत यह है कि मार्केट का प्रैशर इतना है कि वे रिटायर ही नहीं हो पा रहे बावजूद इस के कि वे ठीक से भाग नहीं पाते, घुटनों में तकलीफ रहती है. यही वजह भी है कि वे खेलने भी 7वें या 8वें नंबर पर आते हैं. लेकिन पीआर इतना धांसू है कि उन्हें सैल्फलेस प्लेयर कह प्रचारित किया जाता है, कहा जाता है कि वे यंग प्लेयर्स को मौका देते हैं.

सवाल यह कि जब आप में खेलने की कैपेसिटी नहीं है, तो खेल क्यों रहे हैं? आप इसलिए खेल रहे हैं क्योंकि पीआर आप को खिलवा रहा है. वह इसलिए खिलवा रहा है क्योंकि आप खेलेंगे तो आप का मार्केट बना रहेगा. आप खेलेंगे तो आप पर पैसा लगेगा, लोग सट्टा भी लगाएंगे, आप को एड मिलेगा. यह सब एकदूसरे से जुड़ा हुआ है. हार्दिक पंड्या का पीआर है. हर क्रिकेटर का पीआर है. आप में स्किल्स हैं या नहीं, आप चल रहे हैं या नहीं, आप फौर्म में हैं या नहीं— यह बात नहीं रह गई. आप का पीआर स्ट्रौंग है, आप की चर्चाएं पीआर चलवा रहा है, आप का बज है तो आप मैदान में हैं. इस बात को इस से समझा जा सकता है कि आजकल ग्राउंड में क्रिकेट से ज्यादा फुजूल का ड्रामा देखने को मिलता है.

ज्यादा पीआर करने के नुकसान

बहुत ज्यादा पीआर करने के अपने ही नुकसान हैं. नए आए ऐक्टर्स पीआर पर इतने निर्भर हो जाते हैं कि वे ऐक्टिंग की तरफ ध्यान ही नहीं दे पाते. इन से फिर जो स्किल्स निकलनी भी थीं, वे नहीं निकल पातीं. इन्होंने हर जगह बढ़चढ़ कर इतना अपने को दिखा दिया कि फिर ये लोग एक्सपैक्टेशन को मैच ही नहीं कर पाते. इस से इन का फायदा कम, नुकसान ज्यादा हो रहा है.

इन को लगता है, ‘हम तो चर्चा में आ गए हैं, हमारा पीआर इतना स्ट्रौंग है, हम को ये चर्चाएं बनाए रखती हैं.’ आप अपनी ब्रैंडिंग तो बड़ी कर लेते हो लेकिन आप की लिमिटेशन इतनी कम होती है कि आप पेशे में खरे नहीं उतर पाते. आप फिर छोटे रोल के लायक भी नहीं रह जाते, क्योंकि पब्लिक इमेज के चलते छोटे रोल आप करेंगे और बड़े रोल अपनी कमजोर स्किल्स के आधार पर मिलेंगे नहीं.

जैसे, ऐक्टर टाइगर श्राफ है. इसे जबरदस्ती का हीरो बनाया जा रहा है. आया था बड़ा धूमधाम कर के, उछलकूद कर रहा था, गुलाटियां कर रहा था. अंत में वह फ्लौप ही हुआ. उस के पास उछलने और ऐक्शन के अलावा कोई स्किल नहीं है. कोई डायरैक्टर टाइगर से इमोशनल सीन नहीं करवा सकता. टाइगर की शुरुआत में जो एकदो फिल्में आईं, उन में उसे बड़ाचढ़ा कर दिखाया गया कि इसे तो ताइक्वांडो आता है, यह अगला सुपरस्टार ह. मगर आगे फुस्स हो गया.

पीआर बताता रहा कि ये कलाबाजियां करता है, इसे फाइटिंग अच्छी आती है. अच्छा दिखता है तो सर्कस या एमएमए उस के लिए अच्छा प्रोफैशन हो सकता है. फिल्म में जा रहे हो, तो आप को ऐक्टिंग सही से आनी ही चाहिए. लेकिन उसे यही नहीं आती.

इसी का नतीजा है कि टाइगर श्राफ की पिछली कुछ फिल्में टिकट खिड़की पर बुरी तरह पिटी हैं. इन में ‘बड़े मियां छोटे मियां’, ‘गणपथ’ और ‘हीरोपंती 2’ जैसी फिल्मों के नाम शामिल हैं. उन की आखिरी हिट फिल्म थी ‘बागी 3’, जो 2020 में आई थी. वह भी जबरदस्ती की हिट थी. अब टाइगर के पास कोई भी फिल्म नहीं बची है. प्रोड्यूसर्स उसे अपनी फीस घटाने की सलाह दे रहे हैं, क्योंकि उस की मार्केट वैल्यू पिछले कुछ समय में बहुत गिरी है. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वह पीआर के नीचे दब गया. वह अपनी स्ट्रैटजी नहीं समझ पा रहा.

जाह्नवी कपूर, वरुण धवन भी फ्लौप ही हो रहे हैं. जितना पीआर ने इन्हें हाइप दिया होता है उतना ही जल्दी ये मुंह के बल गिरते हैं. सैफ अली खान के बेटे इब्राहिम अली खान, आमिर खान के सुपुत्र जुनैद खान, श्रीदेवी की बेटी खुशी कपूर, अजय देवगन के भतीजे अमन देवगन, रवीना टंडन की बेटी राशा और अमीरों के अमीर खानदान से आने वाले वीर पहाड़िया- इन सभी को देख ऐसा लग रहा है जैसे इन का बौलीवुड में डैब्यू नहीं हो रहा, बल्कि इन सभी नेपो किड्स की लौंचिंग हो रही है. जैसे ये अब चांद पर पहुंचने वाले हैं. दिक्कत यह है कि ये ऐक्टिंग करने आए हैं मगर औडियंस कंफ्यूज है कि किस की ऐक्टिंग ज्यादा खराब है.

इन नेपो किड्स का आपस में ही कंपैरिजन हो रहा है. पता नहीं कहां से अचानक ही सभी के इंस्टाग्राम की फीड में इन नेपो किड्स की पेड पीआर वाली रील्स आने लग जाती हैं. अभी अमन देवगन और राशा का पीआर चल ही रहा था, उन की मूवी ‘आज़ाद’ का पीआर अभी खत्म भी नहीं हुआ था, उस से पहले ही ‘स्काई फोर्स’ मूवी ने फ़ोर्सफुली बनाए जा रहे ऐक्टर वीर पहाड़िया की पीआर स्टार्ट हो गई.

राशा का पीआर इस तरह चल रहा है कि उसे कैटरीना कैफ़ से कंपेयर किया जा रहा है. हालांकि कैटरीना आज भी ऐक्टिंग सीख रही है लेकिन फिर भी वह इस से तो काफी अच्छी ऐक्टिंग कर लेती है. इन पीआर एजेंसियों ने इन नेपो किड्स के लिए इतना माहौल बना दिया है कि वे ज्यादा ऐक्टिंग अच्छी कर के करेंगे भी क्या? उन्हें पता है, हमारा कंपीटिशन तो अनन्या पांडे है. सो, अच्छी ऐक्टिंग करने का फायदा भी क्या?

राशा अभी 19 साल की हैं और उन का कैरियर स्टार्ट भी हो गया है. जस्ट स्कूल खत्म हुआ और उस के वैकेशन शुरू हुए. इस वैकेशन में उस ने एक मूवी भी फिनिश कर डाली. वहीं, देश में अकसर युवा पूरी जिंदगी सरकारी नौकरी की तैयारी करते हुए बूढ़े हो जाते हैं और फिर भी उन्हें नौकरी नहीं मिलती.

हीरो वीर पहाड़िया का पीआर उलटा पड़ा, बुरी तरह ट्रोल हुए

अभिनेता वीर पहाड़िया हाल ही में ‘स्काई फ़ोर्स’ फिल्म में नजर आए हैं. उन के नानाजी एक्स सीएम रहे हैं. उन के पापा बड़े बिजनेसमैन हैं. उन का अंबानियों के साथ उठनाबैठना है. उन की अच्छीखासी लौबी है. वह पहली ही फिल्म 150 करोड़ की करता है. वह ऐसा है, जो पहली बार परदे पर आता है, जिसे इतनी बड़ी फिल्म मिल गई, इतने बड़े बजट की. वह भी अक्षय कुमार के अपोजिट.

फिल्म में उस की चाहे जैसी भी ऐक्टिंग है, उस ने सोशल मीडिया में अपने पीआर पर काफी खर्चा किया. यही वजह है कि हर जगह वही छाया हुआ है. भले ही वह फिल्मों में चले या न, सोर्स औफ इनकम तो बना ही लेगा. क्या ऐसा ही औरी के साथ नहीं है. जबरदस्ती का इन्फ्लुएंसर है. अपनी पीआर करा के वायरल इन्फ्लुएंसर बन गया, वरना उस के पास ऐसा कौन सा टैलेंट है कि कोई उसे देखे.

मगर हकीकत यह है कि वीर की ओवर पीआर के चलते उस का फायदा कम, नुक़सान ज्यादा हुआ है. सारी पीआर एजेंसियों ने मिल कर सोशल मीडिया पर ऐसी गंद मचाई कि इस इंसान को हीरो नहीं, जोकर बना कर छोड़ दिया. हर मीम पेज की पहली पसंद बन गया है वीर. आधे लोगों को तो पता भी नहीं है कि इस के साथ ‘स्काई फ़ोर्स’ में अक्षय कुमार भी हैं. अक्षय कुमार भी बोल रहा होगा, ‘भला हो ऐसी पीआर एजेंसियों का, जिन्होंने अक्षय कुमार के फ्लौप होने का ठप्पा वीर पहाड़िया के सिर पर लगा दिया.’

इतने लोगों का पेड प्रमोशन सोशल मीडिया पर देखा है, पर इस इंसान के साथ जो हो रहा है, वह नहीं देखा. इस मूवी एवरेज थी. अगर यह बंदा अपनी मार्केटिंग खुद न करवाता, तो हो सकता है कि लोग इस की तारीफ करते. लोगों को खुद से डिसाइड करने दो कि उन्हें आप की ऐक्टिंग कैसी लगती है. आप फिल्म का प्रमोशन करो, न कि अपना. फिल्म अच्छी होगी, आप का काम अच्छा होगा तो लोग खुद तारीफ करेंगे. मगर वीर का पीआर पहली ही फिल्म से उसे सुपरस्टार बताने लगा.
जाहिर है, उन्हें भी अब तक पता चल गया होगा कि जो भी पीआर एजेंसी उस ने हायर कीं, वे उस के कैरियर के लिए डिज़ास्टर साबित हुईं और उस का पैसा पूरी तरह से वेस्ट हो गया है.

रवीना टंडन की बेटी राशा ने भी पीआर में बहुत पैसा लगाया है. आमिर खान का बेटा जुनेद खान, शाहरुख खान की बेटी सुहाना खान जब ये मूवी में आए, तो बस हर तरफ वही दिख रहे थे. जब इन की कोई चीज आती है, तो हर तरफ सिर्फ यही दिखते हैं. दरअसल ये लोगों के दिमाग को काबू में कर लेते हैं. ये लोग अपना पीआर कुछ इस तरह करवाते हैं कि ये पूरे टाइम चर्चा में बने रहें. इन का फोकस ऐक्टिंग से ज्यादा पीआर पर होता है.

लेकिन आमिर खान का बेटा जुनैद खान अपनी पहली फिल्म ‘महाराज’ से चर्चा में था. उस में उस ने ठीकठाक ऐक्टिंग की थी. उस की मूवी की तारीफ़ भी हुई. लेकिन औडियंस का फीडबैक इस तक नहीं पहुंचा, वरना ‘लवयापा’ जैसी मूवी सेलैक्ट करने से पहले दस बार सोचता. इन पीआर एजेंसियों को हायर करना भी काफी बुरा है. इन एजेंसियों ने इस मूवी को फ्लौप बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. अगर लोग जुनैद खान और खुशी कपूर की प्रमोशनल रील्स न देखते, तो गलती से कपल्स टाइम पास करने थिएटर में पहुंच भी जाते. लेकिन औडियंस को एक डिस्क्लेमर मिल गया. अब वे इस मूवी को अपने रिस्क पर ही देखेंगे.

सच तो यह है कि इन नेपो किड्स को अपने पीआर से ज्यादा अपनी ऐक्टिंग और मूवी के सेलैक्शन पर ध्यान देना चाहिए. अगर इन की फिल्में अच्छी होंगी, तो लोग अपनेआप ही इन्हें प्यार देंगे. पब्लिक अपनेआप ही इन लोगों की फैन बन जाएगी. रणबीर कपूर इस का अच्छा उदाहरण हैं. उन की फर्स्ट फिल्म ‘सांवरिया’ फ्लौप हुई थी, लेकिन उस के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी और बाद में अपनी बेहतरीन मूवीज से यह साबित कर दिया कि वे नेपो किड तो हैं लेकिन साथ ही बेहतरीन ऐक्टर भी हैं. उन्होंने दरअसल चैलेंजिंग रोल किए और दर्शकों को यह यकीन दिलाने में सफल हुए कि वे अच्छे ऐक्टर हैं. अपनी ऐक्टिंग के दम पर ही उन्होंने अपनी फैनफौलोइंग क्रिएट की है.

युवाओं को पीआर के इस खेल को समझना चाहिए

आज के टाइम में सोशल मीडिया पर जो दिख रहा है वह सारा कंटैंट पैसा लगा कर या पीआर के जरिए करवाया जा रहा है. अगर कोई गाना पसंद आता है, तो उस की पब्लिसिटी में काफी मोटी रकम खर्च कर दी जाती है. इतनी बार आप को वह गाना दिखाई और सुनाई देगा कि आप की जबान पर वह अपनेआप चढ़ जाएगा. गाना दिमाग में बैठ जाएगा, लिरिक्स आप के मुंह पर चढ़ जाएंगे, चाहे वह कितना भी खराब क्यों न हो. युवाओं को समझदारी रखनी है कि इन फालतू चीजों में अपना टाइम वेस्ट न करें. आप जो ये सब चीजें देख रहे हैं, बहुत सारा कंटैंट प्लांटेड तरीके से सोशल मीडिया पर फैलाया जाता है. आप इंटरनैट से सिर्फ वही खोजें जो आप के काम का है.

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